हिमाचल प्रदेश, नवनीत शर्मा। एक विचार कैसे जन्म लेता है.. कैसे प्रस्ताव की शक्ल में ढलता है.. और कैसे कदम बन जाता है, यह यात्रा संघर्ष की यात्रा होती है। लेकिन अंतत: जब विचार क्रिया में अनूदित होकर सफल हो जाता है तो संतुष्टि का भाव देता है। हिमाचल प्रदेश और खासतौर पर पालमपुर विशेष आनंद में है। श्रीराम मंदिर के लिए भूमिपूजन संपन्न होने से 31 वर्ष पूर्व पालमपुर में ही श्रीराम मंदिर का प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पारित किया गया था। तीन दिवसीय बैठक 1989 में नौ से 11 जून तक चली थी। उसके बाद का कालखंड रहस्य नहीं है। आंदोलन, संघर्ष और बलिदान तक। वास्तव में श्रीराम सबके हैं और सब श्रीराम के हैं।

जनजीवन में हमेशा से जीवंत श्रीराम का हर संघर्ष अंतत: सफलता में परिणत होता है। हिमाचल प्रदेश में बाकायदा शब्द पाया हुआ एक संकल्प आधारशिला के चरण तक जा पहुंचा। श्रीराम मंदिर के लिए यात्र आसान नहीं रही। पांच शताब्दियों की यह यात्र एक नजीर भी है और यह अवसर देश प्रदेश के उल्लास के बीच राममय होने का प्रमाण भी। बेशक, यह भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य संबद्ध संगठनों के साथ ही देश भर के आंदोलनकारियों की विजय का साकार होना है। हिमाचल प्रदेश से भी असंख्य आंदोलनकारी भाग ले चुके हैं।

श्रीराम का हिमाचल प्रदेश के साथ एक प्रत्यक्ष नाता 1651 में अयोध्या से कुल्लू के राजा जगत सिंह द्वारा लाई गई मूíत के माध्यम से भी है। रघुनाथ जी ही तो कुल्लू के अधिष्ठाता देव हैं। यह संयोग है या कुल्लू के प्रति रघुनाथ जी का स्नेह कि जितनी बार मूíत चुराई गई, रघुनाथ जी पुन: लौट आए। अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव रघुनाथ जी का ही उत्सव है।

आखिर क्यों श्रीराम सबके प्रिय हैं? वास्तव में राम होना कठिन है। हर पल संघर्ष में रहना कठिन है। हर पल को मर्यादा के साथ जीना कठिन है। लेकिन राम का जीवन व्यावहारिक जीवन में दिखने वाली गुत्थियों को सुलझाने की प्रेरणा देता है। वह धर्म की परिभाषा हैं। वह रामराज्य की आत्मा हैं, वह राजधर्म की मिसाल हैं, वह न केवल मनुष्यों अपितु समस्त प्राणी जगत के साथ स्नेह का सूत्र हैं। वह संगठन कौशल के प्रतीक पुंज हैं। वह धैर्य गुण के अक्षय स्नोत हैं। इसीलिए राम सबके हैं। उनका मर्यादा का आदर्श इस महामारी के काल में और भी प्रासंगिक है। प्रधानमंत्री का उचित और प्रभावी संकेत है कि मर्यादा ही इस महामारी के काल में संकटमोचक हो सकती है। उन्होंने दो गज की दूरी और मास्क जरूरी कह कर इसे हर व्यक्ति के लिए खोल भी दिया। जाहिर है, एक वनवासी के रूप में लंकेश से टकराने के लिए वन्य प्राणी, वनस्पति तक उनके सहयोगी हुए। और जब विभीषण ने पूछा कि हे नाथ न आपके पास रथ है, और न तन की रक्षा करने वाला कवच है। वह बलवान वीर रावण किस प्रकार जीता जाएगा? इस पर श्रीराम ने कहा, हे मित्र! जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा ही है। राम सबकी जुबान पर इसलिए रहते हैं, क्योंकि वह सबके दिल में रहते हैं। हे राम, हाय राम, राम जी भला करेंगे, राम ही जानें, यह संबोधन लोक की आत्मा में अकारण नहीं रचे-बसे हैं। करोड़ों लोगों की आस्था को आनंदित करने वाले इस अवसर में हिमाचल का जिक्र भी आनंद दे रहा है।

कांगड़ा के गुलेर से शुरू होने वाली कांगड़ा चित्रशैली के विशेष भाग में श्रीराम नायक हैं। पद्मश्री से अलंकृत चित्रकार विजय शर्मा बताते हैं कि विख्यात चित्रकार नैनसुख के चार पुत्रों निक्का, गोधू, कामा और रांझा में से संभवत: गोधू और कामा ने रामायण चित्रवली रची थी जिसमें अरण्यकांड केंद्रबिंदु में है। गोधू और कामा का नाम इसलिए, क्योंकि निक्का चंबा के राजा के यहां रहता था, जबकि रांझा बसोहली के राजा पर आश्रित था। दरअसल अमृतसर के रहने वाले और दिल्ली जा बसे छोटे लाल भराली को ऐसी कलाकृतियां सहेजने का शौक था। उन्होंने कुछ भाग आगे बेचे भी।

इस रामायण चित्रवली के कई भाग ज्यूरिख (स्विट्जरलैंड) के संग्रहालय में पड़े हैं। कुछ शिमला और कुछ चंडीगढ़ के संग्रहालय में भी हैं। इसी कड़ी में गुलेर के राममंदिर को 800 साल पुराना बताया जाता है। इसकी पुष्टि वरिष्ठ पत्रकार व गुलेर राजपरिवार से जुड़े राघव गुलेरिया भी करते हैं। प्रसंगवश यह आशा भी प्रकट होती है कि पहाड़ी चित्रकला का भी रामराज्य आना चाहिए। राम तूलिका में हैं, रंगों में हैं, शब्द में हैं, अर्थ में हैं, भावार्थ में भी। वह यहीं हैं, हम सबके बीच।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]