पिछले कुछ समय से और खासकर यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद भारत के साथ दुनिया भर में जिस तरह महंगाई बढ़ रही है, उसे देखते हुए इसके आसार उभर आए थे कि भारतीय रिजर्व बैंक को समय से पहले हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। आखिरकार ऐसा ही हुआ। जब यह माना जा रहा था कि अगले माह यानी जून में रिजर्व बैंक रेपो रेट में वृद्धि करने को बाध्य हो सकता है, तब उसे एक आकस्मिक बैठक बुलाकर यह फैसला लेना पड़ा। चूंकि रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर बैंक रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं, इसलिए अब बैंकों से कर्ज लेना महंगा होगा। इसका असर आम आदमी पर भी पड़ेगा, जो पहले से ही बढ़ती महंगाई से जूझ रहा है।

माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक के इस फैसले के साथ ही सस्ते लोन का दौर समाप्त हो सकता है। चूंकि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाने के साथ ही सीआरआर दर भी बढ़ाई हैं, इसलिए अब बैंकों के पास कर्ज देने के लिए कहीं कम पैसा होगा। स्पष्ट है कि कर्ज लेने वालों पर इसका भी कुछ न कुछ असर पड़ेगा। हालांकि रिजर्व बैंक ने महंगाई को थामने के इरादे से ये कदम उठाए हैं, लेकिन यह एक यक्ष प्रश्न बना रहेगा कि ऐसा हो पाता है या नहीं? यह प्रश्न इसलिए सिर उठाए रहेगा, क्योंकि उन कारणों का निवारण होता नहीं दिखता, जिनके चलते महंगाई बढ़ रही है। इन कारणों में एक बड़ा कारण यूक्रेन युद्ध है। फिलहाल कोई नहीं जानता कि यह युद्ध कब खत्म होगा? यदि यह युद्ध और अधिक लंबा खींचा तो वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष उपजा संकट जस का तस बना रह सकता है।

इसके नतीजे में महंगाई को थामने के लिए भारत सरकार के साथ रिजर्व बैंक को भी नए सिरे से जतन करने पड़ सकते हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कुछ ही समय पहले रिजर्व बैंक को खुदरा महंगाई के बारे में अपने अनुमान में बदलाव करते हुए उसे बढ़ाना पड़ा था। इसी तरह उसे विकास दर का अनुमान भी घटाना पड़ा था। चूंकि इसके प्रति सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि रिजर्व बैंक के कदमों से महंगाई को थामने में मदद मिलेगी ही, इसलिए सरकार को इसके प्रति और अधिक सजग एवं सक्रिय रहना होगा कि यह काम कैसे हो, क्योंकि खाद्य वस्तुओं में महंगाई का दौर जारी रहने की आशंका है। इससे सरकार को चिंतित होना चाहिए।