मध्य प्रदेश [सद्गुरु शरण]। सत्ता की भूखी राजनीति इसे पाने के लिए कितने भी गहरे कुएं में गिर सकती है। कम से कम मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव की प्रचार शैली की ध्वनि से तो यही प्रदर्शित हो रहा है। मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ सिर्फ मध्य प्रदेश नहीं, बल्कि देश के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। वह केंद्र सरकार में मंत्री और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह एक चुनावी सभा के मंच पर शिवराज सिंह सरकार की मंत्री इमरती देवी की ओर संकेत करते हुए उन्हें आइटम की संज्ञा दे डालते हैं।

दरअसल इमरती देवी राज्य के उन 22 तत्कालीन कांग्रेस विधायकों में शामिल थीं, जिनकी बगावत के कारण कमल नाथ को गत फरवरी में सत्ता गंवानी पड़ी थी। इमरती देवी समेत इन सभी विधायकों ने त्यागपत्र देकर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था। अब ये सभी विधायक भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं। इमरती देवी के चुनाव क्षेत्र की सभा में कमल नाथ की हाल ही में की गई इस प्रकार की टिप्पणी पर उनके समेत मंच पर मौजूद सभी लोग अट्टहास करते हुए दिखे। इनमें एक महिला नेता भी शामिल थीं। किसी को यह होश नहीं रहा कि राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके नेता ने कैसा अभद्र आचरण कर दिया। न किसी को खेद, न माफी।

बहरहाल, चुनावी माहौल में भारतीय जनता पार्टी और कई महिला संगठनों के शोर मचाने पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जरूर ट्वीट किया कि वह व्यक्तिगत तौर पर ऐसी भाषा पसंद नहीं करते। इसके बावजूद कमल नाथ या मध्य प्रदेश कांग्रेस इकाई, जिसके मौजूदा अध्यक्ष कमल नाथ ही हैं, पर कोई असर नहीं पड़ा। कमल नाथ ने राहुल गांधी के ट्वीट को उनकी निजी राय बताते हुए इमरती देवी से माफी मांगने से साफ इन्कार कर दिया। जाहिर है, ट्वीट करके राहुल गांधी का भी कर्तव्यबोध पूर्ण हो गया।

उन्होंने कमल नाथ को माफी मांगने पर बाध्य नहीं किया। यह अलग बात है कि इमरती देवी अनुसूचित जाति से संबंधित हैं और बेहद जटिल परिस्थितियों को पछाड़ते हुए राजनीति में इस मुकाम तक पहुंची हैं। अपने अपमान के इस प्रसंग पर वह कई सभा मंचों पर फूट-फूटकर रोती देखी गईं। इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि सत्तालोलुप राजनीति की आंखों का पानी मर चुका है।

यह तो हुई कमल नाथ की बात। अब बात उनकी ही पार्टी के उम्मीदवार फूल सिंह बरैया की। बरैया कांग्रेस में शामिल होने से पहले बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक रह चुके हैं। उनकी एक सभा का वीडियो वायरल है जिसमें वह कई अन्य घोर आपत्तिजनक बातों के अलावा अपने समर्थकों को सवर्ण महिलाओं को अपने घर में दूसरी पत्नी के रूप में रखने की नसीहत दे रहे हैं।

इतनी घटिया बात पर कांग्रेस ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि यह वीडियो उस वक्त का है, जब बरैया बहुजन समाज पार्टी में हुआ करते थे। अजीब तर्क है। बरैया ने पार्टी जरूर बदल ली, पर व्यक्तित्व तो वही है। यदि बरैया अपने उस भाषण पर खेद जता देते तो बात और होती। उन्हें अपनी सोच पर कतई अफसोस नहीं है। उनका एक अन्य वीडियो वायरल है जिसमें वह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहे हैं। इस पूरे प्रकरण में दुखद पहलू यह भी है कि बरैया के बयानों पर राहुल गांधी ने भी कोई अफसोस नहीं जताया।

ऐसा नहीं है कि सत्ता की भूख में सिर्फ कांग्रेसी ही आपा खो रहे। भारतीय जनता पार्टी के नेता भी ज्यादा पीछे नहीं हैं। कांग्रेस से भाजपा में शामिल दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की मौजूदगी में शिवराज सरकार के मंत्री गिर्राज दंडतिया ने चुनाव सभा के मंच से कहा कि कमल नाथ ने आइटम वाली टिप्पणी भिंड-मुरैना क्षेत्र में की होती तो उनकी लाश वहीं गिर जाती। गिर्राज भी विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं।

ज्यादा लज्जाजनक बात यह हुई कि जब गिर्राज ने लाश गिराने वाली टिप्पणी की तो मंच पर मौजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनका कंधा थपथपाकर शाबासी दी। ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद कांग्रेस के निशाने पर हैं। कमल नाथ समेत कांग्रेस के सभी नेता उन्हें और उनके पूर्वजों को गद्दार की संज्ञा दे रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के नेता एक-दूसरे के लिए जिन उपमाओं का चयन कर रहे हैं, किसी सभ्य समाज में उनके लिए कोई स्थान नहीं बनता, पर सत्ता की भूखी पार्टयिों के नेता इस कदर खूंखार हो गए हैं कि उन्हें सामान्य शिष्टाचार भी याद नहीं।

इस लज्जाजनक परिदृश्य का बेहद चिंताजनक पहलू, सांविधानिक एवं अन्य संस्थाओं की तटस्थता है। खानापूर्ति के लिए शिकायतें हुईं, पर किसी भी संस्था ने कागजी कवायद से आगे जाने की जरूरत नहीं समझी। चुनाव आयोग ने प्रकरण कई दिन लंबित रखने के बाद इमरती देवी मामले में कमल नाथ का स्टार प्रचारक का दर्जा तब छीना, जब चुनाव प्रचार खत्म होने में सिर्फ दो दिन बाकी बचे।

स्त्री अपमान, दलित अपमान, समाज विरोधी टिप्पणियां पूरी तरह आपराधिक कृत्य हैं, पर यह संज्ञान न पुलिस ने लिया, न सरकार ने, न चुनाव आयोग ने, और न किसी अन्य संस्था ने। चुनाव आयोग ने कुछ प्रसंगों में जो कार्रवाई की, वह नेताओं के कृत्य का परिमाण देखते हुए नगण्य मानी जाएगी। विडंबना यह है कि अधिकतर मामले आपराधिक श्रेणी के हैं, पर एक में भी आइपीसी या सीआरपीसी के तहत कार्रवाई नहीं हुई। ऐसा न किए जाने के तरह-तरह के कुतर्क हैं, पर असली बात यह है कि हमाम में जब सब एक से हैं तो कौन किस पर कार्रवाई करवाए? (संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश)