दीपक सूद। Coronavirus Outbreak कोविड-19 की दूसरी लहर पहली की तुलना में आर्थिक नुकसान से कहीं बढ़कर मानवीय क्षति पहुंचा रही है। इस महामारी से देश में स्वास्थ्य क्षेत्र का ढांचा चरमरा गया है। संक्रमण कुछ कम होने के बाद भी मौतों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। इस चुनौती से पार पाने के लिए सरकार, उद्योग और समाज अपनी पूरी क्षमता से प्रयास कर रहे हैं। केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी अपनी ओर से हरसंभव कोशिश कर रही हैं। कोरोना की मौजूदा चुनौती से निपटने के लिए हर लिहाज से युद्धस्तर पर कदम उठाने और उनके प्रबंधन की जरूरत है।

संक्रमण के प्रवाह को रोकने के लिए जिम्मेदार कड़ियों को तोड़ना होगा। इसके लिए कुछ आर्थिक गतिविधियों को बंद करना होगा, जिससे लोगों की आवाजाही कम हो। इसके अलावा व्यापक स्तर पर टीकाकरण और चुनिंदा आर्थिक गतिविधियों की इजाजत संक्रमण के प्रसार को कम करने में कुछ और मददगार हो सकते हैं। टीके की आपूर्ति 90 दिनों में सुनिश्चित होनी चाहिए, जब तक कि निजी क्षेत्र वैश्विक टीका उत्पादकों के साथ अपनी आपूर्ति व्यवस्था को सही न कर ले। बिना किसी रुकावट के टीका आपूर्ति बेहद अहम है। खासकर उनके लिए जो पहली डोज ले चुके हैं और दूसरी एक तय समय सीमा में ही लेना है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा है कि कोरोना से लड़ने के लिए चुनिंदा और प्रभावी कंटेनमेंट जोन और माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनाए जाने चाहिए। ये व्यापक स्तर पर प्रतिबंध लगाने या लॉकडाउन के मुकाबले बेहतर परिणाम दे रहे हैं। ये जीवन और आजीविका बचाने का सबसे कारगर समाधान हो सकते हैं। प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद भारतीय उद्योग जगत भी स्वास्थ्य आपातकाल का मुकाबला करने के लिए सामने आया है। निजी क्षेत्र की ओर से अस्पतालों को मेडिकल आक्सीजन, आक्सीजन सिलेंडर, पोर्टेबल कंसंट्रेटर और जेनरेटर की आपूर्ति की जा रही है। उद्योग जगत ने औद्योगिक आक्सीजन के स्थान पर मेडिकल आक्सीजन का उत्पादन करने और उनके परिवहन के लिए भी अहम कदम उठाए हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में ढांचागत विकास और टीकाकरण के लिए वैश्विक मदद सराहनीय है। बहरहाल आपूर्ति व्यवस्था की चुनौतियों को और कम किया जा सकता है, क्योंकि जिला स्तर पर नियामकीय ढांचे की वजह से उद्योगों को अभी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मामले में हेल्प डेस्क या मंत्रालय स्तर पर निगरानी हो रही है। निगरानी के इस विकल्प को घरेलू व्यापार में भी अपनाया जा सकता है।

भारत का आइटी और टेलीकॉम सेक्टर कोरोना महामारी से इस जंग में स्वास्थ्य क्षेत्र के साथ मजबूती से खड़ा है। केंद्र या राज्य सरकारों अथवा नगर निकायों के सूचना बोर्ड के जरिये पीड़ितों को अहम जानकारियां मिल रही हैं। इसमें तकनीक अहम भूमिका निभा रही है। इस मुश्किल वक्त में उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। इस्पात, रसायन विशेषकर बुनियादी कच्चा माल, धातु और सीमेंट की मांग में तेजी का रुख बना हुआ है। इसमें दोराय नहीं कि शारीरिक दूरी के नियम का खुद से पालन करने और कुछ क्षेत्रों में लॉकडाउन जैसे उपाय संक्रमण की रफ्तार को कम करने में कारगर साबित हुए हैं। हालांकि कुछ क्षेत्रों को इससे नुकसान भी हुआ है। आतिथ्य क्षेत्र पर इस नुकसान का असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।अब व्यापक स्तर पर टीकाकरण अभियान ही इन क्षेत्रों के लिए उम्मीद की किरण है। आज बैंक भी काफी दबाव में हैं, लेकिन इस कठिन चुनौती से निपटने के लिए इस बार वे ज्यादा तैयार हैं। पिछले साल कर्ज की मांग सुस्त रहने से बैंकों के पास पर्याप्त नकदी है।

महामारी में छोटे उद्योग और अनौपचारिक क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। हालांकि हम उन्हें तकनीक को तेजी से अपनाते हुए, आपूर्ति व्यवस्था को बेहतर करने और औपचारिक क्षेत्र से तालमेल करते हुए देख रहे हैं। इस तरह से छोटे उद्योग इस कठिन समय से खुद को निकाल सकते हैं। रिजर्व बैंक ने भी इस दूसरी लहर की चुनौती से निकलने के लिए जो गैर पारंपरिक कदम उठाए हैं, व्यक्तिगत कर्जदारों सहित छोटे कर्जदारों को राहत देने के कई एलान किए हैं, वे भरोसा बढ़ाने वाले हैं। इस महामारी में छोटे कारोबार और वित्तीय इकाइयां जमीनी स्तर पर सबसे अधिक मुश्किलों का सामना कर रही हैं।

इसी के मद्देनजर रिजर्व बैंक ने 25 करोड़ रुपये तक के कर्ज के पुनर्गठन की मंजूरी दी है। साथ ही माइक्रो फाइनेंस, स्मॉल फाइनेंस बैंक और व्यक्तिगत कर्जदारों को उसने प्राथमिकता क्षेत्र में रखा है, जिससे सबसे अधिक दबाव झेल रहे इस क्षेत्र को बड़ी राहत मिलेगी। सरकारी और निजी क्षेत्र के समूचे स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूती देने और टीका निर्माताओं को आसान कर्ज मुहैया कराना भी इस समय की एक बड़ी जरूरत थी, जिसे रिजर्व बैंक ने पूरा करने की कोशिश है। केंद्र के नेतृत्व में राज्य भी कोविड-19 के खिलाफ इस जंग में अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे हैं। ऐसे में ओवरड्राफ्ट मानकों को नरम किए जाने से उन्हें स्वास्थ्य क्षेत्र को बेहतर करने में जरूरी मदद मिलेगी।

कुल मिलाकर सरकार, उद्योग जगत और अन्य सभी एजेंसियों का जोर देश में स्वास्थ्य ढांचे को बढ़ाकर अनिवार्य उपकरणों की आपूर्ति बेहतर करने और लोगों की उन तक पहुंच आसान करके जीवन बचाने पर होना चाहिए। यह भारत को केवल कोविड की दूसरी लहर से लड़ने में ही मजबूती नहीं देगा, बल्कि देश को इस घातक वायरस के तूफान से भी जल्द बाहर निकालने में मददगार साबित होगा।

(लेखक एसोचैम के महासचिव हैं)