बिहार, आलोक मिश्र। सब समय का खेल है। कुछ समय पहले कोरोना की चर्चा थमने लगी थी और चुनाव जोर पकड़ने लगा था। लेकिन अब कोरोना फिर हावी हो गया है और चुनावी चर्चा हवा हो गई है। पहले लॉकडाउन से अनलॉक की तरफ बढ़े और फिर आंशिक लॉकडाउन से होते हुए पूर्ण लॉकडाउन पर लौट आए। चेहरे से गले पर लटक आए मास्क फिर चढ़ गए हैं चेहरों पर। चुनावी तैयारियों में जुटे राजनीतिक दलों के तमाम नेता और कार्यकर्ता इसकी चपेट में आ चुके हैं। चाहे राजभवन हो, मुख्यमंत्री निवास होए सरकारी कार्यालय हों या अस्पताल, हर जगह कोरोना की दस्तक है और हर जगह उसी का खौफ। बढ़ती संख्या डरा रही है तो ठीक होने वालों का प्रतिशत दिलासा दे रहा है। बस, इसी सब के बीच झूल रही है जिंदगी।

जब अनलॉक हुआ तो लगने लगा था कि नवंबर में नई सरकार मिल जाएगी। सभी दल तैयारी में जुट गए थे। हालांकि जब अनलॉक में संख्या बढ़ने लगी तो विपक्षी दल चुनाव टालने पर जोर देने लगे। राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने इस विरोध की शुरुआत की और उसके बाद एक-एक कर सारे विपक्षी दल टालने के पक्ष में आ गए। नौ जुलाई से जब पटना सहित कुछ जिलों में आंशिक लॉकडाउन हुआ तो तेजस्वी का स्वर और मुखर हो गया। समय पर चुनाव के पैरोकार एनडीए के घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी तेजस्वी के सुर में सुर मिलाकर इसको और धार दे दी।

हालांकि चुनाव आयोग की तैयारी को देखते हुए बाद में विरोधियों के बोल भी नरम पड़ गए। अब महागठबंधन के दल मांग कर रहे हैं कि चुनाव हो तो परंपरागत तरीके से और निष्पक्ष, साथ ही पुराने तरीके से प्रचार की छूट मिले। विपक्ष के बदले सुर के पीछे कारण भी है। कोरोना के कारण जिस तरह पैक्सों का चुनाव स्थगित हुआ है, उसी तरह हो सकता है कि आयोग ही चुनाव टाल दे। ऐसे में सत्तापक्ष चुनाव टलवाने का आरोप भी नहीं लगा पाएगा और पिछले बोल जनता का हिमायती भी बना देंगे। बढ़ती संख्या को देखते हुए ऐसे आसार बनते भी दिखाई दे रहे हैं।

कोरोना के कारण बिहार में 31 जुलाई तक पूर्ण लॉकडाउन हो गया है। इस समय सुíखयों में केवल और केवल कोरोना है। राजधानी पटना की स्थिति सबसे खराब है। तीन-तीन, चार-चार सौ तक मरीज निकल रहे हैं। एक के बाद एक इलाका इसकी चपेट में आता जा रहा है। पिछले पखवाड़े भाजपा के प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र यादव आए थे चुनाव की गति को तेज करने। उन्होंने कई बैठकें कर डालीं। उससे संगठन को धार कितनी मिली यह तो पता नहीं, लेकिन दो दर्जन से अधिक नेताओं के पॉजिटिव होने की सूचना हवा में तैर गई।

फिलहाल भाजपा कार्यालय बंद है और तमाम नेता क्वारंटाइन हैं। जो भी विधायक क्षेत्र में निकला, वही चपेट में आ गया। हर दल में यही हाल है और मुद्दे भूल कोरोना की ही चर्चा है। राजद और कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों की गतिविधियां ठप पड़ गई हैं। केवल जदयू थोड़ा-बहुत सक्रिय है, लेकिन वह भी वर्चुअल मीटिंग के सहारे, जिससे कार्यकर्ता ही जुड़ते हैं, जनता बिल्कुल नहीं। यही हाल रहा तो नेता व कार्यकर्ता एक तो जनता के बीच जाएंगे नहीं और अगर जाते हैं तो जनता पास नहीं आने वाली। ऐसी स्थिति किसी को रास नहीं आने वाली।

फिलहाल चुनाव आयोग अपनी तैयारी में जुटा है। कोरोना के कारण पहले 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को पोस्टल बैलट की सुविधा पर चुनाव आयोग विचार कर रहा था। विपक्षी दल इसके विरोध में थे, उन्हें इसमें घपले की आशंका नजर आ रही थी और इसीलिए वे परंपरागत चुनाव करने की मांग कर रहे थे। गुरुवार को चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया कि 80 वर्ष से ऊपर के लोगों को ही यह सुविधा मिलेगी। आयोग के इस निर्णय से विपक्षी दल अब संतुष्ट हैं। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए इन वोटरों के लिए मतदान केंद्र तक जाना बहुत मुश्किल होगा।

वर्तमान में बिहार में 65 से 80 वर्ष के बीच लगभग 62 लाख मतदाता हैं, जो कुल मतदाताओं का लगभग नौ फीसद है। इनके वोटों की गिरावट सभी को प्रभावित करेगी। इसलिए इनकी आवश्यकता भी सभी को है। अब यह समय ही बताएगा कि आगे कैसी स्थिति रहेगी? जैसी स्थिति रहेगी, उसी के आधार पर आगे की राह तय होगी।

[स्थानीय संपादक]