भोपाल, संजय मिश्र। बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ। यह कहावत मध्य प्रदेश के दिग्गी राजा अर्थात पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह पर सटीक बैठती है। वह ऐसे शख्स हैं जो अपनी धुन में रमे रहकर अक्सर विवादों को जन्म देते हैं। भले ही वह धुन देश की आवाज के खिलाफ ही क्यों न हो। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक दिग्विजय सिंह को गांधी परिवार खासकर राहुल गांधी का करीबी माना जाता है।

गाहे-बगाहे उनके राहुल के राजनीतिक गुरु होने की चर्चा भी होती है। वह कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य भी हैं। ऐसा वरिष्ठ नेता कोई भी बात अनायास बोलेगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। वह भी दिग्विजय जैसे नेता से तो बिल्कुल ही नहीं। कई बार तो उनके विवादित बयानों ने न केवल उन्हें आलोचना का केंद्र बनाया, बल्कि कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा किया। इसके बावजूद यदि दिग्विजय देश की भावना के खिलाफ कोई टिप्पणी करते हैं तो इसे अनायास नहीं कहेंगे। निश्चित ही इसमें भी सोची समझी रणनीति होती है। कांग्रेस इससे अलग हो, यह सोचना भी उचित नहीं होगा।

अर्से बाद दिग्विजय ने पाकिस्तान के एक पत्रकार से बातचीत में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध किया। यह भी कह डाला कि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह इस निर्णय पर पुनर्विचार करेगी और 370 बहाल करेगी। उनके इस बयान ने देशवासियों को एक बार फिर दुखी और निराश किया है। इससे देश की राजनीति गरमाई हुई है। मध्य प्रदेश में तो उनके खिलाफ बयानों एवं प्रदर्शनों की बाढ़ आ गई है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या वास्तव में दिग्विजय ने यह बयान निजी हैसियत से दिया है? या सिर्फ जुबान फिसलने या अंग्रेजी भाषा के शब्द को न समझने का फेर है? क्या देश के एक सांसद से ऐसी अपेक्षा की जा सकती है कि वह किसी पाकिस्तानी पत्रकार से बात करते हुए देश की भावना के खिलाफ निजी राय जाहिर करे?

भाजपा इसे कांग्रेस का टेस्टिंग वक्तव्य मान रही है और दिग्विजय को उसका टेस्टिंग किट। मतलब यह कि कांग्रेस ने इस मुद्दे को दिग्विजय के मुंह से कहलवाकर एक तरह का टेस्ट किया है। उसने देखना चाहा है कि लगभग शांत हो रहे कश्मीर से जुड़े इस बयान का रिस्पांस क्या मिलता है। अधिकतर गैर कांग्रेसी दलों के साथ देशवासियों की जो प्रतिक्रिया मिली है वह कांग्रेस के लिए सबक है कि अपने टेस्टिंग किट को संभालकर रखे वरना बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। अब कांग्रेस सफाई दे रही है कि वह अपने पुराने विचार पर अडिग है।

सवाल है कि यदि कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले पर कांग्रेस का कोई स्पष्ट विचार है तो उसके किसी नेता का निजी विचार उससे अलग क्यों होना चाहिए। इस मसले पर कांग्रेस बुरी तरह घिर गई है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो इसे कांग्रेस की पाकिस्तानी मानसिकता वाला बयान बताते हुए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से जवाब मांगा है। शिवराज ने कहा कि वह कांग्रेस ही थी, जिसने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 लगाने का पाप किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे हटाया। अब देश में दो विधान, दो निशान नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस अब फिर पाकिस्तान की भाषा बोल रही है। उनके नेता दिग्विजय कहते हैं कि अनुच्छेद-370 हटाने पर पुनíवचार किया जाएगा। इसलिए सोनिया गांधी बताएं कि क्या फिर कांग्रेस अलगाववाद और आतंकवाद को प्रश्रय देगी। राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कहा, ‘कांग्रेस आज भी पाकिस्तान का पक्ष लेने से नहीं चूकती है। कांग्रेस की नीति और नीयत का यही सच है। दिग्विजय के बयान से मुङो आश्चर्य नहीं हुआ।’

ऐसा नहीं है कि दिग्विजय सिंह ने पहली बार कोई विवादास्पद बयान देकर देश और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को असहज किया हो। पहले भी कई बार वह संवेदनशील मुद्दों पर देश व कांग्रेस को असहज कर चुके हैं। चाहे बाटला हाउस एनकाउंटर का मामला हो या श्रीराम जन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर के भूमिपूजन का, दिग्विजय ने अपना अलग ही राग अलापा और पार्टी चुप रही। उन्होंने बाटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल उठाए थे। आतंकी हमलों पर जब चर्चा छिड़ी तो हिंदू आतंकवाद जैसा बयान देकर दिग्विजय ने आतंकवाद को भी अलग रूप देने की कोशिश की। हालांकि, बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा था कि मैंने संघी आतंकवाद कहा था। कांग्रेस सरकार के समय भोपाल में हुए संत समागम में भी उन्होंने विवाद खड़ा करते हुए कहा था कि कोई व्यक्ति अपना परिवार छोड़कर साधु बनता है। धर्म का आचरण करते हुए आध्यात्म की ओर मुड़ता है, लेकिन आज भगवा वस्त्र पहनकर लोग चूरन बेच रहे हैं, दुष्कर्म कर रहे हैं। ऐसे बयानों की कड़ी आलोचना हुई लेकिन कांग्रेस मौन रही।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]