[शुभम कुमार सानू]। जब धरती के समीप हवा का तापमान सामान्य तापमान से लगभग पांच से छह डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है, तो इसे आमतौर पर शीतलहर कहा जाता है। भारत में कर्क रेखा के उत्तर के 13 से अधिक राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश पूर्ण या आंशिक रूप से शीतलहर के कहर को झेल रहे हैं, जैसे जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि। त्रासदी के हिसाब से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और झारखंड ज्यादा प्रभावित हैं।

वर्ष 2019-2020 में भीषण शीतलहर की वजहें हैं, पहला वेस्टर्न डिस्टरबेंस यानी पश्चिमी विक्षोभ, जो पश्चिम से पूरब की ओर बहने वाली हवा है जो अपने साथ सर्द हवाओं एवं भूमध्यसागर से जलवाष्प लेकर आती है और उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी एवं मैदान में शीतलहर का प्रमुख कारण बनती है। दूसरा संपूर्ण सिंधु-गंगा मैदान के ऊपरी हवाओं में स्ट्रैटस बादल का बनना एवं निचली हवाओं में मौजूद प्रदूषण सूर्य के किरणों को धरती पर आने से रोकती है, और ठंड को बढ़ाने में मदद करती है। तीसरी वजह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, क्योंकि यही एक कारण है जिस वजह से संपूर्ण विश्व को ‘एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स’ को झेलना पड़ रहा है।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, नवजात शिशु एवं वृद्ध शीतलहर के कहर से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। शीतलहर तो उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में दिसंबर से फरवरी के महीने की एक सामान्य प्रक्रिया है जिससे रेल, विमान यातायात में विलंब, ऊर्जा की अधिक मांग आदि सामान्य बात है। लेकिन प्रभावित क्षेत्र में न्यूनतम तापमान का नए-नए कीर्तिमान स्थापित करना, मैदानी भागों में तापमान का जमाव बिंदु के नजदीक पहुंचना, अब तक 500 से ज्यादा लोगों की मौत, घने कोहरे की चपेट में आकर रोजाना बढ़ते सड़क दुर्घटना के आंकड़े इस शीतलहर को कहर का रूप दे रहा है। अगर पूरे देश में ठंड से हुई मौत के कुल आंकड़ों में कोहरे के वजह से होने वाली दुर्घटनाओं को भी शामिल कर लिया जाए तो यह आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है, जो शीतलहर के गंभीर कुप्रभाव की ओर इशारा कर रहा है।

इन मौतों के प्रत्यक्ष कारण जैसे हाइपोथर्मिया यानी शरीर के तापमान का ठंड की वजह से सामान्य शारीरिक तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से धीरे- धीरे कम होना, दुर्घटना, घुटन इत्यादि से कहीं अधिक जिम्मेदार अप्रत्यक्ष कारण जैसे ठंड से बचाव वाले सुरक्षित घरों की अनुपलब्धता, गरीबी एवं सरकार का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है। भारत में वर्ष 2011 की जनगणना आंकड़ों के अनुसार 18.2 लाख लोग गृह विहीन हैं जिसमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में 3.19 लाख, राजस्थान में 1.78 लाख हैं। वहीं कुल आबादी का लगभग 22 प्रतिशत यानी 25 करोड़ से अधिक जनता अभी भी गरीबी रेखा के अंदर अपना जीवन यापन करने को विवश है। इन आंकड़ों के अलावा बीते आठ दिनों में ठंड से हुई 500 से अधिक मौत के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि किस तरह हमारे देश में अभी भी मूलभूत आवश्यकताओं यानी रोटी, कपड़ा एवं मकान की अनुपलब्धता है।

इन सबके अलावा विभिन्न प्रभावित क्षेत्रों के राज्य सरकारों का गैर जिम्मेदाराना प्रबंधन ही तो है जिसने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और झारखंड में इतनी संख्या में लोगों की जान ले ली। इन राज्यों का गैर जिम्मेदाराना प्रबंधन इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि दिल्ली में पिछले करीब 118 वर्षों में सबसे अधिक ठंड पड़ी है, फिर भी यहां पर मौत की नाममात्र घटनाएं सामने आई है। यह दिल्ली सरकार या फिर कहें कि यहां के लोगों की समृद्धि का भी फलाफल है। ऐसे में इस तथ्य को भी आसानी से समझा जा सकता है कि ठंड से इतनी अधिक मौतों का मुख्य जिम्मेदार कौन है।

अगर ऐसा ही चलता रहा तो कैसे प्राप्त होगा वर्ष 2030 तक एसडीजी यानी सतत विकास के 17 लक्ष्य कैसे हासिल हो पाएंगे? कैसे बनेगा भारत एक विश्व शक्ति अगर उसके मानव संसाधन इसी तरह से कभी ठंड से तो कभी बाढ़ से कभी आग से तो कभी सुनामी से अलग-अलग मौसम में काल के गाल में इसी प्रकार समाहित होते रहेंगे। इतना ही नहीं, आगामी तीन-चार वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने की जो कवायद चल रही है उसका लक्ष्य भी प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है। इस बारे में हमें गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

शीतलहर के प्रबंधन के उपायों में पहला, स्थानीय स्वशासन व्यवस्था यानी जिला परिषद, म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, पंचायत के स्तर पर बॉटम अप अप्रोच के तहत शीतलहर से बचाव की कार्य योजना को तैयार करना एवं उसे लागू करना। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर गृह विहीन लोगों को ठंड से बचने के लिए अस्थाई आश्रय की व्यवस्था करना। दूसरा स्थानीय समाचार पत्रों समेत संचार के अन्य माध्यमों के जरिये संवेदनशील क्षेत्रों के लोगों को सतर्क करना, शीतलहर के दौरान क्या करें और क्या ना करें इसकी जानकारी देना एवं अन्य बचाव के तरीकों की जानकारी देना। तीसरा कर्तव्यबोध, कर्तव्यनिष्ठता एवं कर्तव्य अनुपालना का पालन। कर्तव्यबोध के अंतर्गत शीतलहर को जानना, फिर उसे आपदा बनाने वाले कारकों की पहचान करना एवं उससे बचाव की विस्तृत जानकारी हासिल करना आता है।

वहीं कर्तव्यनिष्ठता प्राप्त की गई जानकारी को अपने जीवन में निष्ठापूर्वक उतारने की बात करता है। तो कर्तव्य अनुपालना इसके लंबी अवधि तक बिना किसी रुकावट के अनुसरण और पालन पर जोर देता है। अगर इन उपायों को सही तरीके से स्वयं, समाज एवं सरकार के स्तर पर शीतलहर से निपटने के लिए प्रयोग किया जाएगा तो यह निश्चित रूप से कारगर साबित होगा।

[शोधार्थी, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स]

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