Budget 2020: अर्थव्यवस्था का सच पेश किया जाना चाहिए ताकि सरकार ले सके कड़े फैसले
Budget 2020 उम्मीद है कि बजट 2020 में सरकार मांग से संबंधित अर्थव्यवस्था की विभिन्न चुनौतियों का कोई न कोई कारगर तोड़ अवश्य निकालेगी।
[राहुल लाल]। Budget 2020: भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगातार धीमी हो रही है। अर्थव्यवस्था का हर क्षेत्र मांग की कमी से प्रभावित है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर फिसलते हुए 4.5 फीसद पर पहुंच चुकी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष यानी आइएमएफ ने वर्ष 2019- 20 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर 4.8 फीसद कर दिया है।
इसके पहले आइएमएफ ने चालू वित्त वर्ष में 6.1 फीसद बढ़त का अनुमान जारी किया था। रिजर्व बैंक तथा राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने भी इसके पूर्व विकास दर का अनुमान घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया है। इसी तरह संयुक्त राष्ट्र ने भारत का जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 5.7 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया है।
अनेक एजेंसियों ने घटाया जीडीपी बढ़ोतरी दर का अनुमान : हाल ही में आइएमएफ के बाद इंडिया रेटिंग्स एजेंसी ने भी भारतीय जीडीपी वृद्धि दर के अनुमानों को घटाया। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने इस वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 5.5 प्रतिशत लगाया है। यह आइएमएफ के 4.8 प्रतिशत तथा राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के पांच प्रतिशत के अनुमानों से ज्यादा है। इन आंकड़ों से यह तो स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था कम खपत और कम निवेश मांग के दौर में फंस गई है।
आइएमएफ के अनुसार भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल यानी एनबीएफसी में दिक्कतों और मांग में कमी के कारण आर्थिक वृद्धि में धीमापन आ रहा है। भारत सरकार लगातार आर्थिक मंदी के लिए वैश्विक कारणों को जिम्मेदार बताती रही है। आइएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने हाल ही में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि भारत की जीडीपी में गिरावट का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। इसका आशय है कि भारत की सुस्त विकास दर की वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था की विकास की रफ्तार पर असर पड़ रहा है।
बजट से उम्मीदें : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले वर्ष जब अपना पहला बजट पेश किया था तो उस समय भी उनके लिए चुनौतियां जीडीपी दर में तीव्र गिरावट, राजकोषीय दबाव, दोहरी बैलेंस शीट की समस्याएं, एनबीएफसी, रोजगार सृजन की सुस्त रफ्तार, कृषि क्षेत्र और छोटी इकाइयों में व्याप्त तनाव और हर क्षेत्र में मांग की कमी थी। आज भी हालात जस के तस हैं और कुछ समस्याएं तो और गंभीर हो गई हैं। आज जब भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है, तो ऐसे में बजट में सरकार से यह अपेक्षा है कि वह अर्थव्यवस्था का ईमानदार आकलन पेश करने के साथ ही उसे दोबारा पटरी पर लाने की योजना भी रखे।
मांग में वृद्धि पर जोर दे सरकार : सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की थी। इसके साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक ने कई बार रेपो रेट में कटौती कर ब्याज दरों को घटाया। लेकिन इन प्रयासों का कोई विशेष परिणाम नहीं दिख रहा है। अर्थव्यवस्था का वर्तमान संकट मूलत: मांग पक्ष से संबद्ध है। कॉरपोरेट टैक्स में कमी का लाभ मांग पक्ष से संबद्ध न होकर आपूर्ति पक्ष से संबद्ध है। उपभोक्ता क्रय क्षमता में कमी के कारण मांग में कमी आ रही है। इस कारण कंपनियों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है। इस समस्या का समाधान क्या है? कॉरपोरेट टैक्स में कमी के कारण सरकार को 1.45 लाख करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ा। मांग में वृद्धि के लिए सबसे आवश्यक है कि सरकार सबसे निम्न वर्ग की क्रय क्षमता में वृद्धि करे।
आर्थिक संकट के दौरान ग्रामीण क्षेत्र की मजबूत : उदाहरण के लिए सरकार इस समय किसानों को ‘प्रधानमंत्री सम्मान निधि’ योजना के अंतर्गत छह हजार रुपये वार्षिक दे रही है। इस बजट में आवश्यक है कि सरकार इस योजना को प्राथमिकता में रखे। किसानों को प्रत्यक्ष नकदी अंतरण के तहत बजट में और ज्यादा राशि दी जानी चाहिए और उन्हें यह तय करने देना चाहिए कि वह इसे कहां खर्च करेंगे। यह ग्रामीण भारत के लिए आंशिक आय समर्थन योजना की तरह होगा। मांग पर इसका वृद्धिशील प्रभाव उल्लेखनीय होगा। वर्ष 2008 के आर्थिक संकट के दौरान ग्रामीण क्षेत्र की मजबूत स्थिति बनी हुई थी, लेकिन इस बार ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मांग की भारी कमी से जूझ रही है। ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बल देना सरकार के लिए अनिवार्य है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ‘मांग’ उत्पन्न करने के लिए ‘मनरेगा’ जैसी योजनाओं के बजट में भी वृद्धि करने की जरूरत है।
वर्ष 2019-20 में उर्वरक सब्सिडी पर 80 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इस सब्सिडी को भी और कारगर तथा लाभार्थियों के लिए बजट में लक्षित बनाए जाने के प्रयास होने चाहिए। गेहूं और धान का खरीद मूल्य भी सीधे किसानों के बैंक खाते में पहुंचाने की व्यवस्था होनी चाहिए। ओडिशा और पंजाब की राज्य सरकारें अपने राज्यों में इसी तरह की योजना लाने की कोशिश कर रही हैं। वित्त वर्ष 2020-21 के आम बजट में पूरे देश में इस तरह की योजना लाने पर विचार किया जा सकता है।
व्यक्तिगत कराधान में कटौती से मुमकिन मांग में बढ़ोतरी : मांग में वृद्धि हेतु सरकार को व्यक्तिगत कराधान में कटौती करनी चाहिए। इससे मध्यम वर्ग की क्रय क्षमता में वृद्धि होगी तथा मध्यम वर्ग बाजार में मांग वृद्धि में सक्षम होंगे। अगर सरकार कॉरपोरेट टैक्स की तुलना में व्यक्तिगत आयकर की दरों में कमी लाती, तो इसके कुछ अच्छे परिणाम अभी तक हम लोगों को दिख भी जाते।
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय मांग की भारी कमी से जूझ रही है। आगामी बजट में पूरा ध्यान इस पर लगाने की आवश्यकता है कि मांग को कैसे बढ़ाया जाए। दिग्गज सर्वे कंपनी ‘नील्सन’ की रिपोर्ट कहती है कि रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले सामान यानी एफएमसीजी की बिक्री की बढ़ोतरी दर भी लगातार गिरती जा रही है। यही कारण है कि अधिकांश देसी-विदेशी संस्थाएं भी भारत की धीमी रफ्तार के लिए मांग में कमी को जिम्मेदार बता रही हैं। मांग में कमी के कारण ही विनिर्माण क्षेत्र में लगातार गिरावट देखी जा रही है। कोर सेक्टर भी इससे बुरी तरह प्रभावित है। उम्मीद है कि बजट में सरकार मांग से संबंधित अर्थव्यवस्था की विभिन्न चुनौतियों का कोई न कोई कारगर तोड़ अवश्य निकालेगी।
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