प्रदीप। Double Mutant Variant हमारा देश आज कोरोना महामारी की दूसरी घातक लहर का सामना कर रहा है। चिंता की बात यह है कि इस समय कोरोना संक्रमण के हर दिन आने वाले नए मामलों में हमारा देश पूरी दुनिया में सबसे ऊपर है। संक्रमण की व्यापकता के आगे हमारी सारी तैयारियां नाकाफी साबित हो रही हैं। कोविड-19 के साथ-साथ भारत सहित पूरी दुनिया एक और महामारी से भी जूझ रही है, जिसे ‘इंफोडेमिक’ या ‘सूचना महामारी’ कहा जा रहा है। जहां एक ओर सही सूचनाएं आम लोगों की चिंताओं को कम करती है, वहीं दूसरी ओर डिजिटल माध्यम से फैलनेवाले दुष्प्रचार और अधकचरी जानकारियां लोगों की परेशानियां बढ़ाने की वजह बनती हैं। दुनिया भर में कोरोना से जुड़ी अफवाह के कारण हजारों लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है।

इस सूचना महामारी के चलते कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कोविड की गंभीरता और प्रभाविता को कम करके आंकते हैं। साथ ही, इससे बचाव के उपायों की अनदेखी करते हैं और यहां तक कि इसके वजूद को ही नकारते हैं। मसलन, ऐसे मिथकों और कॉन्सपिरेसी-सिद्धांतों को इंटरनेट मीडिया के विविध प्लेटफॉर्म के जरिये कुछ लोगों द्वारा खूब प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है, जिनमें यह दावा किया जाता है कि कोरोना वायरस को चीन की प्रयोगशाला में बनाया गया है, उच्च वर्ग के लोगों ने ताकत और मुनाफे के लिए वायरस का झूठा प्रचार किया है, चाइनीज फूड या मांस खाने से लोग कोरोना की गिरफ्त में आ जाते हैं, कोविड-19 मौसमी फ्लू से ज्यादा खतरनाक नहीं है या फिर मामूली सर्दी जुकाम के जैसा ही है, सभी वैक्सीन असुरक्षित हैं और वे कोविड-19 से ज्यादा घातक हैं, धूमपान, शराब और गांजा के सेवन से कोरोना से बचा जा सकता है, कोरोना ‘फाइव जी टेस्टिंग’ का परिणाम है वगैरह-वगैरह। कुल मिलाकर हमारे चारों ओर कोविड से संबंधित व्यापक सूचनाओं और खबरों का एक विस्फोट हो रहा है।

कोरोना वायरस उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जो अपने अज्ञान और अंधविश्वास को समझ एवं ज्ञानरूपी हथियार के तौर पर पेश करके, अक्सर धार्मिक, रूढ़िवादी और सांस्कृतिक गर्व की चासनी चढ़ाकर दुनिया के समक्ष अपने ज्ञान का भौंडा प्रदर्शन करना चाहते हैं। आज इंटरनेट मीडिया ने कई लोगों को डॉक्टर, विज्ञानी, कोरोना विशेषज्ञ और सर्वज्ञानी बना दिया है। वे डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके भ्रामक सूचनाएं या जानकारियां फैला कर शिक्षित और अशिक्षित दोनों को ही बेहद खतरनाक तरीकों से गुमराह कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर फिलहाल देश के कई राज्यों में आक्सीजन की किल्लत है तो कई स्वयंभू विशेषज्ञ और विद्वान वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से लोगों को आक्सीजन सैचुरेशन लेवल बढ़ाने के लिए ऐसे कई घरेलू नुस्खे बता रहे हैं जो बिल्कुल भी कारगर नहीं हैं। जड़ी-बूटियों, नींबू के रस, नेबुलाइजर, ध्यान-योग से आक्सीजन लेवल बढ़ाने के दावे कुछ ऐसी ही बेतुकी और भ्रामक सूचनाएं हैं, जो आजमाने वालों के लिए जानलेवा भी हो सकती हैं।

‘इंफोडेमिक’ के फैलाव और हालात को जटिल व खतरनाक बनाने वाले चार मुख्य कारक हैं। पहला, इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म की बदौलत सूचना प्रसार की तीव्र गति। दूसरा, इंटरनेट के अथाह ज्ञान के भंडार तक सबकी आसान पहुंच होना। तीसरा, सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण के जरिये कॉन्सपिरेसी सिद्धांतों का प्रचार। चौथा, इंटरनेट मीडिया पर भ्रामक पोस्ट और वीडियो चिंता व आशा के चलते फैल रही हैं, और जिंदा रहने के लिए हमारे दिमाग की एक प्रवृत्ति खतरों को बड़े रूप में देखने की है। ऐसा हमेशा महामारी, आपदा, अकाल और युद्ध के समय होता है। इस समय देश ही नहीं, पूरी दुनिया एक मुश्किल दौर से गुजर रही है। मौजूदा वक्त में अनहोनी का डर, आशंका, घबराहट और बेचैनी लोगों में घर कर गई है, ऐसे में हमें सुनिश्चित करना होगा कि इस डर और बेचैनी को बढ़ाने में हमारा किसी तरह का कोई योगदान न हो।

(लेखक विज्ञान के जानकार हैं)