[डॉ. एके वर्मा] भारतीय लोकतंत्र में काफी समय के बाद ऐसा हुआ है जब किसी मजबूत सरकार की और मजबूती से वापसी हुई हो। हालांकि इसके पहले कांग्रेस के नेतृत्व में संप्रग सरकार ने दो कार्यकाल पूरे किए थे, लेकिन तब कांग्रेस को 2004 में केवल 145 सीटें एवं 26.5 प्रतिशत वोट और 2009 में 206 सीटें एवं 28.5 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग की सरकार बनाई। उसे अपने बलबूते पूर्ण बहुमत मिला था। उसे 282 सीटें और 31.5 प्रतिशत वोट मिले थे। इस चुनाव में अपने सुशासन और विकास के बलबूते भाजपा द्वारा 300 के करीब सीटें प्राप्त करना भारतीय राजनीति में एक अभूतपूर्व घटना है। क्या है इस अभूतपूर्व घटना का रहस्य? क्या है मोदी मैजिक का सबब? विपक्षी दलों द्वारा मोदी की संभावित विजय को ईवीएम विवाद और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करके कमतर करने की कोशिश जरूर की जा रही है, लेकिन लोकतंत्र की यही तो खूबी है कि आप जनता को मूर्ख नहीं बना सकते। मोदी ने लोकसभा चुनाव ‘गेम-थ्योरी’ मॉडल पर लड़ा। जैसे खेल में जीत के लिए हमें अपना कौशल बढ़ाने के साथ प्रतिद्वंद्वी की कमजोरियों का भी फायदा उठाना होता है वैसे ही मोदी ने न केवल अपनी टीम को विचारधारा, संगठन, नेतृत्व, सुशासन और लोक-कल्याण के आधार सुदृढ़ किया, बल्कि विपक्ष की नकारात्मक, विचारधाराविहीन, एजेंडाविहीन और नेतृत्वविहीन राजनीति को निशाना बना जनता में अपनी पैठ बनाकर विजय सुनिश्चित की।

मोदी ने 2014 से ही अपनी सरकार को मजबूत टीम बनाया। ऐसा करके उन्होंने संप्रग के दौरान मनमोहन सिंह की कमजोर प्रधानमंत्री की छवि को दूर कर एक मजबूत, साहसिक और त्वरित निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री की छवि अर्जित की। यह छवि देश-विदेश में धूम मचाती रही। भले ही विपक्ष उन्हें ताने देता रहा हो, मगर जनता का आशीर्वाद उन्हें मिलता रहा। आम मतदाता का यही स्वरूप तो भारतीय लोकतंत्र की थाती है। ‘मन-की-बात’ कार्यक्रम द्वारा उन्होंने जनता से अपना जुड़ाव और सशक्त किया, लेकिन यह आसान नहीं था। इसके लिए मोदी ने विकास को ही अपनी विचारधारा के रूप में पेश किया। वास्तविक विकास का स्वरूप सबसे सेक्युलर होता है। वह न हंिदूू देखता है न मुसलमान। मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि विकास योजनाओं का लाभ सबको बिना भेद-भाव के मिले। भले ही राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार का बोलबाला बना हुआ हो, फिर भी बिचौलियों को खत्म कर लाभार्थियों के खातों में सीधे पैसे डालने से गरीबों, वंचितों और उपेक्षितों को आशा की एक किरण दिखाई दी। मोदी पर ‘जुमलेबाज’ होने का इल्जाम राहुल गांधी और तमाम विपक्षी नेता लगाते रहे, लेकिन जिन गरीबों को मोदी की विकास योजनाओं का लाभ मिलने लगा उन्हें आरोप बेबुनियाद लगा। सामाजिक सुरक्षा और लोक कल्याण के जो भी कार्यक्रम मोदी सरकार ने शुरू किए वे जमीन पर स्पष्ट दिखाई दिए। महिलाओं का एक बड़ा तबका ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, शौचालय, सफाई और तीन-तलाक जैसे प्रयोगों की वजह से मोदी की ओर आकृष्ट हुआ।

