[ डॉ. अजय खेमरिया ]: भारत 26 नवंबर से ‘ग्लोबल रिन्यूएबल एनर्जी इन्वेस्टमेंट मीटिंग एंड एक्सपो यानी वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा निवेश बैठक एवं प्रदर्शनी’ (रीइन्वेस्ट 2020) के तीसरे संस्करण का आयोजन करने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका शुभारंभ करेंगे। इस वर्चुअल समिट में 80 से अधिक देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से नवीकरणीय यानी अक्षय ऊर्जा को जीवाश्म ऊर्जा स्नोतों का विकल्प बनाने पर उच्च प्राथमिकता से काम हो रहा है। आज भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 36 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी है। बीते छह वर्षों में यह ढाई गुना बढ़ी है और इसमें सोलर यानी सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी तो 13 गुना तक बढ़ी है। ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने दावा किया है कि वर्ष 2030 तक भारत में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी 40 प्रतिशत और 2035 तक 60 फीसद होगी। यह आंकड़ा भारत में स्वच्छ ऊर्जा की एक नई क्रांति जैसा ही होगा।

मोदी सरकार ने 2035 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने का रखा लक्ष्य

31 अक्टूबर, 2020 तक के आंकड़ों के अनुसार कुल 3,73,436 मेगावाट के राष्ट्रीय बिजली उत्पादन में नवीकरणीय स्नोतों की भागीदारी 89,636 मेगावाट है। मोदी सरकार ने 2022 तक 175 गीगावाट और 2035 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है (एक गीगावाट यानी 1000 मेगावाट)। गुजरात, मप्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य अगले कुछ वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के अग्रणी होंगे, क्योंकि इनमें सौर क्रांति की जमीन राज्य और निजी निवेशकों के जरिये बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से विकसित की जा रही है।

मप्र के रीवा में बनाए गए अल्ट्रा मेगा पार्क एशिया का सबसे बड़ा एकल सोलर पार्क है

मप्र के रीवा में बनाए गए अल्ट्रा मेगा पार्क में 700 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। यह एशिया का सबसे बड़ा एकल सोलर पार्क है, जिसे दो साल से कम में तैयार किया गया है। रीवा सोलर परियोजना की 26 फीसद बिजली दिल्ली मेट्रो को दी जाती है। इसी तरह उप्र में मिर्जापुर, गुजरात की कच्छ एवं धोलेरा, तमिलनाडु की कामुती, राजस्थान की मथानिया एवं खींवसर, हिमाचल की ऊना, बिलासपुर एवं कांगड़ा जैसी महत्वपूर्ण सोलर परियोजनाओं के जरिये देश भर में इस समय सौर ऊर्जा उत्पादन की स्वर्णिम गाथा लिखी जा रही है। अक्षय ऊर्जा के अन्य घटक पवन, बायो, पनबिजली की परियोजनाओं पर भी मोदी सरकार की प्रतिबद्धता से यह स्पष्ट है कि 2035 से पहले भारत नवीकरणीय ऊर्जा के सभी लक्ष्य हासिल कर लेगा।

अक्षय ऊर्जा के जरिये भारत वैश्विक पर्यावरणीय संकट के समाधान में अहम भूमिका निभा रहा

अक्षय ऊर्जा के जरिये भारत वैश्विक पर्यावरणीय संकट के समाधान में भी अहम भूमिका निभा रहा है। अकेले रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर परियोजना से 15.7 लाख टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है। यह धरती पर 2.60 करोड पेड़ लगाने के बराबर है। भारत में अक्षय ऊर्जा की असीम संभावनाएं हैं। जाहिर है जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए जो प्रतिबद्धता भारत ने व्यक्त की है, वह इसकी विश्व दृष्टि की उद्घोषणा का हिस्सा ही है। भारतीय दृष्टि प्रकृति के शोषण के स्थान पर संतुलित दोहन की समर्थक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रभावशाली तरीके से दुनिया के सामने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का प्रकल्प खड़ा किया है, वह पेरिस समझौते के समानांतर सही मायनों में भारतीय लोकमंगल की परिकल्पना का ही साकार रूप है। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और इसके उद्देश्य भारत की आत्मनिर्भरता की अवधारणा का ब्लूप्रिंट भी हैं, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था का जिस अनुपात में आकार बढ़ रहा है उसकी बुनियाद ऊर्जा केंद्रित ही है। ऐसे में अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता आत्मनिर्भरता की हमारी राह को भी आसान बनाएगी।

दुनिया में अक्षय ऊर्जा उत्पादक देशों में भारत अब तीसरे स्थान पर है

भारत में औसतन 300 दिन सूरज प्रखरता के साथ उपस्थित रहता है। हमारे भूभाग पर पांच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। एक मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए तीन हेक्टेयर समतल भूमि चाहिए। इस लिहाज से भारत के पास इस क्षेत्र में विपुल संभावनाओं का भंडार है। मोदी सरकार ने इस शाश्वत ऊर्जा भंडार को देश की ऊर्जा जरूरतों से जोड़कर जो लक्ष्य तय किए हैं, वह एक सपने को साकार करने जैसा ही है। प्रधानमंत्री इसे श्योर, प्योर और सिक्योर कहते हैं, क्योंकि सूरज सदैव चमकता है, इससे उत्पन्न ऊर्जा पूरी तरह स्वच्छ होने के साथ ही सुरक्षित भी है। इस त्रिसूत्रीय फॉर्मूले पर केवल भाषणों में काम नहीं हुआ, बल्कि धरातल पर परिवर्तन की इबारत लिखी जा रही है। 2016 में पवन ऊर्जा की प्रति यूनिट लागत 4.18 रुपये थी, जो 2019 में 2.43 रुपये हो गई। वहीं 4.43 की दर वाली सौर यूनिट 2.24 रुपये पर आ गई। इसी तरह 2013 में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन 34,000 मेगावाट था, जो आज 89,636 मेगावाट हो गया है। पूरी दुनिया में अक्षय ऊर्जा उत्पादक देशों में भारत अब तीसरे स्थान पर है।

पीएम  मोदी की नीतियों के चलते सोलर मॉड्यूल क्षेत्र में 2030 तक भारत हो जाएगाआत्मनिर्भर 

प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भरता के मोर्चे पर भी बड़े बुनियादी कदम उठाए हैं, क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा के 80 फीसद उपकरण हमें चीन से मंगाने पड़ते हैं। इसके लिए मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सोलर मिशन लागू कर स्वदेशी कंपनियों को आगे बढ़ाने वाले आर्थिक एवं नीतिगत पैकेज पर काम आरंभ किया है। सरकार का दावा है कि उसकी नीतियों के चलते सोलर मॉड्यूल और पैनल विनिर्माण क्षेत्र में 2030 तक भारत आत्मनिर्भरता को हासिल कर लेगा और इस दौरान 42 अरब डॉलर के आयात चीन से नहीं करने पड़ेंगे।

मोदी ने भारत की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का काम अपने हाथों में ले रखा है

यह स्थिति समेकित रूप से भारतीयों को रोजगार से जोड़ने के साथ ऊर्जा आत्मनिर्भरता के बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक है। एक अनुमान के अनुसार 2035 तक भारत में ऊर्जा की मांग 4.2 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ेगी, जो पूरी दुनिया में सबसे तेज होगी। वहीं विश्व के ऊर्जा बाजार में 2016 में भारत की मांग पांच प्रतिशत थी, जो 2040 में 11 फीसद होने का अनुमान है। इन तथ्यों से समझा जा सकता है कि मोदी सरकार ने दूरदर्शिता के साथ भारत की आर्थिकी को मजबूत धरातल देने का कितना महत्वपूर्ण काम अपने हाथों में ले रखा है।

( लेखक लोकनीति मामलों के जानकार हैं )