डॉ. मोनिका शर्मा। हाल में आगरा में एक महिला ने फेसबुक प्रोफाइल में अपनी उम्र 38 की जगह 18 लिखी, फर्जी फोटो लगाई और एक किशोर से दोस्ती की। फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू किया और फिर उसे मिलने बुलाया। इस बीच किशोर ने महिला को ऑनलाइन खरीदारी कर 20 हजार रुपये से ज्यादा के उपहार भी भेजे।

साइबर संसार के जुड़ाव का अफसोसनाक पहलू ही कहिए कि किशोर इस अनजान महिला से शादी करना चाह रहा था। फिर महिला की हकीकत जानी तो वह किशोर तनावग्रस्त होकर आत्महत्या करने की बात कहने लगा। किसी तरह काउंसिलिंग कर उस बच्चे के बिखरते मन और जीवन को बचाया जा सका।आमतौर पर वर्चुअल दुनिया के अनदेखे-अनजाने रिश्तों से जुड़ी ऐसी खबरें वर्चुअल दुनिया में ही मजाक बनकर रह जाती हैं, पर ऐसे मामलों से आत्महत्या, ब्लैकमेलिंग और सबसे बढ़कर कम उम्र के बच्चों के भावनात्मक टूटन जैसे पहलू भी जुड़े हैं।

यही वजह है कि कभी-कभी ऐसे ऑनलाइन मेलजोल के बाद हकीकत का सामना करने से उपजा अपराधबोध और डर बहुत दुखद मोड़ पर जाकर खत्म होता है। अधिकतर मामलों में घर-परिवार के लोग समझ तक नहीं समझ पाते कि बच्चे शोषण और भटकाव के किस फेर में फंसे हैं। आमतौर पर किशोर लड़के-लड़कियां ऐसे आभासी मेलजोल और संवाद को छुपाकर रखते हैं। साथ ही स्क्रीन के उस पार बैठे लोग पूरी रणनीति बनाकर बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं।

अपने बारे में फर्जी जानकारियां देते हैं और किशोरों से उनके पारिवारिक रिश्तों-नातों तक की जानकारियां निकलवा लेते हैं। खुद बच्चों के या उनके परिवारजनों के आपत्तिजनक चित्र भी ऑनलाइन मांगा लेते हैं। पूरी चालबाजी के साथ तस्वीरों को वायरल करने की धमकी देकर ठगी करते हैं। क्राई संस्था की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे यहां इंटरनेट इस्तेमाल करने वाला हर 10 में से एक बच्चा ऑनलाइन प्रताड़ना का शिकार है।

ऑनलाइन उत्पीड़न के मामले में भारत दुनियाभर में तीसरे पायदान पर है।इन दिनों बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियां बढ़ गई हैं। स्कूल, ट्यूशन और अन्य कक्षाएं ऑनलाइन ही संचालित हो रही हैं। ऐसे में अभिभावकों का सजग रहना आवश्यक है। आज के दौर में बच्चों को तकनीक से दूर नहीं किया जा सकता, पर पूरी दुनिया से जोड़ने वाले साइबर संसार में मौजूद रहते हुए सही मार्गदर्शन मिलना बेहद जरूरी है।

कहना गलत नहीं होगा कि बच्चों को ऐसे जाल से अभिभावक ही बचा सकते हैं। तकनीक और सूचनाओं के अबाध प्रवाह के दौर में जरूरी है कि माता-पिता बच्चों से असल दुनिया के रिश्तों और दोस्तों की तरह ही साइबर दुनिया की गतिविधियों को लेकर भी संवाद करें। बच्चों के व्यवहार में आए बदलावों को समय रहते समङों और समझाइश दें।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)