बिहार, आलोक मिश्र। आदमी विचरणशील प्राणी है। विचरना उसकी नियति है। हाथ-पैर बांधकर उसे बैठाया नहीं जा सकता। अगर बैठाया जाता है तो घर की फजीहत बाहर आ जाती है। आजकल कोरोना के कारण जब घरों में चार बर्तन इकट्ठा हुए तो उनकी खड़खड़ पुलिस एवं महिला आयोग के कान बजाने लगी हैं। 21 दिनी पहले लॉकडाउन में ही लगभग 17 हजार फोन की घंटियां डायल 100 पर घनघना उठीं। औसत सात-आठ सौ फोन कभी दाल में नमक कम है तो कभी टीवी का रिमोट नहीं मिल रहा, कभी ननद के ताने तो कभी सास की थानेदारी को लेकर आ रहे हैं। पुलिस दो पाटों में फंस गई है। डंडे के बूते लोगों को घर के भीतर करती है, फिर घर के बवाल को प्यार से सुलझाने में लगती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कोरोना के कारण बाहर तो बाहर, घर में भी आफत है।

अभी तक डायल 100 हो या महिला आयोग, ज्यादातर मामले घरेलू हिंसा के आते थे, लेकिन इस बीच आए प्रकरणों में इनकी संख्या महज 10 फीसद ही है। बाकी मामले इसी तरह के छोटे-छोटे मसलों के हैं, जो पहले भी होते थे और दरवाजे के भीतर ही निपट जाते थे, लेकिन अब इन्हें भी पैर लग गए हैं। जबकि पुलिस का जोर उन पैरों पर ज्यादा है जो कोरोना संक्रमित के हैं और अपनी घूमंतू प्रवृत्ति से चेन बना रहे हैं। इनको ढूंढना बड़ा काम है।

अभी तक वैशाली अछूता था, लेकिन बुधवार को ऐसा मरीज सामने आया जिसकी कोई ट्रैवेल हिस्ट्री नहीं थी। सांस लेने में दिक्कत एवं टाइफायड के कारण पटना में जब 14 अप्रैल को उसकी जांच हुई तो वह पॉजिटिव निकला। वह दो साल तक गांव के बाहर नहीं निकला था, लेकिन 23 मार्च के बाद से पटना के तीन चक्करों में सौ से अधिक के संपर्क में आया। जिसमें 79 लोगों की ही पहचान हुई है, बाकी की तलाश है। उसे रोग कहां से मिला यह शोध का विषय है। शुक्रवार को उसकी मौत हो गई। कोरोना से मरने वाला वह बिहार का दूसरा मरीज है। इसे मिलाकर बिहार में संक्रमितों की संख्या 83 हो गई है और मरने वालों की दो।

अभी तक पटना, मुंगेर, बेगूसराय, नालंदा और सिवान सहित 11 जिले प्रभावित थे, लेकिन अब हाजीपुर एवं बक्सर भी इसमें शामिल हो गए हैं। गनीमत है कि मरीजों के ठीक होने का प्रतिशत बेहतर है। 83 में 37 ठीक हो चुके हैं यानी 44 फीसद से ऊपर। इसलिए देश में बिहार को केरल और छत्तीसगढ़ की श्रेणी में रखा गया है जहां मौत का आंकड़ा कम एवं ठीक होने का ज्यादा है। गंभीरता को देखते हुए सरकार ने पूरी तरह कमर कस रखी है। कोरोना प्रभावित जिलों में दरवाजे-दरवाजे स्कैनिंग शुरू है। पहले चरण में रेड जोन के सिवान, बेगूसराय, नालंदा एवं नवादा के चार लाख घरों को टारगेट किया गया है। पटना में सघन स्लम बस्तियों पर फोकस है। लॉकडाउन के पालन के लिए अतिसंवेदनशील दस इलाकों की ड्रोन से निगरानी की जा रही है। बाहर निकलने वालों पर डंडे से लेकर जुर्माने तक की कार्रवाई जारी है। सख्ती ऐसी कि उसमें गेंहू के साथ घुन भी पिस रहे, लेकिन चारा इसलिए नहीं है कि जरा सी छूट का फायदा उठाने वाले भी बाज नहीं आएंगे। इस सख्ती का विरोध भी होने लगा है। जगह-जगह पथराव की घटनाएं भी हो रही हैं।

इस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेहतर भूमिका में हैं। चुनावी जीत के लिए बेहतर रणनीति बनाने वाले नीतीश कुमार की एक खासियत यह भी है कि आपदा के समय में वे प्रभावशाली सीइओ की भूमिका में आ जाते हैं। ऐसे मौके पर वह अपने विधायी सहयोगियों की सेवा लेने के बदले कार्यपालिका के उन अधिकारियों को अधिक सक्रिय करते हैं, जो उनके निर्देश को पूरी तरह जमीनी स्तर तक पहुंचा सकें। निर्देशों को कार्यरूप दे सकें। पुराने कई उदाहरण इसकी नजीर हैं।

इस समय वह उसी रूप में हैं। अधिकारी सक्रिय हैं और कुछ मंत्री छोड़ बाकी घर में। गरीब तबके के लोगों के भोजन से लेकर राज्य के बाहर रह गए अपने लोगों की चिंता की जा रही है। अभी तक की स्थिति को देखते हुए लगने लगा है कि 20 अप्रैल तक गाड़ी कुछ-कुछ पटरी पर आ जाएगी। कृषि कार्य शुरू हो गए हैं, पैक्सों को गेहूं की खरीद के निर्देश भी दे दिए गए हैं। कुछ उद्योगों में काम भी शुरू होने की उम्मीद है। सड़क निर्माण, हर घर नल योजना, गली-गली नाली, शौचालय निर्माण, जल-जीवन-हरियाली एवं मनरेगा के तहत कार्यो में स्थानीय मजदूरों को वरीयता दिए जाने का निर्देश भी मुख्यमंत्री ने दिया है, ताकि उन्हें रोजगार मिल सके। अगर इसी तरह हालात पर नियंत्रण रहा तो जल्दी ही यहां जीवन पटरी पर लौट सकता है।

[स्थानीय संपादक, बिहार]