रांची, प्रदीप कुमार शुक्ला। बेशक देर से ही सही, राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों में कोरोना उपचार की दरें निर्धारित कर दी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब निजी अस्पताल मनमानी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि पूरे राज्य से ऐसी खबरें लगातार आ रही थीं कि कोरोना संक्रमितों के उपचार के लिए एक-एक दिन में मरीजों से इलाज के नाम पर 50 हजार रुपये तक वसूले जा रहे हैं। सरकार के इस निर्णय के बाद प्रमुख विपक्षी दल भाजपा सहित सत्तापक्ष के दलों में इसका श्रेय लेने की होड़ लग गई है।

हर दल अपनी पीठ थपथपा रहा है, लेकिन यह भूल गए कि राज्य में इसी सप्ताह एक बच्चे और एक भाजपा नेता की मौत सिर्फ इसलिए हो गई, क्योंकि कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते उन्हें किसी भी निजी अस्पताल ने इलाज के लिए भर्ती ही नहीं किया। यह अफसोसजनक है, लेकिन ऐसी मौतों पर किसी भी राजनीतिक दल की तंद्रा नहीं टूटती है। ऐसे भी मामले सामने आए, जब मरीज की मौत के बाद अस्पतालों ने बिल चुकाए बगैर अस्पताल से मरीज का शव तक नहीं ले जाने दिया।

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने स्वीकार किया है कि ऐसी शिकायतें लगातार मिल रही थीं कि निजी अस्पताल मरीजों का आíथक दोहन कर रहे हैं। सवाल उठता है यदि ऐसा हो रहा था तो यह फैसला लेने में इतना विलंब क्यों हुआ? लगभग सभी पड़ोसी राज्यों में यह निर्णय काफी पहले हो चुका है। भाजपा पिछले कुछ दिनों से इसे मुद्दा बनाए हुए थी। भाजपा का आरोप है कि सरकार अब तक सो रही थी। इसके उलट कांग्रेस इस देरी का ठीकरा अफसरों पर फोड़ रही है। कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर का आरोप है कि अभी भी अफसरशाही में भाजपा मानसिकता के लोग हैं जो जान-बूझकर निर्णय लेने में देरी करते हैं। पिछले पांच वर्षो में निजी अस्पतालों के माध्यम से संगठित लूट हुई है जो अभी तक जारी है।

सवाल उठता है कि जब नई सरकार को यह पता था कि लूट हो रही है तो निर्णय लेने में इतना विलंब क्यों? यदि अफसर इसमें रोड़ा अटका रहे थे तो उनकी पहचान कर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? अब तो गठबंधन सरकार को बने भी आठ महीने बीत चुके हैं। उधर, झामुमो भी कई मुद्दों को ले भाजपा पर हमलावर है और उस पर तुच्छ राजनीति करने का आरोप मढ़ रही है। खैर, आरोप-प्रत्यारोप के बीच सरकार ने जो नई दरें निर्धारित की हैं उसके अनुसार निजी अस्पताल अब कोरोना संक्रमितों के उपचार के लिए एक दिन में इलाज के नाम पर मरीजों से अधिकतम 18 हजार रुपये ले सकते हैं। राज्य के सभी जिलों को तीन श्रेणियों में बांटते हुए फीस की दरें तय की गई हैं, वहीं उनके निर्धारण में सुविधाओं-संसाधनों के आधार पर अस्पतालों को दो वर्ग में बांटा गया है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसी अस्पताल में निर्धारित दर से अधिक पैसे लिए गए तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। उम्मीद है कि अब आम लोगों को लूट-खसोट से निजात मिलेगी, लेकिन इससे भी बड़ा मुद्दा कोरोना संक्रमितों के उपचार में बरती जा रही घोर लापरवाही का है।

रांची जिले के ओरमांझी थाना क्षेत्र के बसुआ गांव में एक दिल दहलाने वाली घटना घटी, जिसने स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए। यहां गांव का पांच वर्षीय बालक प्रिंस खेलते समय कुएं में गिर गया। बच्चे को बाहर निकाला गया तो उसकी सांसें चल रही थीं। घरवाले उसे लेकर नजदीक के निजी अस्पताल पहुंचे। बच्चे को कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते भर्ती नहीं किया गया। परिजनों ने करीब आधा दर्जन अस्पतालों के चक्कर लगाए, हर जगह कोई न कोई बहाना बनाकर उन्हें लौटा दिया गया। आखिर में बच्चे ने पिता की गोद में ही दम तोड़ दिया। इसी तरह पूर्वी सिंहभूम में भाजपा नेता हराधन दास मधुमेह का स्तर बढ़ने के कारण गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। परिजन उन्हें उपचार के लिए जमशेदपुर के दो बड़े अस्पतालों में ले गए, लेकिन बेड खाली न होने का हवाला देकर उन्हें भर्ती नहीं किया गया। अंतत: उनकी मौत हो गई। राज्यभर से प्रतिदिन ऐसी सूचनाएं आ रही हैं, जब कोरोना संक्रमित होने की आशंका को लेकर निजी अस्पताल मरीजों को भर्ती नहीं कर रहे हैं। सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हर किसी को उपचार मिल सके। स्वास्थ्य मंत्री लगातार चेतावनियां जारी कर रहे हैं, लेकिन अभी तक ऐसे किसी निजी अस्पताल पर कार्रवाई नहीं की गई है।

शुरुआत में केंद्र के प्रति नरम रहे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन केंद्र पर पूरी तरह हमलावर हैं। वह आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र तमाम तिकड़मों के जरिये राज्यों को उलझाए हुए है। आत्मनिर्भर भारत के नाम पर देश की बड़ी कंपनियों के निजीकरण की तैयारी चल रही है।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]