सतीश सिंह। कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिए केंद्र सरकार खुदरा कर्जो जैसे- गृह, कार, पर्सनल आदि के किस्त एवं ब्याज को टालने या मोरेटोरियम की मियाद बढ़ाने और आतिथ्य, विमानन आदि क्षेत्रों के लोन को पुनर्गठित या रिस्ट्रक्चरिंग करने पर विचार कर रही है। फिलहाल ऋण भुगतान में छूट या मोरेटोरियम की अवधि को 31 अगस्त तक के लिए बढ़ाया गया है जिसे पुन: बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रलय भारतीय रिजर्व बैंक से विमर्श कर रहा है। इसके अलावा फिक्की की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा कि सरकार ऋण पुनर्गठन की संभावनाओं पर भी रिजर्व बैंक के साथ चर्चा कर रही है। वित्त मंत्री के अनुसार ऋण पुनर्गठन की जरूरत को सरकार सैद्धांतिक रूप से सही मान रही है। बैंक भी भारतीय रिजर्व बैंक से तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज को पुनर्गठित करने की मांग कर रहे हैं।

अमूमन पुनर्गठन के मामले में जब कंपनियों की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो जाती है तो वे बैंकों से ऋण खातों को पुनर्गठित करने के लिए कहते हैं। चूंकि इस विकल्प का चुनाव बैंकों के लिए भी मुफीद होता है, इसलिए वे भारतीय रिजर्व बैंक से नकदी की किल्लत ङोलने वाली कंपनियों के खातों को पुनर्गठित करने का आग्रह करते हैं। दरअसल कंपनी के दीवालिया होने पर बैंक उससे जितनी वसूली कर सकते हैं, उससे कहीं अधिक पैसे बैंक को ऋण खातों के पुनर्गठन से मिलने की उम्मीद होती है। आमतौर पर ऋण का ब्याज दर कम करके या किस्तों के भुगतान की अवधि में इजाफा करके ऋण खातों का पुनर्गठन किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत ऋण के बदले कंपनी के शेयरों की भी अदला-बदली की जाती है। इसका यह मतलब हुआ कि कंपनी के शेयरों के बदले बैंक, कंपनी का कुछ या पूरा ऋण माफ कर सकते हैं। ऋण खातों के पुनर्गठन के तहत कंपनी बैंक को बांड का कुछ हिस्सा देने के लिए भी राजी हो सकते हैं। कंपनी, बैंक से ब्याज या पूंजी का कुछ हिस्सा माफ करने के लिए भी आग्रह कर सकती है।

वैसे आजकल लोन आदि के मामले में बैंक सभी को मोरेटोरियम या पुनर्गठन का फायदा देने के खिलाफ हैं, जो सही भी है, क्योंकि ऋण चुकाने की हैसियत रखने वाले लोग या कई कंपनियां इस राहत का बेजा फायदा उठा सकती हैं। कुछ लोग आर्थिक रूप से समर्थ होने के बावजूद मोरेटोरियम का फायदा उठा रहे हैं, जिसका वित्तीय क्षेत्र और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। हालांकि उनके इस कदम से उन्हें ज्यादा ब्याज चुकाना होगा, क्योंकि बैंक आमतौर पर ऋण खातों में चक्रवृद्धि ब्याज प्रभारित करता है और मोरेटोरियम का अर्थ ऋण माफी नहीं है।

एक अनुमान के मुताबिक पहले से गैर निष्पादित परिसंपत्ति यानी एनपीए से जूझ रहे बैंकों के एनपीए में कोरोना महामारी की वजह से और भी ज्यादा वृद्धि हो सकती है। इसमें भारी इजाफा होने के बाद सरकारी बैंकों को नियामकीय शर्तो का अनुपालन करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि इनका औसत पूंजी पर्याप्तता अनुपात मार्च 2020 में 13 प्रतिशत था, जबकि न्यूनतम पूंजी आवश्यकता सितंबर 2020 तक बढ़कर 11.5 प्रतिशत होने का अनुमान है।

साथ ही उन्हें क्रेडिट ग्रोथ बढ़ाने के लिए भी कहा है, क्योंकि एनपीए होने के डर से सरकारी बैंकों के साथ-साथ निजी बैंक भी कर्ज देने में फिलवक्त जोखिम उठाने से बचने की कोशिश कर रहे हैं, जिस कारण क्रेडिट ग्रोथ में अपेक्षित तेजी नहीं आ रही है। भारतीय रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों की ऐसी प्रवृत्ति की वजह से आर्थिक सुधारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। वैसे क्रेडिट ग्रोथ में कमी का एक महत्वपूर्ण कारण कर्ज की मांग में भारी कमी आना भी है। सरकार और आरबीआइ द्वारा उठाए गए कदमों से वित्तीय बाजार की स्थिति में कुछ सुधार आया है और बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों को नकदी किल्लत का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ रहा है जिससे उधारी की लागत में भी कमी आई है।

कहा जा सकता है कि कोरोना महामारी ने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से चौपट कर दिया है। हालांकि अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से गतिशील होने के बाद ही कॉरपोरेट क्षेत्र का पूरा नुकसान सामने आएगा, लेकिन अभी भी अर्थव्यवस्था की तस्वीर किसी भी दृष्टिकोण से गुलाबी नहीं है। इसमें व्यापक सुधार के लिए सरकार और बैंक दोनों को मिलकर काम करना होगा। चूंकि जोखिम कम होने पर ऋण के एनपीए होने की आशंका कम होती है और ऐसे ऋण अगर एनपीए हो भी जाते हैं तो उसकी वसूली की उम्मीद बेहतर होती है। इसलिए एनपीए होने की आशंका से कोरोना काल में बैंक ऋण देने में विशेष सावधानी बरत रहे हैं।

तमाम परिस्थितियों को देखते हुए क्रेडिट में वृद्धि के लिए सरकार को बैंकों को भरोसा देना होगा कि सरकार उनके साथ खड़ी है। बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ते एनपीए को देखते हुए सरकार को बैंकों का पुनर्पूजीकरण भी करना होगा ताकि सरकारी बैंक पूंजी पर्याप्तता अनुपात मानक का अनुपालन करने में आगामी महीनों में भी सक्षम रहें। साथ ही सरकार को सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों के कर्ज पर गारंटी योजना के दायरे को अन्य क्षेत्रों के लिए भी बढ़ाना होगा, ताकि आर्थिक सुधारों की गति तेज हो सके।

[आर्थिक मामलों के जानकार]