विनोद बंसल। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक दादासाहेब आप्टे ने समाजिक हित में अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को एक बैठक के लिए बुलाया। यह बैठक 29 अगस्त 1964 को जन्माष्टमी के अवसर पर मुंबई के पवई स्थित स्वामी चिनमयानन्द के आश्रम सांदीपनि साधनालय में बुलाई गई। इसमें चिनमयानन्द, तुकडो महाराज, सिख संप्रदाय से मास्टर तारा सिंह, जैन संप्रदाय से सुशील मुनि, गीता प्रेस गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार, केएम मुंशी और गुरुजी सहित 40-45 अन्य लोग भी उपस्थित थे। इसी दिन विश्व हिंदू परिषद के गठन की घोषणा की गई। 

इसी बैठक में हिंदू समाज को संगठित और जागृत करने, उसके स्वत्वों, मानबिंदुओं और जीवन मूल्यों की रक्षा व संवर्धन करने और विदेश में रह रहे हिंदुओं से संपर्क स्थापित कर उन्हें सुदृढ़ बनाने व उनकी सहायता करने संबंधित विश्व हिंदू परिषद के तीन मुख्य उद्देश्य तय किए गए। हिंदू की परिभाषा तय करते हुए कहा गया कि 'जो व्यक्ति भारत में विकसित हुए जीवन मूल्यों में आस्था रखता है या जो व्यक्ति स्वयं को हिंदूकहता है वह हिंदूहै।'

पहली बार विश्व हिंदू सम्मेलन प्रयाग में आयोजित किया गया

22 से 24 जनवरी 1966 को कुंभ के अवसर पर 12 देशों के 25 हजार प्रतिनिधियों की सहभागिता के साथ पहली बार विश्व हिंदू सम्मेलन प्रयाग में आयोजित किया गया। 300 प्रमुख संतों की सहभागिता के साथ पहली बार प्रमुख शंकराचार्य भी एक साथ आए और धर्मांतरण पर रोक व घरवापसी का संकल्प लिया गया। मैसूर के महाराज चामराज वाडियार को अध्यक्ष व दादासाहब आप्टे को पहले महामंत्री बनाकर विहिप की प्रबंध समिति की घोषणा भी हुई। इस सम्मेलन में जहां घरवापसी को मान्यता देने का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ वहीं विहिप के बोध वाक्य 'धर्मो रक्षति रक्षितः' और बोध चिह्न  'अक्षय वटवृक्ष' भी तय हुआ।

सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ

बाबा साहिब डॉ भीमराव अंबेडकर का मानते थे कि यदि देश के संत महात्मा मिलकर यह घोषित कर दें कि हिंदू धर्म-शास्त्रों में छुआछूत का कोई स्थान नहीं है, तो इस अभिशाप को समाप्त किया जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए 13-14 दिसंबर 1969 के उडुपी धर्म संसद में संघ के तत्कालीन सर-संघचालक गुरूजी के विशेष प्रयासों के परिणाम स्वरूप, भारत के प्रमुख संतों ने एक स्वर से 'हिन्दव: सोदरा सर्वे, ना हिंदू पतितो भवेत् के उद्घोष के साथ सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया।

धर्म संसद में 3500 संत उपस्थित थे

1994 में काशी में हुई धर्म संसद का निमंत्रण डोम राजा को देने संत ना सिर्फ स्वयं चलकर गए, बल्कि उनके घर का प्रसाद ग्रहण किया और अगले दिन डोम राजा धर्म संसद के अधिवेशन में संतों के बीच बैठे और संतों ने उन्हें पुष्प का हार पहनाकर स्वागत किया। इस धर्म संसद में 3500 संत उपस्थित थे। वनवासी, जनजाति, अति पिछड़ी व पिछड़ी जाति के हजारों लोगों को गांव के पुजारी के रूप में प्रशिक्षण देकर उनका समय समय पर अभिनंदन व मंदिरों में पुरोहित के रूप में नियुक्ति विहिप के गांव पुजारी प्रशिक्षण अभियान के कारण ही संभव हुई।  

छूआछूत के अभिशाप से मुक्ति के लिए अभूतपूर्व कार्य किए

9 नवम्बर 1989 में श्रीराम जन्मभूमि का शिलान्यास एक अनुसूचित जाति के कार्यकर्ता कामेश्वर चौपाल द्वारा कराए जाने के अतिरिक्त, देशभर में आयोजित समरसता यज्ञ, समरसता यात्राएं, समरसता गोष्ठियां, हिंदूपरिवार मित्र योजना, अनुसूचित जाति व जन जातियों के लिए छात्रावास आदि अनेक योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदू समाज के बीच व्याप्त छूआछूत के अभिशाप से मुक्ति के लिए अभूतपूर्व कार्य किए हैं। सन 2003 से लगातार देशभर में देश की समरसता में योगदान देने वाले भगवान वाल्मीकि, संत रविदास और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर इत्यादि महापुरुषों की जयंतियां व्यापक रूप से मनाई जा रही हैं। इन सब कार्यक्रमों के परिणाम स्वरूप अब संत समाज सहज रूप से वंचित बस्तियों में प्रवास, प्रवचन व सह-भोज सहजता से करते हैं।

