[ विवेक कौल ]: जीडीपी के ताजा आंकड़े बता रहे हैैं कि देश में आर्थिक सुस्ती बनी हुई है। जुलाई से सितंबर 2019 की अवधि के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 4.55 प्रतिशत ही रही। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि आर्थिक विकास का एक पैमाना है। यह नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान की सबसे धीमी वृद्धि रही है। वास्तव में यह जनवरी से मार्च 2013 के बाद सबसे धीमी वृद्धि है। इससे पहले की तिमाही, अप्रैल से जून 2019 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 5.01 प्रतिशत रही थी। सकल घरेलू उत्पाद के चार हिस्से होते हैं-निजी खपत, निवेश, सरकारी व्यय और निर्यात। अगर सकल घरेलू उत्पाद से सरकारी खर्च निकाल दिया जाए तो जो बच जाता है उसे गैर सरकारी सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था का 87-92 प्रतिशत हिस्सा होता है। यहां यह कहना ठीक होगा कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर हम केवल गैर सरकारी सकल घरेलू उत्पाद को देखें तो इसकी वृद्धि दर जुलाई से सितंबर 2019 की तिमाही में केवल 3.05 प्रतिशत रही। यह वृद्धि पूरे सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि से करीब 150 आधार अंक कम रही। एक आधार अंक एक प्रतिशत का सौवां हिस्सा होता है।

गैर-सरकारी सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर धीमी क्यों पड़ गई

प्रश्न यह है कि अर्थव्यवस्था के इतने बड़े हिस्से की वृद्धि दर पूरे अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर से इतनी अलग क्यों है? अगला प्रश्न यह उठेगा कि गैर-सरकारी सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर इतनी धीमी क्यों पड़ गई है? यहां यह बताना जरूरी है कि 3.05 प्रतिशत की वृद्धि सकल घरेलू उत्पाद के गैर सरकारी हिस्से की पिछले 15 वर्षों में तीसरी सबसे धीमी वृद्धि रही है। पहली और दूसरी सबसे धीमी वृद्धि अक्टूबर से दिसंबर 2008 और जनवरी से मार्च 2009 के बीच रही थी। पाठकों को याद होगा कि सितंबर 2008 में लीमन ब्रदर्स के दिवालिया हो जाने की वजह से वैश्विक वित्तीय संकट की शुरुआत हो गई थी। इसकी वजह से अक्टूबर 2008 से मार्च 2009 के बीच गैर-सरकारी अर्थव्यवस्था की हालत काफी डांवाडोल रही थी, लेकिन अभी भारतीय और विश्व अर्थव्यवस्था पर इस प्रकार का कोई संकट नहीं है।

वाहनों की बिक्री लगातार गिरी

इसके बावजूद गैर सरकारी सकल घरेलू उत्पाद, जो कि गैर सरकारी अर्थव्यवस्था को दर्शाता है, काफी दयनीय स्थिति में है। कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोपेड, ट्रैक्टर और अन्य कमर्शियल वाहनों की बिक्री इस वर्ष लगातार गिरी है। यह सीधे-सीधे दर्शाता है कि लोगों का अपने आर्थिक भविष्य में विश्वास काफी कमजोर पड़ गया है। इस साल एफएमसीजी कंपनियों की इकाई बिक्री (वॉल्यूम ग्रोथ) में भी गिरावट आई है। लोग रोजमर्रा की चीजें खरीदने में भी हिचकिचा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में निजी खपत पर काफी मार पड़ी है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश 1.02 प्रतिशत की दर से बढ़ा

भारतीय अर्थव्यवस्था में हो रहा निवेश जुलाई से सितंबर 2019 में केवल 1.02 प्रतिशत की दर से बढ़ा। अगर अप्रैल से सितंबर 2019 तक के समय पर नजर डालें तो निवेश 2.54 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। बीते साल इसी अवधि में निवेश 12.55 प्रतिशत की दर से बढ़ा था। अब अगर निजी खपत और निवेश, दोनों की ही स्थिति खराब है तो अर्थव्यवस्था आगे कैसे बढ़ रही है? अगर हम केवल सरकारी व्यय को देखें तो जुलाई से सितंबर 2019 की तिमाही में इसमें 15.64 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह व्यय सामान्य सरकारी व्यय से कहीं ज्यादा था। इस व्यय की वजह से पूरी अर्थव्यवस्था 4.55 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी, भले ही अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ 3.05 प्रतिशत की दर से बढ़ा। वास्तव में अप्रैल से सितंबर 2019 के दौरान सरकारी व्यय 12.34 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। इससे अर्थव्यवस्था को 4.78 प्रतिशत की दर से बढ़ने में मदद मिली है।

