[ संतोष त्रिवेदी ]: एक होती है आत्मा और दूसरी अंतरात्मा। हम जैसे साधारण लोगों के पास सिर्फ आत्मा होती है। जो थोड़ा पहुंचे हुए होते हैं, उनके पास ‘अंतरात्मा’ होती है। यह आम जन के लिए कतई सुलभ नहीं है। इसकी पहचान भी सबको नहीं होती। जैसे हिरन को अपनी कस्तूरी का पता नहीं होता, वह उसकी खोज में भटकता रहता है, वैसे ही ‘अंतरात्मा’ को धारण करने वाला इससे बिल्कुल अनजान रहता है। सदियों से सोई आत्मा अचानक ‘अंतरात्मा’ बन जाती है। जैसे हर सांप में मणि पैदा करने की कूवत नहीं होती, वैसे ही हर मनुष्य में ‘अंतरात्मा’ नहीं होती। जब यह कहीं प्रकट होती है तो चीख-चीखकर ‘अलार्म’ बजाने लगती है। प्राणी बेचारा उसकी आवाज सुनने को मजबूर हो जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि उसकी आवाज सुनने का समय बिल्कुल सटीक होता है। इससे ‘अंतरात्मा-जीवी’ को अपना लक्ष्य साधने में कोई मुश्किल नहीं होती।

आत्माएं आते हुए खतरे को ये ऐन मौके पर पहचान लेती हैं

ऐसी आत्माएं दूरदर्शी तो होती ही हैं, इनकी घ्राण-शक्ति भी बहुत तीव्र होती है। आते हुए खतरे को ये ऐन मौके पर पहचान लेती हैं। इससे न सिर्फ ये हमेशा सुरक्षित रहती हैं, बल्कि लोकतंत्र भी खतरे से बाहर हो जाता है। नुकसान तो इनके पास भी नहीं फटकता। साथ ही ये किसी नैतिकता-फैतिकता के अपराध-बोध से एकदम परे होती हैं। ये इतनी सिद्धांत-प्रूफ होती हैं कि कोई भी निष्ठा इनकी ‘विकास-यात्रा’ में अड़ंगा नहीं डाल सकती।

दुर्लभ अंतरात्मा से टकराव, जरा देखकर चला करिए

ऐसी ही एक दुर्लभ अंतरात्मा से कल शाम टकरा गया। वह बड़ी तेजी से ‘राजपथ’ की ओर भागी जा रही थी। हमने केवल इतना भर कहा कि जरा देखकर चला करिए। बीच में सरकार भी खड़ी है। आजकल बड़ी सतर्क है। कहीं कोई ‘टूलकिट’ बिखर गई तो बाहरी छोड़िए, अंदरूनी तार भी स्थायी रूप से हिल जाएंगे। मेरी बात सुनते ही वह बोली, ‘दरअसल इन दिनों बंगाल की खाड़ी में जबरदस्त दबाव बना हुआ है। तिनकों और घास-फूस की बात छोड़िए, बड़े-बड़े महल धराशायी हो रहे हैं। भयंकर तूफान की आशंका है। इसलिए मैंने सोचा मिटने से बेहतर है, थोड़ा सा गिर लिया जाए। और मेरा ‘गिरना’ कोई आम गिरना नहीं है। सही बात तो यह है कि गिरने का कभी रत्ती भर खौफ नहीं रहा मुझे। और आप जिसे अपनी नादानी से ‘गिरावट’ समझ रहे हैं, दरअसल वह मेरी सहज ‘गति’ है। मुझे जब भी अंदर की आवाज सुनाई देती है, रहा नहीं जाता। मैं हरदम यात्रा में रहती हूं। सच बताऊं, मैं केवल स्नेह की भूखी हूं, जहां भी मिलता है, छककर खाती हूं और आगे बढ़ जाती हूंर्। ंजदगी में मुझे कभी किसी से मोह नहीं रहा। आपने मुझे टोककर ठीक नहीं किया। अंतरात्माएं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होतीं। यह काम सामान्य जीवधारियों का है।

अंतरात्मा का आत्मविश्वास देखकर मेरा संतुलन हिल गया

अंतरात्मा का ऐसा आत्मविश्वास देखकर मेरा संतुलन हिल गया। फिर भी पूछ बैठा, ‘आत्मा से अंतरात्मा’ होने तक का आपका यह सफर कैसा रहा? उसने मुझे ऐसे देखा, मानो बरसों बाद कोई बुद्धिजीवी देख लिया हो। कहने लगी, ‘आपने शायद किताबों से ज्यादा ‘वाट्सएप’ की लीक हुई कोई चैट पढ़ ली है। आधुनिक अंतरात्माएं पूरी तरह अपग्रेड हो चुकी हैं। ये आम आत्माओं की तरह न भूखी मरती हैं और न ही बेरोजगार रहती हैं। जिन आत्माओं के ‘अजर-अमर’ होने की बात गीता में कही गई है, वह हम जैसी ‘सुपर आत्माओं’ के बारे में ही है। इन्हें ऐसी दिव्य शक्तियां प्राप्त हैं कि ये आत्मजीवी और परजीवी में भेद नहीं मानतीं। इनकी उपस्थिति दल और व्यक्ति-निष्ठा जैसे पारंपरिक बंधनों से मुक्त होती हैं। जब कोई अंतरात्मा अपनी आवाज सुनती है, उस वक्त ख़ुद की भी नहीं सुनती। उन्हें किसी भी प्रकार की शारीरिक, मानसिक या नैतिक चोट नहीं लगती। ’

देश में अभी दो ही समस्याएं हैं, पहली विपक्ष और दूसरी बुद्धिजीवी

तो क्या ‘गति’ के मामले में आप तेल को भी मात देने वाली हैं? इस पर ‘अंतरात्मा’ बोली, ‘आप किस नश्वर संसार की बातें करते हैं? तेल आज है, कल नहीं रहेगा। नसीब से मिलने वाली वस्तु जितनी जल्दी चली जाए, ठीक रहता है। मनुष्य तभी आत्मनिर्भर बनेगा। मैं कब की हो गई हूं। देश में अभी दो ही समस्याएं हैं। पहली विपक्ष, दूसरी बुद्धिजीवी। मुश्किल यह है कि इनके पास ‘अंतरात्मा’ भी नहीं है।’ इतना कहकर वह अचानक अदृश्य हो गई।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]