डॉ. नीलम महेंद्र। India Covid-19 Second Wave हमारा देश एक बार फिर चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना कर रहा है। होली के कुछ पहले तक समझा जा रहा था कि कोरोना की लड़ाई को हम जीत गए, लेकिन अचानक हम कमजोर पड़ गए। दरअसल पिछले साल कोरोना के आरंभिक दौर में जब पूरे विश्व को आशंका थी कि स्वास्थ्य देखभाल संबंधी अपने सीमित संसाधनों और विशाल जनसंख्या के कारण कोरोना भारत में त्राहिमाम मचा देगा, तब हमने अपनी सूझ-बूझ से महामारी को अपने यहां काबू में करके संपूर्ण विश्व को चौंका दिया था।

जैसे ही पूरी दुनिया में कोविड वायरस का विस्तार शुरू हुआ तो स्वाभाविक तौर पर इसने हमारे देश को भी अपनी चपेट में ले लिया। रातों-रात ट्रेनों तक में अस्थाई कोविड अस्पतालों और देश के तमाम शहरों में कोरोना वायरस जांच प्रयोगशालाओं का निर्माण करने से लेकर पीपीई किट, वेंटीलेटर, सैनिटाइजर और मास्क का निर्यात करने तक भारत ने कोविड से लड़ाई जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि इतना कुछ करने के बाद भी हमारा देश रुका नहीं। भारत ने कोरोना के साथ इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए वैक्सीन का निर्माण भी कर लिया। इन तमाम कवायदों के बीच ऐसा लगने लगा था कि कोरोना से इस लड़ाई में हम बहुत आगे निकल आए हैं, लेकिन फिर अचानक से क्या हुआ कि परिस्थितियां हमारे हाथ से फिसलती गईं और आज हम एक बार फिर कोरोना से हार रहे हैं। एक देश के रूप में, एक सभ्यता के रूप में, एक सरकार के रूप में, एक प्रशासनिक तंत्र के रूप में आज हम हारते हुए दिख रहे हैं।

वर्तमान हालात को देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि एक देश के तौर पर हम पिछले एक साल के अनुभव से शायद बहुत अधिक नहीं सीख पाए। यदि सीखा होता तो शायद आज इस तरह की विषम परिस्थिति हमारे सामने पैदा नहीं हुई होती। आज देश जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है वह कम से कम कोरोना की दूसरी लहर में तो स्वीकार नहीं हो सकती। हां, अगर कोरोना की पहली लहर में यह सब होता तो एक बार को समझा जा सकता था कि देश इन अप्रत्याशित परिस्थितियों के लिए तैयार ही नहीं था। लेकिन आज कहां गया वो इंफ्रास्ट्रक्चर जो कोरोना की पहली लहर में खड़ा किया गया था? कहां गए वो कोविड के अस्पताल? जब विज्ञानियों ने पहले से ही कोविड की दूसरी लहर की चेतावनी दे दी थी तो लापरवाही कैसे हो गई? आज अचानक देश बेड और आक्सीजन की कमी का सामना क्यों कर रहा है? वह देश जिसका दुनिया भर में फार्मेसी के क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी है, वह कोरोना में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की किल्लत से क्यों जूझ रहा है? अधिकांश राज्य सरकारें और प्रशासन एक वायरस के आगे दूसरी बार बौने क्यों दिखाई पड़ रहे हैं?

लेकिन बात केवल प्रशासन और सरकारों के एक वायरस के आगे बेबस होने तक सीमित नहीं है। ये जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों के आगे भी बेबस नजर आ रही हैं। देश के जो वर्तमान हालात हैं उनमें केवल स्वास्थ्य व्यवस्थाएं ही कठघरे में नहीं हैं, बल्कि प्रशासन और नेता भी कठघरे में हैं। इसे क्या कहिएगा कि जब मध्य प्रदेश के इंदौर में कोरोना के मरीज आक्सीजन की कमी से अस्पताल में दम तोड़ रहे थे तो हमारे नेताओं में 30 टन आक्सीजन लाने वाले टैंकर के साथ फोटो खिंचवाने की होड़ लगी हुई थी। जब इंदौर शहर एक एक सांस के लिए मोहताज था, जब एक क्षण की सांस भी मौत को जिंदगी से दूर धकेलने के लिए बहुत थी, तब इन नेताओं के लिए तीन घंटे का फोटो सेशन भी कम पड़ रहा था।

त्राहिमाम के इस काल में संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यहीं तक सीमित नहीं रही। कभी सरकारी अस्पताल से वैक्सीन चोरी होने की खबर आई तो कभी कोरोना के इलाज में प्रयुक्त होने वाली दवाई रेमेडेवेसिर की कालाबाजारी की। साढ़े सात सौ रुपये से एक हजार रुपये मूल्य का यह इंजेक्शन 18 हजार रुपये तक बिका। मध्य प्रदेश के ही एक सरकारी अस्पताल में रेमडेसिविर इंजेक्शन स्टोर से चोरी होने का मामला सामने आया और जांच होने पर अस्पताल के कर्मचारियों की ही संलिप्तता पाई गई। इस मामले में अस्पताल अधीक्षक को फिलहाल निलंबित भी किया गया है।

पैरासिटामोल जैसी गोली भी इस महामारी के दौर में सौ रुपये तक में बेची गई। जिसे मौका मिला सामने वाले की मजबूरी का फायदा सबने उठाया। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या यह वही देश है जो कोरोना की पहली लहर में एकजुट था? क्या यह वही देश है जिसमें पिछली बार करोड़ों हाथ लोगों की मदद के लिए आगे आए थे? और जब ऐसे देश में प्राइवेट अस्पतालों में कोविड के इलाज के बिल एक परिवार को अपनी जीवन भर की कमाई और किसी अपने की जिंदगी में से एक को चुनने के लिए विवश होना पड़ता है तो उस समय वक्त भी ठहर जाता है। एक तरफ भावनाएं उफान पर होती हैं तो दूसरी तरफ वो संभवत: दम तोड़ चुकी होती हैं। दअरसल इस कोरोना काल ने केवल हमारी स्वास्थ्य सेवाओं को ही बेनकाब नहीं किया है, बल्कि दम तोड़ती मानवीय संवेदनाओं का सत्य भी समाज के सामने लाया है।

समय आ गया है कि हम इस काल से सबक लें। एक व्यक्ति के तौर पर और एक समाज के तौर पर एकजुट होकर मानवता की रक्षा के लिए आगे आएं। आखिर यही तो एक सभ्य समाज की पहचान होती है। जिस प्रकार पिछली बार देशभर की स्वयंसेवी संस्थाओं से लेकर गली मोहल्लों और गांवों तक में हर व्यक्ति एक योद्धा बना हुआ था, इस बार भी वही जज्बा लाना होगा कोरोना को हराने के लिए। अभी हम थक नहीं सकते, रुक नहीं सकते। अभी हमें एक होकर काफी लंबा सफर तय करना है, तभी हम सिर्फ कोरोना से ही नहीं जीतेंगे, बल्कि मानवता की भी रक्षा करेंग

[सामाजिक मामलों की जानकार]