[ दिव्य कुमार सोती ]: आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह घोषणा कर दी कि अब हमारा यह सिद्धांत है कि हम आतंकियों को उनके घर में घुसकर मारेंगे। ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रधानमंत्री का यह बयान उनकी अध्यक्षता में हुई राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद आया है। मालूम हो कि राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे से संबंधित सभी विभागों के प्रतिनिधि होते हैं। ऐसे में यह मानकर चलिए कि प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा यह एलान सरकार में हर स्तर पर गंभीर चिंतन-मनन के बाद किया गया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के जानकार लंबे समय से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से निपटने के लिए इस प्रकार के सामरिक सिद्धांत की मांग करते रहे हैं। वैसे भी अब यह सिर्फ सिद्धांत तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसे बालाकोट में भारतीय वायु सेना ने एयर स्ट्राइक के जरिये धरातल पर उतारने के बाद व्यावहारिक रूप भी दे दिया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में कहें तो अभी बस ‘पायलट प्रोजेक्ट’ यानी एक प्रयोग भर हुआ है और इसे आगे ‘स्केल अप’ यानी इसका दायरा बढ़ाया जाना है।

इसमें कोई दोराय नहीं है कि चार दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जख्मी होते रहने के बावजूद पलटवार न करने की भारत की नीति को पलटकर और पाकिस्तान की खोखली परमाणु धमकियों का तिलिस्म तोड़कर नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल देश के सामरिक इतिहास के बेहद अहम किरदार बन गए हैं जिन्हें हमेशा यदा रखा जाएगा। जब प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि हमारे लिए हर जवान के द्वारा बहाए गए खून की कीमत है तो यह न सिर्फ बेहद पवित्र संकल्प की अभिव्यक्ति है, बल्कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा प्रयासों के लिए एक ऊंचा मानदंड भी है। इस सिद्धांत को भारत व्यवहार में लागू करता रहा तो सही मायनों में विश्व स्तर पर एक सैन्य महाशक्ति के रूप में स्थान बना लेगा। आने वाले समय में इस मानदंड पर खरा उतरने के लिए हमें हर स्तर पर न सिर्फ पराक्रम का प्रदर्शन करना होगा, बल्कि बेहद चतुराई से भी काम लेना होगा।

इसकी उम्मीद कम ही है कि पाकिस्तान निकट भविष्य में भारत के खिलाफ अपने आतंकी गुटों का इस्तेमाल बंद करेगा। बस पाक फौज दोबारा से गुणा-भाग जरूर करेगी कि किस तरह आतंक को प्रायोजित करने की अपनी नीति को जारी रखा जाए और किस तरह आतंकी संगठनों को भारतीय हमले से बचाया जाए। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ द्वारा यह भी कोशिश की जाएगी कि भारत में आतंकी हमले इस तरह के स्लीपर सेल्स से कराए जाएं ताकि साजिश के तार पाकिस्तान से मुश्किल से ही जुड़ पाएं। और फिर भारत की जवाबी कार्रवाई को युद्ध उन्माद का हिस्सा बताया जा सके। ऐसा भी संभव है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन अफगानिस्तान और ईरान में भारतीयों को निशाना बनाने की कोशिश करें।

जिस प्रकार इस बार पाकिस्तान के सतर्क होने के चलते सर्जिकल स्ट्राइक दोहराना जोखिम भरा था उसी प्रकार अगले आतंकी हमले की सूरत में कुछ दिन बाद एयर स्ट्राइक करने में भी जोखिम कहीं ज्यादा होगा, क्योंकि पाकिस्तान इसे लेकर सजग होगा। ऐसे में भारत को किसी बड़े आतंकी हमले की सूरत में कुछ घंटों में ही पहले से चिन्हित किए गए आतंकी ठिकानों पर जवाबी हमला करने की क्षमता भी विकसित करनी होगी।

चाहे वर्ष 2016 में उड़ी आतंकी हमले के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राइक हो या पुलवामा हमले के बाद अब बालाकोट में वायुसेना द्वारा की गई कार्रवाई, दोनों ही ऑपरेशन आतंकी हमले होने के बाद उसके जवाब में किए गए, पर धीरे-धीरे हमें इससे आगे भी जाना होगा। जब-जब हमारी खुफिया एजेंसियां यह बताएं कि पाकिस्तान में किसी खास जगह आतंकी इकट्ठे हैं और भारत पर बड़े आतंकी हमलों की साजिश रची जा रही है तो हम तभी वहां हमला करें। यह भी संभव है। इसके लिए जितना सैन्य तनाव अभी है उसे धीरे-धीरे सामान्य बनाना होगा। और साथ ही हमारी सैन्य कार्रवाई की सूरत में होने वाले जवाबी पाकिस्तानी हमलों को संयमपूर्वक नाकाम बनाते रहना होगा।

27 फरवरी को पाक वायु सेना के हमले से जैसे हमारी सेनाएं और सरकार निपटीं वह इसका सटीक उदाहरण है। जहां आतंकी शिविरों पर हमारे एयर स्ट्राइक के जवाब में पाक वायु सेना के हमारे सैन्य ठिकानों पर किए गए हमले के प्रयास को नाकाम कर दिया गया वहीं हमने जवाब में पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने से गुरेज किया। हालांकि ऐसा नहीं है कि भारतीय सैनिक ठिकानों पर बमबारी करने की कोशिश का पाकिस्तान को कोई खामियाजा नहीं उठाना पड़ा। विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की रिहाई के बाद नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना की कार्रवाई में पाकिस्तान को खासा नुकसान उठाना पड़ा है जिसे वह छुपा रहा है। यह दोनों परमाणु ताकतों के बीच सैन्य कार्रवाई होने के बावजूद सैन्य तनाव के नियंत्रण का एक बेमिसाल उदाहरण है।

भारत ने चीजों को उस तरफ जाने ही नहीं दिया कि पाकिस्तान परमाणु धमकी दोहरा भी पाए। पाकिस्तान का नाकाम जवाबी हमला पारंपरिक स्तर पर ही रहा और सैन्य तनाव एक दायरे में सिमटकर रह गया है। हालांकि यह दायरा इतना बड़ा जरूर है कि भारत आसानी से समय-समय पर आतंकवादी शिविरों पर बालाकोट जैसी कार्रवाइयां दोहराता रह सकता है।

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस समय बहुत ज्यादा बुरी हालत में है। वह ज्यादा समय भारत द्वारा नियंत्रित इस सैन्य तनाव के चलते होने वाले खर्च और नुकसान को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है। इसके बावजूद हमें हर पाकिस्तानी दुस्साहस के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसे कि बालाकोट में भारतीय वायु सेना की कार्रवाई के जवाब में भारतीय सेना के ब्रिगेड और बटालियन हेडक्वार्टर पर बमबारी की कोशिश के पीछे पाकिस्तान की क्या साजिश थी? क्या यह हमला सफल हो जाता तो पाक फौज इस इलाके में अपनी कमांड से कटी भारतीय चौकियों पर हमला करती?

एक रणनीति के तहत हमें अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को यह समझाना होगा कि किस तरह पाकिस्तान के कब्जे में कुछ सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाके बने रहने के कारण आतंकवाद पनप रहा है। इनमें पीओके, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के कुछ इलाके खास हैं जहां से भारत, अफगानिस्तान और ईरान में आतंकवाद फैलाया जाता है। ये इलाके पाकिस्तान के हाथ से निकल जाएं, यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

( लेखक काउंसिल फॉर स्ट्रैटेजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं )