[ कैप्टन आर विक्रम सिंह ]: अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर की यथास्थिति को भंग करके उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद कश्मीर के अशांत हो जाने की आशंका निर्मूल साबित हो रही है। एक तरह से अब हम वहां पहुंच गए हैं जहां से हमारी निगाह से ओझल रहा गुलाम कश्मीर साफ दिखाई देने लगा है। गुलाम कश्मीर की पाकिस्तान से मुक्ति के लिए हमारा रास्ता क्या है? 22 फरवरी, 1994 को प्रधानमंत्री नरसिंह राव के नेतृत्व में संसद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था। इसमेंं कहा गया है कि पाकिस्तान कश्मीर से अपना अवैध कब्जा खाली करे। यह सच है कि यदि हमारी सेना को 1947 में रोका न गया होता तो संपूर्ण कश्मीर भारत का भाग होता और आज के गुलाम कश्मीर के मूल निवासी हमारे नागरिक होते। यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं कि वे आज भी हमारे नागरिक हैैं।

पाकिस्तान ने पीओके पर हमारा पक्ष कमजोर किया

कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने और फिर पाकिस्तान से कश्मीर के बंटवारे की वार्ताओं ने निश्चित ही पाक अधिकृत कश्मीर पर हमारा पक्ष कमजोर किया। अब केंद्रशासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख मानचित्र पर आ चुके हैैं। मानचित्र पर लद्दाख का क्षेत्र जो एक लाख 67 हजार किलोमीटर में फैला है, समस्याविहीन क्षेत्र है। लद्दाख से अलग हो जाने से जम्मू-कश्मीर अब मात्र 42 हजार वर्ग किमी का राज्य रह गया है। जो लद्दाख के क्षेत्रफल का एक चौथाई है।

हमारी राजनीति ने कश्मीर समस्या को बेवजह फैला रखा था

समस्याग्रस्त क्षेत्र के सीमित हो जाने का भी एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। यदि जम्मू को भी समस्या से बाहर मानें तो कश्मीर का कथित समस्याग्रस्त क्षेत्र मात्र 16 हजार वर्ग किमी की घाटी तक ही सीमित हो जाता है। इतना ही क्षेत्रफल तो नगालैैंड का भी है। हमारी राजनीति ने कश्मीर समस्या (जो सिर्फ कश्मीर घाटी की अलगाववादी समस्या है) को बेवजह फैला रखा था। इस समस्या के स्वरूप को सही तरह से आकलन करने में उससे गलतियां भी हो रही थीं।

गुलाम कश्मीर की प्रकृति, भाषा, संस्कृति कश्मीर घाटी से भिन्न है

पश्चिमी कश्मीर का 13 हजार वर्ग किमी का जो भाग पाकिस्तान के कब्जे में है, वह मूलत: गैर-कश्मीरी प्रकृति का कश्मीर है। वहां कश्मीरी नहीं, बल्कि पहाड़ी, गोजरी, पंजाबी भाषाएं बोली जाती हैैं। गुलाम कश्मीर की नीलम घाटी से लेकर मीरपुर, भिंबर तक 10 जिलों में बसी हुई 45 लाख आबादी मुख्यत: पहाड़ी, गुज्जर-बकरवाल, पंजाबी राजपूत समाज की है। गुलाम कश्मीर की प्रकृति, भाषा, संस्कृति कश्मीर घाटी से पूर्णत: भिन्न है। इसके साथ ही भारतीय पश्चिमी कश्मीर के उन सीमांत जिलों, जो 1947 के युद्ध में हमारी सेनाओं ने वापस ले लिए थे, की भी भाषा एवं प्रकृति गुलाम कश्मीर के अनुरूप हैै। ये क्षेत्र हैैं, कुपवाड़ा, आंशिक बारामूला, उड़ी, पुंछ, राजौरी। इन चार सीमावर्ती जिलों को गुलाम कश्मीर के दस जिलों के साथ मिलाकर पश्चिमी कश्मीर के कुल 14 जिलों का एक तीसरा केंद्रशासित प्रदेश बन सकता है।

पश्चिमी कश्मीर तीसरा केंद्रशासित प्रदेश बन सकता है

गुलाम कश्मीर के लिए हमने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 24 रिक्त स्थान आरक्षित रख रखे हैैं। हमारे अपने क्षेत्र के चार जिलों में विधायकों की संख्या 13 है। यदि हम इसके साथ गुलाम कश्मीर के 24 जनप्रतिनिधियों को जोड़ लें तो कुल विधायकों की संख्या 37 हो जाती है। मात्र एक संवैधानिक संशोधन से जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख की तरह यह पश्चिमी कश्मीर हमारी तीसरी केंद्रशासित इकाई का स्वरूप हो सकता है। फर्क सिर्फ यह है कि इसके दस जिले पाकिस्तान के कब्जे में हैैं और चार जिले हमारे अधिकार मेंं। ये 24 सीटें गुलाम कश्मीर की वापसी की उम्मीद में प्रारंभ से ही खाली रही हैं।

