[ उमा भारती ]: मैं जिस परिवेश से आई हूं, मेरा बचपन जिन परिस्थितियों में बीता है और मैंने अपने आसपास की महिलाओं को छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिए जिस तरह संघर्ष करते देखा है उसे देखकर मुझे हैरानी होती है कि पिछली सरकारों को महिलाओं की वे तकलीफें क्यों नहीं दिखीं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल समझा, बल्कि उन्हें दूर करने के लिए ठोस कदम भी उठाए। खुले में शौच के लिए जाना भी एक ऐसी ही समस्या थी जिससे महिलाओं की मर्यादा और सेहत, दोनों प्रभावित होती थी। स्कूल में छात्राओं के लिए अलग शौचालय न होने से तमाम बच्चियां अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती थीं। इसके तमाम नुकसान उन्हें उठाने पड़ते थे। पढ़ाई बीच में ही छूट जाने से उनका भविष्य अंधकार में चला जाता था, लेकिन किसी का ध्यान महिलाओं-बच्चियों से जुड़ी इन समस्याओं की ओर नहीं गया।

रक्षाबंधन पर मैैं यह खासतौर पर रेखांकित करना चाहूंगी कि यह प्रधानमंत्री मोदी ही थे जिन्होंने लालकिले की प्राचीर से प्रण किया और स्वच्छता को जन आंदोलन बना दिया। पिछले चार वर्षो में आठ करोड़ से ज्यादा शौचालयों का निर्माण हुआ है। देश के 4.2 लाख गांव, 429 जिले और 19 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश खुले में शौच मुक्त घोषित हो चुके हैं।

स्वच्छता और शौचालय से सिर्फ सम्मान ही नहीं स्वास्थ्य भी जुड़ा है। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के मुताबिक खुले में शौच मुक्त जगहों पर महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर हुआ है। यूनिसेफ का कहना है कि खुले में शौच मुक्त गांव के हर घर को स्वास्थ्य एवं अन्य खर्चों पर 50 हजार रुपये तक की बचत होती है। सिर्फ शौचालय नहीं, मोदी सरकार ने महिलाओं तक साफ स्वच्छ ईंधन पहुंचाने का प्रण लिया और ‘उज्ज्वला योजना’ के माध्यम से अब तक पांच करोड़ से अधिक महिलाओं तक मुफ्त गैस कनेक्शन पहुंचाया। इसने महिलाओं की सेहत के साथ ही पर्यावरण को भी फायदा पहुंचाया है। नीति स्पष्ट और नीयत नेक हो तो असंभव भी संभव हो जाता है। प्रधानमंत्री मोदी जब यह कहते हैं कि, ‘महिलाओं के नेतृत्व में हो देश का विकास’ तो यह सिर्फ उनका कथन नहीं होता। वह इस कथन को सच्चाई में बदलने की राह भी बना रहे होते हैं।

मुद्रा, स्टैंड अप इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, जन-धन ये सब मात्र योजनाओं के नाम नहीं हैं। ये वे मार्ग हैं जिन पर चलकर महिलाएं आर्थिक स्वावलंबन के लक्ष्य को विजय कर रही हैं। जब मोदी सरकार ने उन करोड़ों लोगों को बैंक से जोड़ने का निश्चय किया जो बैंक के दरवाजे तक जाने से डरते थे तो उनके लिए जन-धन योजना अस्तित्व में आई। आज देशभर में 32 करोड़ से भी अधिक जन-धन खाते हैं जिनमें 17 करोड़ से अधिक खाते महिलाओं के हैं। इसी तरह मुद्रा योजना का हाथ थामकर आज देश की नौ करोड़ से अधिक महिलाएं अपने हुनर को अपनी तरक्की की सीढ़ी बना चुकी हैं। एक तरह से विचार से लेकर व्यवहार तक में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है।

‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ से बेटे-बेटी में भेद मिटा है। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के जरिये गर्भवतियों का स्वास्थ्य सुनिश्चित हुआ है। ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ से बेटियों का भविष्य सुरक्षित बना है। इसके 1.26 करोड़ से ज्यादा खातों में 20,000 करोड़ रुपये जमा हैं। ‘प्रगति’, ‘उड़ान’ और ‘स्वामी विवेकानंद सिंगल गर्ल चाइल्ड’ जैसी छात्रवृत्तियों से बेटियों के असंख्य सपनों को वृहद आकाश मिला है।

मोदी सरकार जब मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करती है तो कामकाजी मां की भावनाओं का सम्मान भी करती है। प्रधानमंत्री जब तीन तलाक के मसले पर मुस्लिम बहनों के साथ खड़े दिखते हैं तो इसका अर्थ होता है कि वह महिला अधिकार और सम्मान की कद्र करते हैं। जब वह हर सरकारी स्कूल में बच्चियों के लिए अलग शौचालय अनिवार्य करते हैं तो इसका अर्थ है कि वह बच्चियों के स्वास्थ्य और शिक्षा, दोनों के प्रति गंभीर हैं।

महिला सशक्तीकरण दशकों तक राजनीति के गलियारे में मात्र स्वार्थसिद्धि का हथियार बना रहा। जब आवश्यकता हुई तो उसे निकाल लिया और जब काम हो गया तो वापस ठंडे बस्ते में रख दिया, लेकिन आज इस शब्द के वास्तविक अर्थ न सिर्फ समझ आने लगे हैं, बल्कि दिख भी रहे हैं। यह सब हुआ है प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से जिन्होंने कथन को कर्म में बदला और देश की महिलाओं को सही अर्थ में सशक्त करने की दिशा में काम किया। उनके नेतृत्व में महिला सशक्तीकरण की न सिर्फ परिभाषा बदली है, बल्कि धरातल पर साकार स्वरूप भी दिख रहा है। आज देश की बेटियां लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं, विदेशी धरती पर खेलों में परचम लहरा रही हैं, सागर परिक्रमा का साहस दिखा रही हैं। यह सब एक शुभ संकेत हैं, महिला सशक्तीकरण के स्वप्न के पूरे होने का, महिलाओं के नेतृत्व में नए भारत के बनने और विश्व पटल पर चमकने का।

[ लेखिका केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री हैं ]