 दूसरे विश्व हिंदू सम्मेलन भी प्रयाग में हुआ

दूसरे विश्व हिंदू सम्मेलन भी प्रयाग में 27 से 29 जनवरी 1979 को 18 देशों के 60 हजार प्रतिनिधियों की सहभागिता से पूरा हुआ। इसका उद्घाटन दलाई लामा ने किया। उनका स्वागत ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य ने किया। यह भी एक ऐतिहासिक प्रसंग था। देश के वनवासी व नगरवासियों के कुंभ के रूप में असम के जोरहाट में 27 से 29 मार्च 1970 में देश की सभी प्रमुख तीर्थों व 45 नदियों के जल से एकात्म हुए इस सम्मेलन में अनेक पूज्य संत-महात्माओं व पूर्वोत्तर के विचारकों के साथ नागारानी गाइडिन्ल्यु ने यह घोषणा की कि प्रकृति पूजक वनवासी समाज जिसे ईसाई मिशनरियां अपने चंगुल में फंसा रही हैं, हिंदूसमाज का ही अभिन्न अंग है। 

1982 में अशोक सिंघल विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी बने

1982 में अशोक सिंघल विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी बने। व्यापक जन जागरण के कार्यक्रम होने लगे। 1983 में हुई एकात्मता यात्रा में तो देश के 6 करोड़ लोग शामिल हुए। अप्रैल 1984 में नई दिल्ली में प्रथम धर्म संसद का अधिवेशन पूरा हुआ। एकल अभियान के रूप में जाना जाने वाला समग्र ग्राम विकास अभियान    के अंतर्गत एक पंचमुखी परियोजना से अब तक 50 लाख से अधिक बच्चों को लाभ पहुंच चुका है और लगभग 28 लाख विद्यार्थी अभी भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उन्हें एक साथ दी जा रही प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, ग्राम विकास (गौ-पालन, जैविक कृषि, कौशल विकास), संस्कार (हरिकथा व सत्संग) व जागरण शिक्षा (ग्रामीण विकास योजनाओं की जानकारी व उनका उपयोग) के माध्यम से देश के सुदूर क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं। इसी कारण  26 फरवरी 2019 को भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद व माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस एकल अभियान को 'गांधी शांति पुरस्कार-2017' द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया।

देशभर में 85 हजार से अधिक सेवा प्रकल्प 

विश्व हिंदू परिषद द्वारा समाज के सहयोग से देशभर में 85 हजार से अधिक अन्य सेवा प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं। इनमें से लगभग 70 हजार संस्कार केंद्र, 2272 शिक्षा केंद्र, 1752 स्वास्थ्य केंद्र, 1494 स्वावलंबन केंद्र तथा शेष लगभग दस हजार केंद्रों में आवासी छात्रावास, अनाथालय, चिकित्सा केंद्र, कंप्यूटर, सिलाई, कढ़ाई प्रशिक्षण केंद्र, विवाह केंद्र, महा-विद्यालय, कॉलेज इत्यादि प्रमुख हैं।

देश में 60 स्थानों पर गौवंश की देशी नस्लों का संवर्धन

गौ रक्षा, गौ पालन व गौ संवर्धन के क्षेत्र में विश्व हिंदू परिषद ने अनेक कार्य किए हैं। देश में 60 स्थानों पर गौवंश की देशी नस्लों का संवर्धन, 40 स्थानों पर पंचगव्य आधारित औषधि निर्माण केंद्र तथा तीन पंचगव्य अनुसंधान केंद्र इस समय कार्यरत हैं। 20 लाख गौवंश की कसाइयों से मुक्ति, अनेक राज्यों में गौवंश हत्या के विरुद्ध कठोर कानून की व्यवस्था और गौपालन से स्वावलंबन की ओर योजना के अंतर्गत पांच गायों से 50 हजार मासिक की कमाई और गौवंश आधारित ऋण मुक्त, कृषि व रोजगार युक्त युवक की दिशा में विहिप ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।   

लगभग 62 लाख हिंदुओं के धर्मांतरण रूका

विहिप ने अवैध धर्मांतरण पर रोक तथा धर्मान्तरित हिंदू भाई-बहिनों को अपनी जड़ों से फिर से जोड़ने की दिशा में भी बड़ा कार्य किया है। अभी तक लगभग 62 लाख हिंदुओं के धर्मांतरण को रोकने के साथ-साथ लगभग 8.5 लाख की घरवापसी भी हुई है। अनुसूचित जाति, जन जाति, वनवासी समाज के बीच सेवा, समर्पण व स्वावलंबन के मंत्र के साथ अनेक राज्यों में छल-बल पूर्वक धर्मान्तरण के विरुद्ध कठोर दण्ड की व्यवस्था वाले कानून विहिप के प्रयासों के कारण ही बन पाए हैं। 

