[अभिषेक रंजन सिंह]। George Fernandes Death Anniversary: आज प्रख्यात समाजवादी एवं श्रमिक नेता जॉर्ज फर्नांडिस की पहली पुण्यतिथि है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। उन्हें चाहने वाले कई लोगों का मानना है कि अगर जीवित रहते जॉर्ज साहब को यह सम्मान मिला होता तो बेहतर होता। खैर, इस देश में अकेले जॉर्ज ही ऐसे नहीं हैं जिनकी महत्ता उनकी मृत्यु के बाद लोगों की समझ में आई हो। समाजवादियों का एक बड़ा खेमा जॉर्ज फर्नांडिस को पद्म विभूषण दिए जाने को उनका अपमान भी मान रहा है।

वैसे तो जॉर्ज फर्नांडिस की जिंदगी से जुड़े कई रोचक प्रसंग हैं, लेकिन एक महत्वपूर्ण प्रसंग कोंकण रेलवे के निर्माण से जुड़ा है। कोंकण का पूरा इलाका मूलत: पहाड़ी है। प्राय: सभी मौसम में यह क्षेत्र खूबसूरत दिखता है, लेकिन मानसून के समय में अगर आप रेलगाड़ी से गुजरें तो यहां की प्राकृतिक सुंदरता बरबस आपको आकर्षित करेगी। पहले कोंकण इलाके में कोई रेल लाइन नहीं थी। 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में जॉर्ज फर्नांडिस रेलमंत्री हुए। पदभार संभालते ही उन्होंने रेल अधिकारियों को बुलाया और उनसे पूछा कि कोंकण में रेल लाइन कैसे बिछेगी?

सभी अधिकारियों की अलग-अलग राय थी। किसी ने कहा कि इस प्रोजेक्ट पर काफी खर्चा आएगा तो किसी ने कहा कि काफी सुरंगें बनानी पड़ेंगी, क्योंकि यह क्षेत्र काफी उबड़-खाबड़ है। कुल मिलाकर रेल अधिकारियों की राय में कोंकण क्षेत्र में रेल की पटरियां बिछाना घाटे का सौदा था। इसके बावजूद भी जॉर्ज फर्नांडिस ने हार नहीं मानी, क्योंकि कोंकण अंचल में रेलगाड़ी दौड़ाने की उनकी इच्छा उस समय से थी, जब वे मुंबई में ट्रेड यूनियन के नेता थे। उन दिनों मुंबई में कोंकण के काफी मजदूर कल-कारखानों में काम करते थे। जॉर्ज खुद मंगलोर के थे और वहां भी कोई रेल लाइन नहीं थी। मुंबई में जब भी जॉर्ज फर्नांडिस कोंकणवासियों के बीच होते थे तो वे लोग अपने यहां रेलमार्ग न होने का दर्द साझा करते थे।

जॉर्ज साहब के करीबी रहे वरिष्ठ पत्रकार विजय नारायण के मुताबिक वीपी सिंह सरकार में बतौर रेलमंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने आज के मेट्रो मैन के नाम से प्रसिद्ध श्रीधरन को बुलाया जो उन दिनों रेलवे बोर्ड के मेंबर इंजीनियर थे। जॉर्ज ने उन्हें प्रस्तावित कोंकण रेल परियोजना का नक्शा वगैरह दिखाया और कहा कि सभी अधिकारियों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं, लेकिन आप निराश नहीं कीजिएगा! कोंकण रेल परियोजना से संबंधित नक्शे का अवलोकन करने के बाद श्रीधरन ने जॉर्ज फर्नांडिस से कहा कि कोंकण में रेलगाड़ी दौड़ाने का आपका सपना हम पूरा करेंगे। यह सुनते ही जॉर्ज फर्नांडिस अपनी कुर्सी से खड़े हो गए और फौरन उन्होंने रेल मंत्रालय के कुछ आला अधिकारियों को बुलाया। घंटे भर के भीतर कोंकण रेल परियोजना का जिम्मा श्रीधरन को सौंप दिया गया।

अगले दिन कोंकण रेल परियोजना और उसके मद में खर्च होने वाली धनराशि को लेकर जॉर्ज फर्नांडिस ने तत्कालीन वित्त मंत्री मधु दंडवते से मुलाकात की। मधु दंडवते ने जॉर्ज से कहा कि हम भी चाहते हैं कि कोंकण रेल का सपना साकार हो, क्योंकि यह प्रोजेक्ट कोंकणवासियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन

मौजूदा सरकार में खजाने की स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए इतना पैसा हम नहीं दे पाएंगे। जॉर्ज फर्नांडिस ने मधु दंडवते से कहा, फिर मैं ही पैसे जुटाने का कोई इंतजाम खुद करूंगा। सप्ताह भर के भीतर ‘कोंकण रेल कॉरपोरेशन’ नामक एक नई कंपनी का रजिस्ट्रेशन इंडियन रेलवे ने करवा लिया। उसका इश्यू शेयर मार्केट

में जारी हो गया। चौबीस घंटे के भीतर ‘कोंकण रेल कॉरपोरेशन’ के सारे शेयर बिक गए। इस तरह काफी पैसे इस मद में आ गए। उसके बाद श्रीधरन को जॉर्ज फर्नांडिस ने ‘कोंकण रेल कॉरपोरेशन’ का अध्यक्ष बना दिया। और इसका मुख्यालय भी मुंबई में स्थापित कर दिया।

1998 तक कोंकण रेल लाइन बनकर तैयार हो गई। 736 किलोमीटर लंबा रेलमार्ग है कोंकण रेलवे। इस पूरे रास्ते में सौ से ज्यादा सुरंगें हैं, जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। कोंकण रेलवे के निर्माण ने सही मायनों में श्रीधरन को श्रीधरन बना दिया। देश को उनकी एक बड़ी देन है कोंकण रेलवे और इसका श्रेय अगर किसी को जाता है तो वे जॉर्ज फर्नांडिस ही हैं। खैर, कोंकण रेलवे का सपना तो साकार हो गया। अब न तो जॉर्ज फर्नांडिस हैं और न ही मधु दंडवते, लेकिन यह समझ से परे है कि उस वक्त मधु दंडवते ने कोंकण रेलवे के लिए धनराशि आवंटित क्यों नहीं की, जबकि वे खुद कोंकण स्थित रत्नागिरि जिले के राजापुर लोकसभा से कई बार सांसद रहे चुके थे।

जॉर्ज फर्नांडिस को गुजरे एक वर्ष हो गए। मुमकिन है कि आने वाले कुछ वर्षों में जॉर्ज जैसे जीवट वाले नेताओं को उनके अनुयायी ही भुला दें, लेकिन कोंकणवासियों के लिए जो काम जॉर्ज फर्नांडिस ने कर दिया, शायद वहां के लोग इसे कभी नहीं भुला पाएंगे।

[राजनीतिक विश्लेषक]