धर्मशाला, नवनीत शर्मा। एक बड़ा आदमी शुरू से ही बड़ा नहीं होता। उसके बड़ा होने के सफर में बेहद छोटी-छोटी बातें भूमिका अदा करती हैं। प्रणब मुखर्जी ने प्रणब दा का संबोधन हथियाया नहीं, अर्जति किया था। सहमति, परस्पर संवाद और विशालहृदयता के लिए जाने जाते बुद्धिजीवी राजनेता प्रणब मुखर्जी की शारीरिक यात्र संपन्न होने पर स्वाभाविक रूप से कई अच्छे शब्द उनके बारे में हर कोई कह रहा है। इधर हिमाचल प्रदेश के साथ उनका संबंध राष्ट्रपति या उससे पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता के तौर पर ही नहीं रहा।

दरअसल अगर किसी संवेदनशील हिमाचली की आंखें इस राष्ट्रीय क्षति पर छलकी हैं, तो यह संबंध भी आत्मीयता का ही रहा है। वास्तव में उन्हीं के कारण हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री नयना देवी कस्बे को पानी मिला था। नंगल और ऊना के सामने की पहाड़ियों पर स्थित नयना देवी में किसी समय सब कुछ था, सिवाय पानी के। उसके बाद मंदिरों के साथ उनका नाता ऐसा जुड़ा कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश के हर मंदिर के लिए दिल खोल कर आíथक मदद दी, सुविधाएं दी। मां नयना देवी अपने इस संवेदनशील पुत्र को क्यों अपने चरणों में स्थान नहीं देंगी।

बात 1992 की है, जब प्रणब दा योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे। उनका हिमाचल प्रदेश का दौरा निर्धारित हुआ। मुख्यमंत्री शांता कुमार थे। जाहिर है, भाजपा की सरकार थी। मुख्यमंत्री ने अफसरों को निर्देश दिए कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष का हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य के लिए विशेष महत्व है। इसलिए उनकी विशेष आवभगत की जाए। इस बीच पता चला कि प्रणब दा नयना देवी मंदिर में दर्शन करेंगे। जिम्मा बिलासपुर के तत्कालीन उपायुक्त को मिला कि अतिथि के सम्मान में कोई कमी न रह जाए। हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव एमएस मुखर्जी प्रणब मुखर्जी के साथ परिचित थे। उनका भी यही विशेष आग्रह था।

अंतत: प्रणब मुखर्जी पहुंच गए। यात्र शुरू हुई। मंदिर के लिए चढ़ाई काफी है। आधे रास्ते में प्रणब दा रुक गए। चढ़ाई के कारण वह हांफने लगे थे। उन्होंने साथ चल रहे उपायुक्त से कहा, पानी.. चाहिए! इस पर युवा उपायुक्त ने शालीन किंतु दृढ़ स्वर में उत्तर दिया, माफ कीजिएगा सर, यहां सब कुछ मिल सकता है, लेकिन पानी नहीं। इस पर प्रणब दा ने हैरत से पूछा कि ऐसा क्यों? उपायुक्त ने जवाब दिया, सर! यहां पानी बहुत नीचे से उठाना पड़ेगा। गोबिंद सागर झील से। बड़ा काम है। एक करोड़ रुपये मिल जाएं तो पानी का संकट ही समाप्त हो जाएगा। लौटते हुए उन्होंने उपायुक्त से कहा, योजना पर काम शुरू करो। एक करोड़ रुपये दे दूंगा। पानी का संकट न रहे। पैसे अगर एक साल में समाप्त कर दिए तो और दूंगा। उसके बाद नयना देवी का पानी का संकट दूर हो गया। ये उपायुक्त थे, बाद में भारत सरकार के पशुपालन मंत्रलय से बतौर सचिव सेवानिवृत्त होने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तरुण श्रीधर। दिसंबर, 1992 में शांता कुमार सरकार चली गई। लोगों को लगा कि अब तो कुछ भी होने से रहा। लेकिन योजना आयोग के उपाध्यक्ष के तौर पर प्रणब मुखर्जी स्वयं कार्य प्रगति का पता करते रहते थे। ज्वालामुखी में तो उनकी 1996 की पट्टिका है ही, जब उन्होंने पेयजल योजना को लोकार्पित किया था।

दरअसल, अनुशासन, दूसरे का सम्मान, आत्म सम्मान, असहमति का आदर, दूसरे विचारों के लिए कान खुले रखना उनकी खासियत थी। एक तरफ वह देश के बड़े पत्रकार को इस बात के लिए टोक सकते थे कि पत्रकार साक्षात्कार के दौरान उनके संवाद को क्यों काट रहा है, वहीं केंद्रीय विश्वविद्यालय में उच्च सुरक्षा अधिकारियों के मना करने के बावजूद उन्हें किसी के साथ चित्र खिंचवाने में कोई गुरेज नहीं था। दीक्षा समारोह में आए तो जहां उनसे फोटो का आग्रह किया जा रहा था, उसके पीछे खुली पहाड़ी थी। सुरक्षा कíमयों ने मना किया कि यह उचित स्थल नहीं है। लेकिन राष्ट्रपति से अनुरोध किया तो वह सहर्ष तैयार हो गए।

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. योगेंद्र वर्मा कहते हैं, मुङो दो बार राष्ट्रपति भवन में उनके साथ कुलपतियों की बैठक में भाग लेने का अवसर मिला। कई लोग अनुसंधान पर योजना बनाते हैं और फिर भूल जाते हैं। प्रणब दा के साथ ऐसा नहीं था। उनके कार्यकाल में हमारे विश्वविद्यालय से भी एक अध्यापक को अनुसंधान के लिए उन्होंने सम्मानित किया था। उनकी फॉलोअप बैठकों की तैयारी का आलम यह था कि तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी बैठक से पहले फोन कर सुनिश्चित करती थीं कि राष्ट्रपति जी की बैठक आ रही है, आपने क्या तैयारियां की हैं? उनका साफ मानना था कि शिक्षा को अनुसंधानकर्ता उत्पन्न करने चाहिए और शिक्षा समाज और उद्योग के साथ जुड़े।

अपेक्षाओं के साथ हमेशा केंद्र की ओर देखने वाले हिमाचल प्रदेश ने हमेशा अतिथि सत्कार किया है। रेल मंत्री और अन्य पदों पर रहते हुए कई नेता हिमाचल आए अवश्य, लेकिन हिमाचल की जरूरतों को समझने वाले बहुत कम ही थे, जिनमें से एक नाम प्रणब दा का है।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

प्रणब मुखर्जी। फाइल