कौशल किशोर। चीन की सेना से हुई झड़प में हमारे बीस सैनिकों के शहीद होने की खबर से पूरा देश आक्रोशित है। इसके पहले नेपाल की सरकार ने उत्तराखंड स्थित भारतीय क्षेत्रों पर दावा करने और पर्यटन विभाग का नया प्रतीक जारी करने के बहाने एक नया नक्शा पेश किया है। इस दौर में हिमालय के इर्द-गिर्द फल-फूल रहे कथानक से इस क्षेत्र में एक बार फिर महाभारत की आशंकाओं को बल मिलता है।

भारतीय रक्षा मंत्रलय के आंकड़ों से पता चलता है कि चीन से सटे भारतीय क्षेत्रों खासकर लद्दाख व अन्य इलाकों में चीनी घुसपैठ में भारी वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 में 404 मामलों की तुलना में 2019 में 663 ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं। ऐसे मामलों में पश्चिमी हिमालय में 75 प्रतिशत, जबकि पूर्वी हिमालय में 55 प्रतिशत की वृद्धि से पता चलता है कि चीन और भारत सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए काम करने वाला सिस्टम फेल हो गया है।

उल्लेखनीय है कि जनवरी 2012 में तत्कालीन एनएसए शिव शंकर मेनन और उनके चीनी समकक्ष डाई बिंगुओ के बीच की बातचीत के बाद आपसी समन्वय का सिस्टम यानी एक मंच विकसित किया गया था। दरअसल इस मंच का नेतृत्व दोनों ही देशों के संयुक्त सचिव स्तर के नौकरशाह करते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए बिश्केक, वुहान और महाबलीपुरम में मुलाकातें भी की थीं। सीमा विवादों का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए आज इस दिशा में पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है।

देखा जाए तो चीन और भारत के संबंधों को परिभाषित करने में बीते कई दशकों से तिब्बत और ताइवान की महत्वपूर्ण भूमिका है। हाल में ताइवान के फिर से निर्वाचित राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में जब भारतीय संसद के दो सदस्यों ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये भाग लिया तो चीनी दूतावास की तीखी प्रतिक्रिया से हैरनी होती है। दो ध्रुवों के बीच उलझी दुनिया में आज तीसरा ध्रुव चर्चा में है। दरअसल उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव से इतर हिमालय बर्फ का विशालकाय भंडार है। अनेक बुद्धिजीवियों द्वारा इसे तीसरा ध्रुव कह कर संबोधित किया गया है। सुरक्षा बलों की तैनाती और विनाशकारी हथियारों के भीषण जमावड़े से यह ठंडा क्षेत्र आज खूब गरम हो गया है। इसकी ऊंची भूमि पर परिवहन परियोजनाओं और चीन व भारत के बीच 1962 में हुए युद्ध का गहरा संबंध है।

लद्दाख में ऑपरेशन विजय के दौरान 1999 में पैंगोंग झील के निकट तैनात सेना के जवानों को कारगिल भेजने के बाद विवाद की नींव पड़ी थी। इस अवसर का फायदा उठा कर चीन ने भारतीय क्षेत्र में पांच किमी अंदर तक सड़क निर्माण कर लिया था। यह चीनियों द्वारा बनाए गए सड़कों के व्यापक नेटवर्क, विशेषकर काराकोरम हाईवे को जोड़ता है। पाकिस्तान व चीन को जोड़ने वाली यह योजना उसी विशाल परियोजना का हिस्सा है, जो सिल्क रूट पर एशिया, अफ्रीका और यूरोप को घेरता है। विकास की इन परियोजनाओं की वजह से हिमालय क्षेत्र में पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हो गया है। शांतिपूर्ण क्षेत्र का बड़े पैमाने पर सैन्यीकरण का नतीजा है कि आज तीसरा ध्रुव उस युद्ध की भूमि बनने के लिए तैयार है, जिसका जिक्र हाल ही में चीनी नेतृत्व ने किया था।

इस अवसर पर उन्होंने लोकहित हेतु अपनी प्रतिबद्धता व दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में चीन का उल्लेख किया है। यहां याद रखना चाहिए कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महामारी, प्राकृतिक आपदा, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसी वैश्विक चुनौतियों के अभिनव और स्थायी समाधान के लिए प्रतिबद्धता का वादा किया था। यदि ट्रांस-हिमालयन राष्ट्र आज लोकतंत्र, संवाद और समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ने व तरक्की करने से चूक जाते हैं, तो एक साथ नष्ट होने की दिशा में अग्रसर होंगे।

(लेखक पर्यावरणविद हैं)