पाक के अवैध कब्जे में होने से गुलाम कश्मीर में भारत सीधे दखल नहीं दे सकता

गुलाम कश्मीर के बहुत से नागरिक इस इलाके में और विदेशों में भी आजादी की आवाज उठा रहे हैैं। हमारी पूर्व की सरकारों ने इन्हें कोई सहयोग नहीं दिया। इन दस जिलों की आवाज इस तीसरे केंद्रशासित प्रदेश के सदन से बुलंद हो सकती है। उनके प्रतिनिधियों को यहां सदस्य नामित किया जा सकता है जो पाकिस्तान से मुक्ति की मशाल जलाए हुए हैैं। पाकिस्तान के अवैध कब्जे में होने के कारण गुलाम कश्मीर में हमारी सरकार सीधे दखल नहीं दे सकती, फिर भी उन्हें सहयोग देना हमारा फर्ज बनता है।

पश्चिमी कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश की घोषणा से पाक को लगेगा बड़ा झटका

इसका तात्पर्य यह है कि गुलाम कश्मीर के विकास संबंधी दायित्वों के निर्वहन के लिए हमारी पहल पर कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाया जा सकता है, जो इसमें सहयोग कर सके। इन 24 प्रतिनिधियों की सक्रियता से गुलाम कश्मीर की पाकिस्तान से मुक्ति की मुहिम को धार मिलनी प्रारंभ हो जाएगी। पश्चिमी कश्मीर के इन 14 जिलों को बतौर तीसरे केंद्रशासित प्रदेश की घोषणा पाकिस्तान के लिए अनुच्छेद 370 के समापन के बाद दूसरा बड़ा झटका होगा।

कश्मीर की युवा नेतृत्व की नई पौध मठाधीशों को हाशिये पर देगी धकेल

पर्यटन का गुणात्मक विकास लद्दाख को देश का सबसे समृद्ध राज्य बनाने जा रहा है। यही स्थिति कश्मीर घाटी की होगी। यथास्थितियां अपने हितबद्ध समर्थक विकसित कर लेती हैैं जो प्राणपण से परिवर्तन का विरोध करती हैैं। नेहरू के जनमत संग्रह के वायदे ने कश्मीर को उसके अतीत का बंधुआ बना दिया था। सारा देश विकास के रास्ते बना रहा था, लेकिन कश्मीर 1947 से आगे चलने को तैयार नहीं था। उम्मीद की जानी चाहिए कि युवा नेतृत्व की नई पौध कश्मीर की राजनीति के पाकिस्तान उन्मुख मठाधीशों को हाशिये पर धकेल देगी।

दूसरा बड़ा कार्य निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का है

व्यवस्था में सुधार का दूसरा बड़ा कार्य निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का है। राजनीतिक सत्ता की भागीदारी से पीरपंजाल पर्वतमाला के दक्षिणी क्षेत्रों, जम्मू और डोडा की भूमिका में वृद्धि होगी। आजादी के बाद 70 वर्षों में हमारी सरकारों ने गुलाम कश्मीर के भारतीय कश्मीर के साथ एकीकरण का एजेंडा स्थगित कर रखा था। गुलाम कश्मीर के लिए हमारी नीतियां घोर निष्क्रियता की रही हैैं।

पीएम मोदी ने 370 का भ्रमजाल एक ही वार में समाप्त कर दिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले नेतृत्व ने नीतिगत परिवर्तन की संभावना पर विचार ही नहीं किया। वे कहां सोच पाते कि 370 का समापन भी हो सकता है। कश्मीर के लिए दो केंद्रशासित राज्यों का विकल्प तो कल्पनाओं से भी परे था। नेहरू के जमाने से युद्धविराम रेखा को ही अंतरराष्ट्रीय सीमा मानने का अनुनय-विनय चल रहा था। हमारे चारों ओर विकल्पहीनता और समझौतापरस्ती का एक इंद्रजाल बुन दिया गया था। वह समस्त आभासी भ्रमजाल एक ही वार में समाप्त हो गया। पहली बार हमें उस राष्ट्रशक्ति का आभास हो रहा है जिसकी हमें कभी आदत ही नहीं रही।

( लेखक पूर्व सैनिक एवं पूर्व प्रशासक हैैं )