लालजी जायसवाल। भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर शुरू हो गई है। वैसे इसमें एक बड़ी राहत की बात यह भी है कि अभी तक कुछ ही राज्यों में इस दूसरी लहर के संकेत मिले हैं। शोधकर्ताओं ने अलग-अलग अध्ययनों में पाया है कि दुनिया के अधिकांश देशों में कोरोना वायरस की दूसरी लहर, पहली से ज्यादा खतरनाक साबित हुई है, लेकिन हमारे देश में टीकाकरण के कार्यो में तेजी निश्चित रूप से इस संबंध में बड़ी राहत देने वाली खबर है। ऐसे में केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि आज यानी एक अप्रैल से देश में 45 साल से ज्यादा उम्र के सभी नागरिक आज से कोरोना रोधी टीका लगवा सकेंगे।

दरअसल अब तक 45 से 60 वर्ष तक के केवल उन लोगों को ही टीकाकरण अभियान में शामिल किया गया था जो कुछ निर्दिष्ट बीमारियों से ग्रस्त थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मार्च के आखिर तक 4.83 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। अच्छी बात यह भी है कि इनमें से लगभग 80 लाख लोगों को इस वैक्सीन का दूसरा डोज भी दिया जा चुका है।

टीकाकरण कार्य में तेजी को देखते हुए सरकार को उम्मीद है कि अगस्त तक लगभग 30 करोड़ लोगों को टीका लग जाएगा। उल्लेखनीय है कि दो साल के भीतर देश की समग्र आबादी लगभग 1.3 अरब लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए रोजाना करीब 30 लाख लोगों का टीकाकरण किया जाएगा।

अगर कोरोना वायरस की चपेट में आकर प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर चुके लोगों को टीके के दायरे से बाहर रखा जाए तो संभावित आंकड़ा थोड़ा कम हो सकता है। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि दो साल के इस लक्ष्य की पूíत करना क्या आसान है? निश्चित ही यह दो साल का महा मैराथन कठिन है और इस कठिनाई का कारण ग्रामीण और पिछड़े व दूरदराज के इलाकों में टीकाकरण सफल बनाने की है। सर्वविदित है कि ग्रामीण और शहरी जिलों में टीकाकरण का अंतर जितना कम होगा, रोजाना के बढ़ते मामलों से निपटने में राज्य सरकारों को उतनी ही मदद मिलेगी। यानी ग्रामीण इलाकों में टीकाकरण पर उतना ही जोर देना होगा, जितना शहरी इलाकों में। वास्तव में तभी ग्रामीण इलाकों को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाया जा सकेगा।

पिछड़े जिलों में सर्वाधिक समस्या

पिछले साल नीति आयोग ने देश के पिछड़ेपन की तस्वीर पेश करते हुए सबसे पिछड़े सौ जिलों की एक सूची जारी की थी। इन जिलों के पिछड़ेपन की कोई एक वजह नहीं है, इसके अनेक कारण हैं। जैसे ये दूरदराज के इलाकों में स्थित हैं, रोड और रेलवे कनेक्टिविटी खराब है। इन पिछड़े जिलों में या तो अक्सर सूखा पड़ता है या फिर उन्हें बाढ़ का प्रकोप ङोलना पड़ता है। इन इलाकों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों की आबादी भी अधिक है। ऐसी स्थिति में ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में चुनौती और बढ़ जाती है। ऐसे क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में या तो कर्मचारी नदारद हैं या फिर उनकी संख्या बहुत कम है। ऐसे में टीकाकरण को सुचारु तरीके से संपन्न कराने में जरूरत से ज्यादा संघर्ष करना होगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक भारत के लगभग 20 लाख स्वास्थ्यकíमयों में से 60 फीसद शहरी क्षेत्रों में मौजूद हैं। मालूम हो कि वर्तमान में भारत में लगभग 6.28 लाख गांव हैं और देश की करीब 60 फीसद आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इसका मतलब है कि सरकारों को न केवल मौजूदा स्वास्थ्य नेटवर्क को सक्रिय करना होगा, बल्कि कम समय में लाखों नए लोगों को प्रशिक्षित कर, इसका दायरा बढ़ाना होगा। ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल में लगे करीब 24 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ता इसमें मददगार हो सकते हैं। चूंकि उनका अनुभव मुख्यत: बच्चों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम चलाने का ही है, लिहाजा इस टीकाकरण अभियान को सफल बनाने के लिए उनको भी प्रशिक्षित करने की दरकार होगी। एक बड़ा सवाल यह भी है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता क्या इस काम के लिए काफी होंगे?

इस संदर्भ में एक तथ्य यह भी है कि स्वास्थ्य मंत्रलय ने जुलाई 2021 तक करीब 25 करोड़ लोगों के लिए 50 करोड़ टीका खुराक मिलने की उम्मीद जताई है। अत: इस लक्ष्य को सही तरीके से प्राप्त करने के लिए अस्थायी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं या आंगनवाड़ी कíमयों के प्रशिक्षण हेतु क्रैश कोर्स भी चलाया जा सकता है। इससे त्वरित रूप से प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी तैयार हो सकेंगे। टीके की बर्बादी भी हमारे लिए एक चिंता का कारण बन रही है। स्वास्थ्य मंत्रलय ने राज्यों को टीके के भंडारण के लिए निर्देश जारी किया था कि टीकों को दो से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच रखना जरूरी होगा। इसका सही अनुपालन न होना भी टीका बर्बादी का कारण बन रहा है।

टीके का हो पूर्णतया सदुपयोग

केंद्र सरकार ने पिछले दिनों कहा था कि चार राज्यों में वैक्सीन की बर्बादी इसके राष्ट्रीय औसत से अधिक है। इन चार राज्यों- तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में टीके की खुराक की बर्बादी राष्ट्रीय औसत 6.5 प्रतिशत से काफी अधिक है। ऐसे में इन राज्यों को अपने स्तर पर सोचना होगा कि कोविड रोधी टीके अमूल्य हैं और ये लोगों की सेहत की बेहतरी के लिए हैं। अत: इसकी बर्बादी को कैसे रोकते हुए किफायती तरीके से इसका इस्तेमाल किया जा सकता है? सरकारी आकलन के मुताबिक तेलंगाना में 17.6 प्रतिशत तथा आंध्र प्रदेश में 11.6 प्रतिशत टीका बर्बाद हुआ है। टीका बर्बादी की प्रमुख वजह मनमाना रवैया, प्रशिक्षण का अभाव और उदासीनता ही रही है। लिहाजा राज्यों को कम समय में स्वास्थ्यकíमयों को प्रशिक्षण और प्रभावी शीतगृह नेटवर्क बनाना होगा। सुदूर इलाकों में टीका पहुंचाने के लिए प्रशीतित डिलीवरी वैन का इंतजाम करना होगा, अन्यथा टीका बर्बाद होना जारी रहेगा और इन इलाकों में टीकाकरण कठिन हो सकता है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधार्थी हैं)