अभिषेक रंजन सिंह। प्रखर समाजवादी और मौलिक चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया का देश के स्वतंत्रता आंदोलन में उल्लेखनीय योगदान रहा है। संयोग से वर्तमान वर्ष ‘गोवा क्रांति दिवस’ की 75वीं एवं ‘गोवा की आजादी’ की 60वीं वर्षगांठ भी है। क्रांति भूमि गोवा की प्रचलित छवि वैसे तो विशाल समुद्री तट से है, लेकिन गोवा के गौरवशाली अतीत से अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं। इस तरह जाने-अनजाने में हमलोगों से यह चूक हुई है कि देश की नई पीढ़ी गोवा की वास्तविक छवि से परिचित नहीं है। क्या गोवा मुक्ति संग्राम के महानायकों से जुड़े स्थलों को हमें अपने पर्यटन मानचित्र में शामिल नहीं करना चाहिए, ताकि लोगों को गोमंतकों के संघर्ष एवं बलिदान के विषय में जानकारी प्राप्त हो। गोवा की वास्तविक छवि युवा ही गढ़ेंगे, पर यह तभी संभव होगा जब हम अपने इतिहास को जानेंगे।

संयोगवश पिछले महीने गोवा जाने का मौका मिला। उत्तरी एवं दक्षिणी गोवा में डॉ. लोहिया से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्मारकों एवं स्थलों का भ्रमण किया। गोवा मुक्ति आंदोलन के शिल्पकार डॉ. लोहिया एवं उनके सहयोगियों से जुड़े कई अहम दस्तावेज हासिल करने में कामयाबी मिली। पता चला कि गोवा सरकार डॉ. राममनोहर लोहिया की स्मृति में आग्वादा किला जेल को संग्रहालय बना रही है। इसी परिसर में डॉ. लोहिया की एक आदमकद प्रतिमा का अनावरण भी होना है। राज्य सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है। लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष देशी-विदेशी पर्यटक आग्वादा किला देखने आते हैं। डॉ. लोहिया एवं गोवा मुक्ति युद्ध पर केंद्रित यह संग्रहालय यहां आने वाले सैलानियों को नवीन जानकारियां उपलब्ध कराएगा।

गोवा मुक्ति युद्ध के इतिहास में श्री दामोदर विद्या भवन का उल्लेखनीय स्थान है। यह इमारत मडगांव स्थित लोहिया मैदान के नजदीक है। दरअसल 14 जून 1946 को इसी भवन में डॉ. राममनोहर लोहिया और डॉ. जूलियाओ मेनेजिस समेत करीब 50 लोगों ने एक गुप्त बैठक की थी। जबकि यहां से चंद फर्लाग की दूरी पर मडगांव पुलिस थाना भी है, लेकिन पुर्तगाली पुलिस को इस बैठक के बारे में भनक तक नहीं लगी। ठीक उसके चार दिन बाद 18 जून 1946 को डॉ. लोहिया ने पुर्तगाल शासन के खिलाफ क्रांति का निर्णायक एलान कर दिया। यहां आयोजित जनसभा के बाद उन्हें कैद कर आग्वादा किला जेल में बंद कर दिया गया। महात्मा गांधी ने भी लोहिया की गिरफ्तारी का विरोध किया था। हफ्ते भर बाद पुर्तगाल शासन ने डॉ. लोहिया को रिहा तो कर दिया, लेकिन उनके गोवा आने पर पाबंदी लगा दी।

डॉ. लोहिया एक जनपक्षधर नेता थे और वह समाजवादी इस अर्थ में थे कि समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था। वह औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ और लोकतंत्र के प्रबल पैरोकार थे। वह भारत की आजादी के साथ-साथ गोवा की स्वाधीनता के लिए भी लड़ रहे थे। लोकतंत्र के प्रति उनकी आस्था का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उन्होंने नेपाल और म्यांमार (तब बर्मा) में भी लोकतंत्र की बहाली के लिए उल्लेखनीय कार्य किए।

डॉ. लोहिया का संबंध उत्तर प्रदेश से है, जहां की संस्कृति गोवा से बिल्कुल अलग है। मगर गोवा क्रांति का बिगुल फूंकने वाले डॉ. लोहिया ने अपने व्यक्तित्व के मुताबिक गोवा की स्वाधीनता के लिए अपना अप्रतिम योगदान दिया। जब भारत आजाद हुआ, गोवा तब भी पुर्तगालियों के अधीन था। वर्ष 1954 में फ्रांस ने पुडुचेरी (तब पांडिचेरी) को मुक्त कर दिया, लेकिन गोवा स्वतंत्र नहीं हुआ। लंबे संघर्ष के बाद 19 दिसंबर 1961 को गोवा को पुर्तगाली दासता से मुक्ति मिली। गोवा की आजादी के संघर्ष में गोमंतकों के साथ बाहर से आए लोग भी शामिल थे।

डॉ. राममनोहर लोहिया के अनुयायियों के लिए गोवा पुण्य भूमि है। जिस व्यक्ति और स्थान ने डॉ. लोहिया को इतिहास में महानायक बनाया, वह मडगांव से 12 किमी दूर आसोलना गांव में डॉ. जूलियाओ मेनेजिस का घर है। डॉ. लोहिया और डॉ. मेनेजिस जर्मनी के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय में साथ पढ़ते थे। लाहौर किला जेल से रिहा होने के बाद डॉ. मेनेजिस के आग्रह पर डॉ. लोहिया स्वास्थ्य लाभ हेतु आसोलना आए थे। लेकिन इतिहास को शायद कुछ और मंजूर था तथा डॉ. लोहिया के निमित्त एक महान कार्य संपादित होना था। गोवा में पुर्तगाल सरकार का जुल्म उनसे देखा नहीं गया। पुर्तगाल शासन के विरुद्ध डॉ. लोहिया ने आसोलना के लोगों को एकजुट किया। उनकी अपील पर मडगांव, पणजी, मापुसा, वास्को और फोंडा के अलावा कोंकण के कई अंचलों में गोमंतकों की बैठकें होने लगीं। सही मायनों में 18 जून 1946 को मडगांव मैदान (अब लोहिया मैदान) में उनकी जनसभा ने यह तय कर दिया कि अब गोवा आजाद होकर रहेगा।

डॉ. लोहिया को समूचे गोवा में मुक्ति योद्धा का दर्जा हासिल है। जिस श्रद्धा से देशभर में महात्मा गांधी को स्मरण किया जाता है, उसी आदर भाव से गोवा में डॉ. लोहिया को याद किया जाता है। कोंकणी में डॉ. लोहिया पर केंद्रित कई लोकगीत एवं कविताएं लिखी गई हैं। गोमंतकों के बीच ‘आग्वादा का शेर’ कहे जाने वाले डॉ. राममनोहर लोहिया के सम्मान में कोंकणी के प्रसिद्ध कवि मनोहर राव सरदेसाई ने ये पंक्तियां लिखी हैं :

आज हम हो गए आजाद, मुक्त हमारी आवाज। सब कुछ देने को हम तैयार, मांग लो हमारा प्यार। हे, आग्वादा के शेर तुमने, जागने की दे दी पुकार।

[अध्यक्ष, डॉ. राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन]