[ पीयूष पांडे ]: नमस्कार। मैं हूं खबरु लाल। इस वक्त मैं जान की बाजी लगाकर खड़ा हूं उस खौफनाक जगह से इतने.. पता नहीं कितने किलोमीटर दूर, जहां आतंकियों की गुप्त बैठक चल रही है। तमाम आतंकी संगठनों के बॉस यहां पहुंचे हुए हैं। आप सोच रहे होंगे कि जिस बैठक की सरकार और खुफिया एजेंसियों को खबर नहीं, उसकी खबर मुझे कैसे है? तो जनाब बात ऐसी है कि इस गोपनीय बैठक की पल-पल की जानकारी मुझे मेरा एक सूत्र दे रहा है। यह तो आप जानते ही हैं कि सूत्र हम लोगों की वह अदृश्य पूंछ होती है जिसे घुमाकर किसी भी मंत्री-संत्री की खबर ले सकते हैैं, आतंकवादियों की तो हैसियत ही क्या। चूंकि, मामला विश्वास और भरोसे का है, इसलिए मैं आपको सीधे वह बातचीत सुनवा देता हूं-

आतंकवादी-1: बैठक का एजेंडा आपको मालूम ही है। कश्मीर में नए हालात में हमारे लिए भुखमरी की स्थिति बन रही है। हमें कुछ नया सोचना होगा।

आतंकवादी-2: अब सोचने को रह क्या गया है जनाब? पिछले तीन साल से हमारा इन्क्रीमेंट नहीं हुआ। नई भर्तियां तो दूर, मौजूदा गुर्गों को रीटेन करने में परेशानी आ रही है। सोचा था नए पाकिस्तान की सरकार कुछ माल भेजेगी, लेकिन वह तो खुद पुराना कटोरा लेकर इधर-उधर भटक रही है।

आतंकवादी-3: सही कह रहे हो भाई। हम छोकरों को बहकाते हैं और फिर उन्हें कमांडर बनाकर प्रमोशन का झुनझुना थमाते रहते थे, लेकिन अब हाल यह है कि सारे कमांडर मारे जा रहे हैं। नए लड़के इतने नालायक हैं कि ज्वाइनिंग से पहले ही अजीब शर्त रख रहे हैं।

आतंकवादी-1: मसलन?

आतंकवादी-3: मसलन पहले 72 हूरों का प्रोफाइल दिखाओ।

आतंकवादी-4: अरे जनाब। अधिकतर तो संगठन की पॉलिसी पूछ रहे हैं। पूछ रहे हैं कि एक्सीडेंट हुआ तो क्या मिलेगा। डेपुटेशन पर सीरिया वगैरह भेजा गया तो क्या खास फायदा मिलेगा?

आतंकवादी-5: हद ये नहीं है..हद ये है कि कोई कह रहा है कि हमें स्विट्जरलैंड में पोस्टिंग दे दो, कोई कहीं और। कश्मीर में नहीं, वहां बहुत टेंशन है।

आतंकवादी-1: क्या फालतू बात है। मेरी इतने साल से कराची में पोस्टिंग है। वहां भी टेंशन रहती है। कभी-कभी वहां रहते हुए मुझे खुद समझ नहीं आता कि हम आतंकी हैं या आतंक से पीड़ित।

आतंकवादी-2: देखिए, मसला ये भी है कि नए बच्चे टारगेट देखकर ही घबरा जाते हैं। हमें अपने टारगेट के बारे में फिर सोचना होगा। मार्केटिंग की भाषा में कहूं तो बच्चों से ‘टारगेट अचीव’ नहीं हो पा रहा है। मेरे संगठन ने ही 30 घुसपैठियों को इंडिया में घुसपैठ कराने का लक्ष्य दिया था जो पूरा नहीं हळ्आ।

आतंकवादी-3: हमें रिक्रूटमेंट पॉलिसी बदलनी होगी। हमारे यहां प्रमोशन, इन्क्रीमेंट को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है और इंटरनेट और सोशल मीडिया के जमाने में युवा छोरे अपडेट बहुत हैं। कल एक लड़का आया तो बोला आपके यहां नया पे-कमीशन कब लागू होगा? एक और आया तो बोला-टेरर कैंप में इनवर्टर और वाईफाई तो लगाओ। एक तो कहने लगा कि पहले वजीरे आजम और उनके मंत्री आगे चलें, खासकर वे जिनके पास पाव-पाव भर के बम हैैं।

आतंकवादी-1: इसका हल बताओ?

आतंकवादी-2: देखिए, सीधा-सीधा कोई सॉल्यूशन होता तो हम यहां क्यों आते। एक आइडिया है कि नेतागिरी करें। नए पाकिस्तान में इसकी बहुत गुंजाइश दिख रही है। इमरान भाई से मुल्क भी नहीं संभल रहा।

आतंकवादी-3:आइडिया बुरा नहीं है, क्योंकि हम 30 साल से गोलियां चला रहे हैं, लेकिन भुट्टा तक नहीं उखाड़ पाए हैं। एक के बाद एक नेता आते हैैं और हमें ट्रक की बत्ती के पीछे लगा देते हैैं।

आतंकवादी-4: तौबा-तौबा..यह हो क्या रहा है। मुझे लगता है कि अभी हम सबको आराम की जरूरत है।

आतंकवादी-1: आराम की नहीं, आतंक की दुकान बंद करने की जरूरत है, लेकिन फिर करेंगे क्या?

आतंकवादी-2: करना क्या है, हमारे इमरान भाई, गरीबों को अंडा और मुर्गियां बांटने जा रहे हैैं। हम भी मांग लेंगे।

आतंकवादी-3: लेकिन ये बंटने क्यों नहीं शुरू हुए?

आतंकवादी-4: अरे यार, इमरान भाई यह नहीं तय कर पा रहे कि पहले अंडा आया या मुर्गी? इस चक्कर में उन्हें समझ नहीं आ रहा कि पहले अंडा बांटें या मुर्गियां?

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]