प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पारदर्शी कराधान की नई व्यवस्था लागू करने की जो घोषणा की वह देश के ईमानदार करदाताओं के लिए एक बड़ी सौगात है। इस घोषणा के जरिये उन्होंने अपना वह वादा पूरा किया जो उन्होंने दूसरी बार सत्ता की कमान संभालते समय किया था। इस नई व्यवस्था के तहत करदाताओं को इनकम टैक्स विभाग के चक्कर लगाने से तो छुटकारा मिलेगा ही, बेवजह के विवादों से भी मुक्ति मिलेगी। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि नई व्यवस्था में तकनीक का दखल बढ़ेगा और आयकर अधिकारियों पर यह दबाव भी रहेगा कि वे करदाताओं की प्रतिष्ठा की चिंता करने के साथ ही उनकी बात पर भरोसा करें।

अभी की स्थिति यह है कि आमतौर पर टैक्स अधिकारी आयकरदाताओं को संदेह की नजर से देखते हैं। उनकी इस आदत के चलते ईमानदार करदाता भी परेशान होते हैं और जब ऐसा होता है तो आयकर विभाग के साथ-साथ सरकार को भी बदनामी का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा भावी आयकरदाताओं के मन में भी संदेह उपजता है। नि:संदेह आयकर का आकलन और टैक्स संबंधी विवादों के समाधान की नई व्यवस्था का लाभ उन्हें ही मिलने वाला है जो वास्तव में ईमानदारी के साथ कर चुकाते हैं।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश में ऐसे भी लोग हैं जो या तो करयोग्य आय छिपाने की कोशिश करते हैं या फिर कम कर देने के लिए आयकर व्यवस्था के छिद्रों का सहारा लेते हैं। चूंकि वे भ्रष्ट आयकर अधिकारियों की वजह से ऐसा कर पाने में समर्थ होते हैं इसलिए सरकार को राजनीतिक स्तर पर यह देखना होगा कि नई व्यवस्था भ्रष्ट अधिकारियों पर भी लगाम लगाए और साथ ही उन्हें भी हतोत्साहित करे जो ईमानदारी से टैक्स चुकाने में आनाकानी करते हैं।

यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि वित्त मंत्रालय के उच्च स्तर पर इसकी निगरानी हो कि फेसलेस स्टेटमेंट और फेसलेस अपील का जो नया सिस्टम लागू होने जा रहा है वह सही रूप में लागू हो। ऐसा होने पर ही टैक्सपेयर्स चार्टर का वांछित स्वरूप उभर पाएगा।

वित्त मंत्रालय को यह पता होना चाहिए कि पुरानी व्यवस्था का परित्याग करना आसान नहीं होता और कई बार भ्रष्ट तत्व नई व्यवस्था में भी अपने स्वार्थो को पूरा करने वाले रास्ते तलाश लेते हैं। ऐसा न होने पाए, यह देखना सरकार की जिम्मेदारी है। आयकर आकलन की नई व्यवस्था लागू करने के साथ ही सरकार को इसके लिए भी कोशिश करनी होगा कि टैक्स चुकाने में सक्षम सभी लोग ऐसा करें। इससे इन्कार नहीं कि बीते कुछ वर्षो में आयकरदाताओं की संख्या बढ़ी है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि अभी भी उनकी संख्या उतनी नहीं जितनी होनी चाहिए।