मोदी ने राजनीति में एक नया विमर्श गढ़ा। उन्होंने राजनीति को जातिवादी खांचे से निकल कर जनवादी अर्थात वर्गीय खांचे में डाल दिया है। आज समाज के तमाम वगोर्ं जैसे महिलाओं, पिछड़ों, दलितों और यहां तक कि मुस्लिमों का भी विश्वास मोदी में जगा है। ‘सबका साथ-सबका विकास’ जुमला नहीं, एक हकीकत बन गया है। इससे पार्टी के जनाधार में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ जिसमें भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के साथ-साथ समाज के सभी वगोर्ं के नए मतदाता जुड़े। खास तौर से प्रथम बार और युवा मतदाता को मोदी सरकार की ‘हाईटेक’ कार्यप्रणाली बहुत प्रभावित कर रही है। आज से पांच वर्ष पूर्व जो मतदाता केवल 13 वर्ष के रहे होंगे वे मोदी के ‘मन-की-बात’ के द्वारा पांच वषों में उनसे 53 बार मिले। यह एक विलक्षण प्रयोग था जिसे हम स्मार्ट पॉलिटिक्स कह सकते हैं। राजनीति में सफलता का और कोई सूत्र नहीं। नेक इरादों के साथ केवल जनता से जुड़े रहिए, सफलता आपके कदम चूमेगी। यही काम हमारे जनप्रतिनिधि और नेता करने से बचते हैं। मोदी पांच वषों में हुए सभी विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के एकमात्र सुपर स्टार प्रचारक रहे जिसकी वजह से भी वह जनता से जुड़े रहे। मोदी सरकार ने अपने पांच वषों के शासन की उपलब्धियों पर वोट मांगा।

सबसे प्रभावित करने वाली बात यह रही कि हर समय घोटालों और भ्रष्टाचार में घिरी रहने वाली कांग्रेसी सरकारों के विपरीत मोदी सरकार का कार्यकाल साफ-सुथरा रहा। हालांकि राहुल गांधी ने राफेल पर मोदी को घेरने की कोशिश की, लेकिन जनता ने उसे खारिज कर दिया। यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि राहुल ने जिस प्रकार मोदी के प्रति अमर्यादित भाषा इस्तेमाल की उससे जनता में राहुल के प्रति नाराजगी भर गई। उधर मोदी ने न केवल अपनी सरकार में भ्रष्टाचार पर ‘जीरो-टालरेंस’ की नीति अपनाई वरन पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, फिजूलखर्ची पर लगाम लगाकर सुशासन का परिचय दिया। उन्होंने कुछ ऐसे सुधार किए कि केंद्र सरकार के कार्यालयों में गुणात्मक परिवर्तन दिखने लगा।

चुनाव जीतने के लिए संगठनात्मक मजबूती बहुत जरूरी है। भाजपा ने इस पर बहुत ध्यान दिया। जहां अन्य पार्टियों की न तो कोई स्पष्ट विचारधारा रही और न प्रतिबद्ध कैडर, वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पूरे पांच वर्ष पार्टी का संगठनात्मक ढांचा मजबूत बनाने, उन्हें नए-नए तरह से सक्रिय रखने और उनकी क्षमताओं को सही प्रयोग करने में जुटे रहे। अन्य दलों के लोगों को यह सीखना चाहिए। मोदी-शाह ने भाजपा सरकार और संगठन को कर्मनिष्ठ योगी की भांति चलाया और इसी कारण उन्होंने 2014 से भी बेहतर प्रदर्शन किया। चुनावों में प्रचार की आक्रामकता और नेतृत्व का बहुत प्रभाव पड़ता है। मोदी ने अपनी कार्यशैली और जीवनशैली से लोगों में यह विश्वास भर दिया कि वह सामान्य नेताओं के विपरीत स्वार्थ, परिवारवाद और भ्रष्टाचार से ऊपर उठकर देश को विकास की राह पर ले जा रहे हैं। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाए और पाकिस्तान को बैक-फुट पर लाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके विरुद्ध समर्थन हासिल किया। उन्होंने चीन को भी मजबूर किया कि वह अजहर मसूद के मुद्दे पर भारत के साथ आए। इन कदमों से उनके प्रति जनता का विश्वास और बढ़ा।

मोदी को सशक्त प्रतिरोध नहीं मिला। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जहां हाल में कांग्रेस की सरकारें बनी वहां भी भाजपा की लहर दिखी। इसने कांग्रेस को ध्वस्त कर दिया। नि:संदेह भाजपा के लिए सबसे चौंकाने वाले नतीजे बंगाल और कर्नाटक के रहे, पर अभी भी दक्षिणी राज्यों केरल, तमिलनाडु, आंध्र और तेलंगाना में उसका मजबूत जनाधार नहीं। इस प्रचंड जनादेश में मोदी के लिए चुनौती भी बड़ी है। आगामी विधानसभा चुनावों के बावजूद उनकी सरकार से यही आशा रहेगी कि वह देश हित में कठोर निर्णय लेने में पीछे नहीं हटेंगे।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक हैं)

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