भारत धर्म यात्राओं का देश

भारत धर्म यात्राओं का देश है जिसकी आत्मा तीर्थों में वास करती है। इन यात्राओं के माध्यम से ही देश, धर्म व समाज की एकता, अखंडता और समरसता प्रतिबिंबित होती है। बात चाहे कांवड़ यात्रा की हो या कैलाश मान सरोवर की, अमर नाथ यात्रा हो या गोवर्धन परिक्रमा, जगन्नाथ की नव कलेवर यात्रा हो या सिन्धु यात्रा, श्रीराम जानकी विवाह बारात यात्रा हो या बाबा अमरनाथ की यात्रा, इन सभी को सस्ती, सफल, सुखद, संस्कारित व आध्यात्मिक स्वरूप देने में विश्व हिंदूपरिषद के धर्मं यात्रा महासंघ ने वर्ष 1995 से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शासन-प्रशासन व संबंधित सरकारों के साथ लगातार संपर्क के माध्यम से इन्हें व्यवस्थित भी किया गया है।       

हिंदू की आवाज के रूप में विहिप कार्यकर्ता हमेशा आगे रहे हैं

‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को लेकर विदेशों में बसे हिंदू समाज की सुरक्षा, संस्कार व उनके अन्दर हिंदूजीवन मूल्यों को जीवंत रखने हेतु विहिप ने अनेक कदम उठाए है। विश्व के किसी भी भू भाग पर रहने वाले हिंदू की आवाज के रूप में विहिप कार्यकर्ता हमेशा आगे रहे हैं। इसी कारण विहिप ने अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, फिजी, न्यूजीलेंड, डेनमार्क, थाईलेंड, इंडोनेशिया, ताईवान, श्रीलंका, नीदरलैंड, सिंगापुर, नेपाल, जर्मनी इत्यादि देशों में अनेक स्थानीय व वैश्विक स्तर के सम्मेलनों का आयोजन सफलता पूर्वक किया तथा इनमें से अधिकांश देशों में हिंदू त्योहारों, परंपराओं को धूमधाम से मनाया जाता है।

56 वर्षों की विकास यात्रा में विहिप ने अनेक जन जागरण अभियान चलाए

अपने 56 वर्षों की विकास यात्रा में विहिप ने अनेक जन जागरण अभियान चलाए जो वैश्विक कीर्तिमान बन गए। 1984 में शुरू हुए श्री राम जन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन ने देश के 3 लाख गांवों के 16 करोड़ लोगों को जोडा। सड़क से संसद व सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी आवाज बुलंद कर 492 वर्षों के संघर्ष के उपरांत, देश के स्वाभिमान की पुन:प्रतिष्ठा करते हुए, 5 अगस्त 2020 के अयोध्या में भूमि पूजन के ऐतिहासिक दिवस को स्वर्णाक्षरों में दर्ज करा दिया।

 2005 में बाबा अमरनाथ की यात्रा फिर से शुरू कराया

1995 में जब आतंकियों ने बाबा अमरनाथ की यात्रा को बंद करने की धमकी देते हुए यह कहा कि यदि कोई आएगा तो वापस नहीं जाएगा। बजरंगदल के आह्वान पर 51 हजार बजरंगी व एक लाख अन्य शिव भक्तों ने जय भोले की हुंकार भरते हुए उस दुर्गम यात्रा की ओर जब कूच किया तो उस यात्रा को रोकने का कोई आज तक दुस्साहस नहीं कर पाया। पूंछ जिले के सीमांत क्षेत्र को हिंदू विहीन करने के जिहादी षड्यंत्र को भांपते हुए बजरंग दल ने 2005 में बाबा अमरनाथ की यात्रा को जब फिर से शुरू कराया तो वहां से हिंदुओं का पलायन भी रुका और समाज व सुरक्षाकर्मियों का आत्मविश्वास भी बढ़ा।

राम सेतु को बचाने के लिए विहिप ने एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा किया

भगवान श्रीराम के आदेश पर नल व नील द्वारा दक्षिण में बनाए गए राम सेतु को बचाने के लिए भी विहिप ने एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा किया था। जब तत्कालीन केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में श्री राम के अस्तित्व को ही नकार दिया तो विहिप के मात्र चार घंटे के सफल देशव्यापी चक्का जाम ने सरकार को उसी दिन झुकने को मजबूर कर दिया। दिल्ली के स्वर्ण जयंती पार्क में उपस्थित लाखों राम भक्तों के सैलाब के आगे सरकारी जिद धरी रह गई। विहिप की युवा शाखा बजरंग दल और दुर्गा वाहिनी ने 1984 से लेकर आज तक देश-धर्म संस्कृति व राष्ट्र की रक्षार्थ हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है। सेवा, सुरक्षा व संस्कार इनके मूल मंत्र रहे हैं। संस्कृत भाषा, वेद पाठशाला और संस्कारों की अभिवृद्धि के लिए भी विहिप ने अनेक कदम उठाए हैं। विश्व हिंदू परिषद् द्वारा किए गए इन विभिन्न कार्यों तथा सफल आन्दोलनों के कारण हिंदूदर्शन आज संपूर्ण विश्व के केंद्र में आ चुका है। अब विश्व को लगने लगा है कि हिंदूदर्शन ही अब विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा। 

( लेखक- विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)