संजय श्रीवास्तव। National Science Day 2020 महिला विज्ञान स्नातकों के मामले में अव्वल अपना देश महिलाओं को वैज्ञानिक संस्थानों में काम देने में सूची में निचले पायदान पर है और विज्ञानी महिला कार्यबल के मामले में 19वें नंबर पर है। विज्ञान तकनीक के गहन शोध विकास में देश की महिलाओं क्या गत है इस के लिए अलग शोध करना पड़ेगा। देश में विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए हर साल अलग-अलग थीम के साथ राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है, इस बार की थीम है, वूमेन इन साइंस

नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक सीवी रमन की उपलब्धि को विस्मृत न होने देना भी राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का एक मुख्य उद्देश्य है। सीवी रमन को जिस रमन प्रभाव पर नोबेल पुरस्कार मिला उसके बारे में आम लोगों की जानकारी और विस्मृति की बात दूर है, विज्ञान पढ़ने वाले आम विद्यार्थी भी इस तरीके से परिचित नहीं हैं। हो सकता है कि यह घटना भी कम लोगों को पता हो कि जब सीवी रमन प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बंगलुरु के निदेशक थे तब कमला भगत ने बड़ी उम्मीद से इस संस्थान में अपने प्रवेश का आवेदन दिया था।

सीवी रमन ने उसे नामंजूर कर दिया। कमला भगत का देश की पहली महिला विज्ञान शोधार्थी बनने का सपना टूट गया। यह इन्कार इसलिए नहीं किया गया था कि आवेदनकर्ता की प्रतिभा, कौशल, दक्षता, अध्ययन अथवा ज्ञान में कहीं कोई कमी थी, बल्कि इसलिए कि आवेदन महिला का था और इंस्टीट्यूट में किसी महिला के रहने की जगह नहीं थी।

इतने बड़े संस्थान के निर्माण से उसके प्रतिष्ठित होने तक यह नहीं सोचा गया कि देश में कभी कोई महिला भी विज्ञान की अध्येता बनेगी। यह 1930 की बात थी। लेकिन स्थितियां 90 बरसों में बदली हैं, ऐसा मुकम्मल तौर पर कहना मुश्किल है। विज्ञान, तकनीक, वैज्ञानिक शोध, इंजीनियरिंग, गणित के क्षेत्र में लैंगिक भेद और विषमता व्यापक रूप से कायम है। आंकड़े बताते हैं कि बीते एक दशक के दौरान विज्ञान तकनीक के क्षेत्र में महिला पुरुष की दूरी चार फीसद से ज्यादा कम नहीं हो पाई है।

‘वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम’ का कहना है कि हमें इस दर से इसको पाटने में सौ साल लगेंगे। बहुत सी वजहें हैं जिनके चलते महिलाओं का विज्ञान तकनीक के क्षेत्र में आना आवश्यक है। महिलाओं की समुचित हिस्सेदारी के बिना देश के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य पाना संभव नहीं है। इसके लिए महिला वैज्ञानिकों के लिए अवसर पैदा करना और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना जरूरी है। पर देश में वैज्ञानिक शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में महिलाओं का उत्कृष्ट योगदान है और क्षमता कई बार प्रमाणित होने के बावजूद उन्हें समुचित प्रोत्साहन व अवसर नहीं मिला।

विज्ञान से संबद्ध संस्थाओं में महिलाओं की मौजूदगी के मामले में भारत 69 देशों की सूची में निचले पायदान पर है। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में 2013 में कुल 864 सदस्यों में सिर्फ 52 महिलाएं थीं। आज भी आनुपातिक रूप से परिदृश्य कम ही बदला है। भारत की तुलना में अमेरिका, स्विट्जरलैंड और स्वीडन की राष्ट्रीय अकादमी में 47 फीसद महिलाएं हैं। देश में महिलाएं अमूमन मुख्यधारा के विज्ञान से दूर हैं, उन्हें प्रमुख वैज्ञानिक के रूप में काम करने का अवसर नहीं मिलता। देश के 620 संस्थानों जैसे आइआइटी, एनआइटी, इसरो, डीआरडीओ में वैज्ञानिक और प्रशासनिक विंग में महिला कार्यबल में 20 फीसद से कम हैं। यह स्थिति तब है जब विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में हम दुनिया में सबसे ज्यादा महिला स्नातक पैदा करते हैं।

तब आखिर इस बात का रोना क्यों है कि विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का टोटा है। सच्चाई यह है कि दुनिया भर की विज्ञान तकनीक में स्नातक युवतियों का 44 फीसद यहां रहता जरूर है, मगर भारी संख्या में ये स्नातक लड़कियां कैरियर बनाने की दिशा में बढ़ने की बजाय शादी करके घर बसा लेती हैं। कुछ रेलवे, बैंक और प्रबंधन तथा दूसरे गैर वैज्ञानिक पढ़ाई, कोर्सेज और नौकरियों की तरफ मुड़ जाती हैं। इंजीनियरिंग, मेडिकल आइटी, दंत चिकित्सा, पैरामेडिक और जीवविज्ञान पढ़ाई की तरफ बढ़ने वालों की संख्या फिर भी कुछ होती है, मगर भौतिकी, रसायन, गणित, प्रकृति विज्ञान की तरफ बढ़ने वालों का प्रतिशत न्यून है।

विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में महिलाओं को दिया जाए प्रोत्साहन : ग्रेजुएट पैदा करने में हम दुनिया में अव्वल मगर काम देने में हमारा नंबर 19वां है, वह भी तब जब सरकार ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में महिलाओं को प्रोत्साहन देने की कई योजनाएं चला रखी हैं। जिन 15 फीसद को विज्ञान की पढ़ाई के बदौलत उनके क्षेत्र में काम मिलता भी है उनमें से आधी महिलाएं ही हैं, जो सीधे सीधे शोध, विकास इत्यादि से जुड़ी हैं। यही वजह है कि विज्ञान, तकनीक और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में महिलाओं मौजूदगी नगण्य है।

चिकित्सा, सूचना तकनीक और कंप्यूटर इत्यादि के पेशे से जुड़ी कुछ महिलाएं दिखती हैं, लेकिन बाकी क्षेत्रों में महिलाएं नदारद क्यों हैं? हालांकि सरकारी आंकड़े इस दिशा में आनुपातिक बढ़त के आंकड़े और आजादी के पहले से अब तक की महिला वैज्ञानिक विभूतियों की सूची जरूर पेश कर देंगे। साथ ही कुछ अंतरराराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय विज्ञानी और उद्यमी महिलाओं का जिक्र करके मान लिया जाएगा कि अपने देश में इस क्षेत्र की तस्वीर गुलाबी है। लेकिन हकीकत इससे उलट है।- (ईआरसी)

[विज्ञान विषयों के पत्रकार]