संजू वर्मा। कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर के बीच भारत में निर्मित कोवैक्सीन और कोविशिल्ड टीके के बाद अब रूस के स्पुतनिक टीके को भी मंजूरी मिल गई है। हाल ही में जाइडस कैडिला नामक फार्मा कंपनी की वैक्सीन को भी केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृती दी गई है। जहां तक टीके की मांग और आपूर्ति का पक्ष है, तो एक सुदृढ़ शासन प्रणाली ही इसमें संतुलन बैठा सकती है और मोदी सरकार ने यह काम बहुत ही व्यवस्थित रूप से किया है। देश में प्रतिदिन कोरोना संक्रमित मरीजों की बात करें तो 10 उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आठ महाराष्ट्र से आते हैं। यहां राज्य सरकार के गैर जिम्मेदाराना रवैये की वजह से पांच लाख से ज्यादा कोविड टीके नष्ट हो गए।

महाराष्ट्र की औसतन साप्ताहिक पाजिटिविटी रेट जहां 25 फीसद से अधिक रही है, वहीं दिल्ली की पाजिटिविटी दर 32 फीसद और छत्तीसगढ़ की 31 फीसद है जो यह दर्शाता है कि इन राज्यों की सरकारों ने संक्रमण को रोकने में लापरवाही बरती है। कुछ लोग आजकल भारत और ब्राजील के बीच तुलना कर रहे हैं। यह तुलना बेबुनियाद है। ब्राजील की कुल आबादी लगभग 21 करोड़ है जो भारत के सिर्फ एक राज्य उत्तर प्रदेश के बराबर है। हालांकि उत्तर प्रदेश में प्रति वर्ग किमी लोगों का घनत्व 828 है, जहां कोरोना से अब तक 11,000 लोगों की मौतें हुई हैं, जबकि ब्राजील में प्रति वर्ग किमी 25 व्यक्तियों का जनसंख्या घनत्व है, वहां मृतकों की संख्या चार लाख पहुंच चुकी है। जहां तक टीकाकरण का सवाल है तो सवा अरब से भी अधिक आबादी वाले हमारे देश में सार्वभौमिक टीकाकरण न तो व्यावहारिक है और न ही वांछनीय। फिर भी कोविड महामारी के खिलाफ जंग का ऐलान करते हुए हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है कि एक मई से 18 साल की उम्र से ऊपर सभी लोगों को टीका लगाने की अनुमति होगी और प्रबंध भी होगा।

भारत सरकार ने रिकॉर्ड समय के तहत इस साल जुलाई से पहले 30 करोड़ से अधिक लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य रखा है, जो अमेरिका की लगभग पूरी आबादी के बराबर है। जो लोग बेवजह यह आरोप लगा रहे हैं कि भारत को टीकों का निर्यात नहीं करना चाहिए था, उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि वैश्विक महामारी के संकट से निजात पाने के लिए, मानवीय आधार पर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सामूहिक प्रयास की जरूरत होती है और ठीक यही मोदी सरकार ‘वैक्सीन मैत्री’ के माध्यम से कर रही है। क्या हम भूकंप, चक्रवात या बाढ़ के दौरान पड़ोसी देशों की मदद नहीं करते हैं? तो इस कोरोना महामारी के दौरान यदि मोदी सरकार सहायता प्रदान कर रही है तो फिर इतनी हाय-तौबा क्यों मचाई जा रही है? वैक्सीन रोलआउट से पहले ही भारत के वैक्सीन निर्माताओं और ‘गावी गठबंधन’के बीच द्विपक्षीय समझौतों के तहत निर्मित किए गए अधिकांश वैक्सीन निर्यात किए गए हैं। मालूम हो कि गावी गठबंधन एक सार्वजनिक निजी भागीदारी में संचालित संगठन है, जो दुनिया के लगभग 50 फीसद बच्चों को तमाम तरह के टीके उपलब्ध करा रही है।

भारत में कोविड की इस दूसरी लहर के बीच ये सवाल पूछे जा रहे हैं कि ऐसे माहौल में विधानसभा चुनावों और राजनीतिक रैलियों पर रोक क्यों नहीं लगाई गई? तथ्य यह है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत यदि राष्ट्रीय आपातकाल जैसी स्थिति हो तो राज्य विधानसभाओं के चुनाव केवल छह महीने के लिए ही स्थगित किए जा सकते हैं। रैलियों में, लोगों की भीड़ को रोकने के लिए चुनाव आयोग की तरफ से वर्चुअल रैलियां करने का सुझाव आया था, लेकिन विपक्ष द्वारा इस सुझाव को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि वर्चुअल रैलियों से चुनाव में भाजपा को ही फायदा होगा। आज वही विपक्ष मोदी सरकार पर ताने क्यों कस रहा है? जब हजारों लोगों की भीड़ एकत्रित कर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी केरल में मछुआरों के साथ समुद्र में गोते लगा रहे थे और केरल में

राजनीतिक रैलियां कर रहे थे, क्या तब महामारी नहीं थी? इतना ही नहीं, जो लोग बार बार यह पूछते हैं कि पीएम केयर्स फंड का उपयोग किस तरह किया गया है तो उन्हें यह जानना चाहिए कि इस फंड के द्वारा विभिन्न राज्यों को लगभग 50 हजार वेंटीलेटर उपलब्ध करवाए गए हैं।

इसके अलावा, सच बात यह भी है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत एक स्वायत्त संस्था होने के नाते, चुनाव कराने और तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए चुनाव संबंधी आदर्श संहिता तय करना चुनाव आयोग के क्षेत्राधिकार में आता है। चुनाव आयोग का भाजपा या अन्य किसी राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं होता है। इसलिए चुनाव प्रक्रिया को लेकर भाजपा से सवाल करना किसी भी लिहाज से उचित नहीं है। चुनाव आयोजन का फैसला चुनाव आयोग का था, भाजपा का नहीं। कोरोना महामारी के दौर में एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना उचित होगा। भारत का मेगा टीकाकरण अभियान ‘उपलब्धता, पहुंच और सामथ्र्य’ के इर्द-गिर्द केंद्गित है।

ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के प्रयास हेतु, पीएम केयर्स फंड से पहले तो 202 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया, ताकि ऑक्सीजन जेनरेट करने वाले प्लांट्स को स्थापित किया जा सके। स्वीकृति के बावजूद कई राज्य सरकारों ने अब तक एक भी ऑक्सीजन यूनिट की स्थापना नहीं की। हाल ही में मोदी सरकार ने 551 और नए ऑक्सीजन यूनिट्स की स्थापना के लिए पीएम केयर्स फंड से आवंटन का ऐलान किया। देश में ऑक्सीजन के उत्पादन और जरूरतमंदों तक उसकी समुचित आर्पूित को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार निरंतर कार्यरत है।

[राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा]