डॉ. मोनिका शर्मा। भारत के सांस्कृतिक और पारंपरिक समाज की झलक देखने में संसार के हर हिस्से में बसे लोगों की रुचि है। यही वजह है कि सांस्कृतिक विरासत के ऐसे खास रंग हमारे देश की एक विशिष्ट पहचान भी बनाते हैं। इसी बात को पुख्ता करने वाली है ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक ताजा सूची, जिसमें दुनिया भर के मुख्य पर्यटन स्थलों को शमिल किया गया है। दुनिया के दर्शनीय स्थलों की इस फेहरिस्त में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने वर्ष 2020 में पर्यटन के लिहाज से प्रसिद्ध जोधपुर को भी दुनिया की श्रेष्ठ जगहों में शुमार किया है।

विश्व के टॉप 15 स्थानों में पहले स्थान पर वाशिंगटन, दूसरे पर ब्रिटेन के ब्रिटिश वर्जिन आइसलैंड्स और तीसरे पायदान पर बोलीविया के रुरेनाबेक्यू शामिल हैं। पर्यटन स्थलों की इस ताजा सूची में ग्रीनलैंड, ऑस्ट्रेलिया के किंबरले रीजन, अमेरिका के पासो रोवल्स, इटली के सिसिली, ऑस्ट्रिया के सॉजबर्ग, जापान की राजधानी टोक्यो, इजरायल के केसेरिया, चीन के नेशनल पार्क, लेसोथो, अमेरिका के कोलोराडो स्प्रिंग्स, पोलैंड के कराकोव और भारत के जोधपुर को जगह मिली है।

गौरतलब है कि ब्ल्यू सिटी के नाम से मशहूर जोधपुर की पहचान इसकी पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत तो है ही, नीले रंग में रंगे मकान भी इस शहर को खास बनाते हैं। यही वजह है कि पर्यटन स्थलों की इस सूची में स्थान पाने वाले जोधपुर के बारे में लिखा गया है कि जब भारत के कई शहर तकनीकी उद्योगों द्वारा बदल दिए गए, जोधपुर ने अपने ठेठ देसी अंदाज, कला व संस्कृति को बचाए रखा। भारत के सांस्कृतिक रंग अनोखे हैं। मरु प्रदेश में भी संस्कृति और सत्कार जीवंत रंग देखने को मिलते हैं।

‘पधारो म्हारे देस’ के भाव के साथ सैलानियों को बुलाने वाले राजस्थान में कला, स्थापत्य, खान-पान, परिधान, लोकसंगीत और जीवनयापन से जुड़े कई रंग मनमोहक हैं। प्रकृति की बेरुखी के बावजूद राजस्थान के कई हिस्सों में रहन-सहन और मान-मनुहार के जीवंत रंग आज भी बचे हुए हैं। जोधपुर में भी विरासत के इन खूबसूरत रंगों को सहेजकर इस शहर की पारंपरिक छवि को कायम रखा है। यही वजह है कि एक खास छवि को संजोये जोधपुर की संस्कृति को इस वैश्विक सूची में जगह मिली है। यहां पत्थरों से बने मकान, ऐतिहासिक किले, महल, प्राकृतिक उद्यान और कुएं, बावड़ियां पुरातन सभ्यता का प्रतीक बन आज भी सैलानियों को लुभाती हैं। ऐतिहासिक इमारतों के बीच आम जीवन की झांकी सहेजे यहां की तंग और घुमावदार गलियां भी चर्चित हैं।

हालांकि पर्यटन की दृष्टि से विश्व में राजस्थान की एक अलग पहचान रही है, पर ऐसी किसी सूची में राज्य के एक शहर को जगह मिलने का अर्थ विशेष अनुशंसा पाने जैसा है जिससे सैलानियों की संख्या भी बढ़ेगी और वैश्विक स्तर पर जोधपुर की पहचान भी। साथ ही सांस्कृतिक धरोहरों और स्मारकों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर आमजन को भी प्रोत्साहन मिलेगा। देश के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले राज्य राजस्थान के छह किले आमेर, चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, रणथंभौर, गागरौन और जैसलमेर का किला वर्ष 2013 में यूनेस्को की सूची में भी शामिल किए गए हैं। यही वजह है कि प्रदेश भर में हर वर्ष बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। आंकड़े

बताते हैं कि एक राजस्थान के अकेले जोधपुर शहर में ही हर साल करीब 15 लाख पर्यटक आते हैं।

हमारा देश एक समृद्ध विरासत को समेटे हुए है। राजस्थान ही नहीं, देश भर में कई ऐतिहासिक धरोहर और दर्शनीय स्थल हैं, जो हमारी प्राचीन संस्कृति और परंपरा के जीवंत प्रतीक हैं। यही वजह है कि इस अनमोल विरासत के लिए वैश्विक स्तर पर भारत एक विशिष्ट पहचान रखता है। भारत विश्व के उन देशों में से एक है जो अपनी अनूठी वास्तुकला और ऐतिहासिक धरोहरों के चलते हर साल दुनिया के लाखों सैलानियों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। दुनिया के कोने-कोने से हमारे यहां पर्यटक आते हैं। परंपरागत जीवन और सांस्कृतिक विविधता को देखने और इसके जरिये भारत के समृद्ध इतिहास को समझने का प्रयास करते हैं। हमारे विशिष्ट स्थलों को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलने से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कई लाभ हमारे हिस्से आते हैं। इनमें स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने से लेकर इन धरोहरों के संरक्षण के प्रति जागरुकता लाने तक सभी कुछ शामिल है।

ऐसे में जरूरी है कि वैश्विक पटल पर पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी को गंभीरता से लिया जाय। किसी भी देश में सैलानियों का आना, ना केवल वहां की सांस्कृतिक-ऐतिहासिक धरोहर का मान बढ़ाता है, बल्कि आय का भी बड़ा स्नोत होता है। पर्यटन उद्योग आय का एक बड़ा स्नोत भी है। कुल रोजगार में 7.78 फीसद पर्यटन क्षेत्र की भागीदारी भी हमारे देश में बहुत मायने रखती है। लेकिन हमारे यहां पर्यटकों से जुड़ा एक चिंतनीय पहलू यह भी है कि कई बार सैलानियों के साथ दुव्र्यवहार के मामले भी आते हैं। यह वाकई तकलीफदेह है कि जिस ‘अतुल्य भारत’ में पर्यटक बड़े चाव से आ रहे हैं, वहां सुरक्षा व्यवस्था के मुकम्मल इंतजाम नहीं होते। ऐतिहासिक इमारतों और पुरातात्विक महत्व के कई स्थलों को सहेजने और संरक्षित किए जाने के लिए भी गंभीरता से नहीं सोचा जा रहा है। अपनी विरासत और परंपरागत मूल्यों के संरक्षण के प्रति उपेक्षा का जो भाव आमजन और प्रशासनिक मशीनरी में देखने को मिलता है, वह दुखद है। यह जरूरी है कि दुनिया में मुकम्मल पहचान रखने वाली हमारी धरोहर को सहेजने व पर्यटकों का सत्कार करने में हम संवेदनशील बनें।

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