[ क्षमा शर्मा ]: वर्षों पहले इंदु और आशीष की घटना ने लोगों को दहला दिया था। इंदु ने आशीष के साथ रहने के लिए अपने दो छोटे बच्चों को आग लगा दी थी। अखबारों ने लिखा था कि जब इस घटना के बारे में आशीष से पूछा गया तो वह हंस रहा था। दो छोटे बच्चों को आग लगाना और उस पर हंसना, सबको भयानक लगा था। बाद में इन दोनों का क्या हुआ, पता नहीं, लेकिन इन दिनों तो ऐसी घटनाएं जैसे आम हो चली हैं। एक हफ्ते के भीतर दो ऐसी घटनाएं पढ़ीं कि उन अनजाने बच्चों के प्रति मन करुणा से भर उठा, जिन्होंने अपने ही परिजनों के कारण जान गंवाई हैैं।

अपने ही बच्चों से निजात पाने के क्रूरतम तरीके

अपने ही बच्चों से निजात पाने के इतने क्रूरतम तरीके। एक महिला के दो बच्चे थे। वह अपने पति को छोड़कर किसी और के साथ रहने लगी थी। बड़े बच्चे को उसने गांव में अपने माता-पिता के साथ छोड़ दिया था। दूसरा बच्चा छोटा था, इसलिए उसे साथ ले आई थी। जिसके साथ रहती थी, वह आदमी इस बच्चे को बहुत मारता-पीटता था। एक दिन उसने इस बच्चे को इतना मारा कि उसकी सांस उखड़ गई। मां ने यह देखा तो बच्चे का गला दबा दिया। दूसरी घटना में एक महिला की दूसरी शादी हुई। पहली शादी से उसकी चार साल की एक बच्ची थी। सौतेले पिता ने बच्ची के सीने पर इतनी जोर से मुक्का मारा कि वह चल बसी।

सौतेली माताओं के अत्याचार

सौतेली माताओं के अत्याचार से न केवल हमारे ग्रंथ, बल्कि समाज में बेशुमार कहानियां भरी पड़ी हैं। हालांकि सभी सौतेली मांएं बुरी नहीं होती हैैं, वे अच्छी भी होती हैैं। आमतौर पर तो वे पति पर पूरा अधिकार चाहती हैैं इसलिए वे पहली शादी से हुए बच्चों को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैैं। वे सारे अधिकार सिर्फ अपने बच्चों के लिए सुरक्षित रखना चाहती हैैं। समाज में सौतेली मां का बच्चों पर आतंक रहा है, लेकिन इन दिनों दूसरे पिताओं यानी सौतेले पिताओं के अत्याचार के किस्से भी पढ़ने को मिलते हैं। जो रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं।

पहले सौतेले पिता का नामोनिशान तक नहीं था

पहले सौतेले पिता कहानियों, किस्सों, स्मृतियों में इसीलिए नहीं आते थे, क्योंकि तब वे समाज में मौजूद नहीं थे। आमतौर पर औरतों की दूसरी शादी नहीं होती थी। पति के छोड़ देने या विधवा होने पर वे अकेली जीवन काटने को मजबूर होती थीं, जबकि आदमी पहली पत्नी के मरते ही फौरन दूसरा विवाह कर लेते थे और बच्चों की सौतली मां ले आते थे। बहुत बार ये माताएं बच्चों से भी उम्र में छोटी होती थीं। बेमेल विवाह के ऐसे किस्से रोज देखे जाते थे।

सौतेला पिता को दूसरे आदमी का बच्चा नहीं चाहिए

प्रेमचंद का उपन्यास निर्मला ऐसे ही बेमेल विवाह की कहानी है, मगर उसमें सौतेली मां एक अच्छी महिला है। वक्त बदल गया। समाज और कानून ने औरतों के दूसरे विवाह को स्वीकार किया। परिवारों में अब दूसरी मांएं ही नहीं, दूसरे पिता भी आते हैं। और यह कितना अफसोसनाक है कि वे अपने परिवार में किसी दूसरे के बच्चे को रहने देना नहीं चाहते। सारी इंसानियत स्वार्थ और किसी दूसरे पुरुष के बच्चे को देखकर नफरत में बदल जाती है। जैसे सौतेली माताओं को अपने पति के घर में किसी दूसरे का बच्चा नहीं चाहिए, वैसे ही पुरुषों को भी किसी दूसरे आदमी का बच्चा नहीं चाहिए। इसे वे अपनी तौहीन समझते हैं। औरतें इस बात को अच्छी तरह से समझती भी हैं। इसलिए अनेक बार बच्चों के कारण शादी नहीं करतीं।

मां भी बेटे का साथ छोड़ दे तो वह कहां रहेगा

वर्षों पहले साथ काम करने वाली एक महिला के पति की मृत्यु हो गई थी। उसे अपने पति के स्थान पर उसी दफ्तर में नौकरी मिल गई थी। मैंने एक बार यों ही जिज्ञासावश उससे पूछा कि क्या वह दोबारा विवाह के बारे में नहीं सोचती? आखिर कब तक ऐसे अकेली रहेगी? तब उसने कहा था-मैडम, लोग मुझसे तो शादी करना चाहते हैं, लेकिन मेरे बेटे को नहीं अपनाना चाहते। वे कहते हैं कि उसे अपने साथ न लाऊं। अब भला उस बच्चे को कहां छोड़ूंगी। उसके पिता तो पहले ही नहीं हैं। अब मां भी उसका साथ छोड़ दे तो वह कहां रहेगा? किसके भरोसे रहेगा। मुझे जिंदगी भर माफ नहीं करेगा कि मैंने अपने सुख के लिए उसका जीवन तबाह कर दिया।

जब अपने ही सताएं तो बच्चे कहां जाएं

एक तरफ हमारा जीवन है। उसके अपने तर्क हैं, लेकिन दूसरी तरफ बच्चों का जीवन, जहां माता-पिता के निर्णयों के कारण वे तरह-तरह की हिंसा, यहां तक कि जीवन गंवा देने को मजबूर हैं। जाहिर है जब अपने ही सताएं तो बच्चे कहां जाएं।

( लेखिका साहित्यकार हैैं )