गैर-सरकारी सकल घरेलू उत्पाद गिरकर 3.05 प्रतिशत पर आ गया

2017-18 और 2018-19 में सरकारी व्यय में 14.97 प्रतिशत और 9.25 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली थी। इससे हमें यह मालूम होता है कि पिछले तीन वर्षों में सरकारी व्यय की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है। हालांकि पिछले दो वर्षों में गैर-सरकारी सकल घरेलू उत्पाद 6.53 प्रतिशत और 6.32 प्रतिशत बढ़ा था, लेकिन इस साल जुलाई से सितंबर के बीच यह गिरकर 3.05 प्रतिशत पर आ गया है।

ज्यादा पैसे खर्च करने से लोगों की आय बढ़ेगी और आर्थिक विकास की दर बढ़ेगी

विशेषज्ञ चाहते हैं कि सरकार पहले से ज्यादा पैसे खर्च करे। इस खर्च से कुछ लोगों की आय बढ़ेगी। जब आय बढ़ेगी तो वे ज्यादा पैसे खर्च करेंगे। इससे कुछ और लोगों की आय बढ़ेगी और वे भी ज्यादा पैसे खर्च करेंगे। इस प्रकार गुणक प्रभाव अपना काम करेगा और आर्थिक विकास की दर बढ़ेगी, लेकिन सरकार पहले से ही काफी ज्यादा पैसे खर्च कर रही है। केवल इस साल ही सरकारी व्यय में 12.34 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अंग्रेजी में एक कहावत है, ‘इन इकोनॉमिक्स, देयर इज नो फ्री लंच।’

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति निष्प्रभावी हो चुकी

सरकार का पहले से ज्यादा पैसे खर्च करने का मतलब है कि सरकार पहले से ज्यादा पैसे उधार भी ले रही है। अगर सरकार पहले से ज्यादा पैसे उधार ले रही है तो इसका मतलब यह हुआ कि बाकी लोगों के उधार लेने के लिए कम पैसे बच रहे हैं। ऐसे माहौल में ब्याज दरें गिर नहीं रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति लगभग निष्प्रभावी हो चुकी है।

रेपो दर में गिरावट के बावजूद बैंकों ने अपने कर्ज की ब्याज दरों में कटौती नहीं की

2019 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर को 135 आधार अंकों से घटाकर 5.15 प्रतिशत तक लाया है। रेपो दर वह दर होती है जिस पर रिजर्व बैंक बाकी बैंकों को लोन देता है। रेपो दर में इतनी गिरावट के बावजूद बैंकों ने अपने कर्ज की ब्याज दरों में कटौती नहीं की है। दिसंबर 2018 में बैंकों की कर्ज देने की औसत दर 10.35 प्रतिशत थी। सितंबर 2019 तक यह 10 आधार अंकों की छलांग लगाते हुए 10.45 प्रतिशत तक पहुंच गई।

सरकार अपना खर्च बढ़ाएगी तो बैंकों की ब्याज दरें और बढ़ेंगी

अगर सरकार अपना खर्च और बढ़ाएगी तो फिर उसे पहले से ज्यादा कर्ज भी लेना पड़ेगा। इससे बैंकों की ब्याज दरें और बढ़ेंगी। ऐसा होने पर निजी खपत पर और भी मार पड़ेगी। जिन लोगों ने कर्ज ले रखा है उन्हें पहले से ज्यादा ईएमआई भरनी पड़ेगी। अगर यह हुआ तो इन लोगों की व्यय योग्य आय गिरेगी और फिर निजी खपत और भी कम होगी। निजी खपत भारतीय अर्थव्यवस्था का करीब 56-57 प्रतिशत हिस्सा है। इसके अलावा जो बहुत सी कंपनियां कर्ज के बोझ तले दबी हैं उनकी हालत और भी ज्यादा खराब हो जाएगी। अगर इन कंपनियों ने कर्ज चुकाना बंद कर दिया तो इसका सीधा असर बैंकों पर पड़ेगा।

आर्थिक सुस्ती से बाहर आने का सरल उपाय बचा नहीं

इस आर्थिक सुस्ती से बाहर आने का कोई सरल उपाय बचा नहीं है। इस समय आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहन देने की बहुत ज्यादा जरूरत है। बाकी देशों की तुलना में भारत में भूमि और बिजली, दोनों ही महंगी हैैं। हमारे श्रम कानून आर्थिक गतिविधियों के माकूल नहीं हैैं। हमारे यहां ब्याज दरें भी बाकी देशों से ज्यादा हैैं। इसके अलावा सरकार बहुत सी फालतू चीजों पर पैसे खर्च करती है। न्यायिक और पुलिस सुधारों की सख्त जरूरत है। सरकार को इस जरूरत की पूर्ति करनी चाहिए।

( स्तंभकार इजी मनी ट्राइलॉजी के लेखक एवं अर्थशास्त्री हैं )