ए. सूर्यप्रकाश। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा से मुकाबले के लिए गठित विपक्षी पार्टियों के मोर्चे आइएनडीआइए के घटक दलों के चुनावी घोषणा पत्र जिम्मेदार एवं जवाबदेह शासन व्यवस्था के वादों के बजाय अनाप-शनाप घोषणाओं से भरे हुए हैं। इनमें से कुछ घोषणाएं तो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाली हैं। जबकि रेवड़ियों का एलान देश की आर्थिक बेहतरी की राह में अवरोध खड़े कर सकता है।

कांग्रेस, माकपा को छोड़ दिया जाए तो अन्य घटक दल जाति आधारित या क्षेत्र विशेष केंद्रित राजनीतिक दल हैं, जिन्हें देश की समग्र बेहतरी से कहीं अधिक अपने राज्यों और प्रभाव क्षेत्रों की ही फिक्र है। ऐसा लगता है कि आइएनडीआइए के घटक दलों का घोषणा पत्र ऐसे लोगों ने तैयार किया है, जिन्हें देश के सामाजिक, आर्थिक एवं रणनीतिक हितों की कोई समझ नहीं। कई वादों में गैर-जिम्मेदाराना रवैया भी जाहिर होता है।

माकपा ने देश को परमाणु हथियारों से मुक्त करने की बात कही है। वह भी तब जबकि भारत की सीमा पर चीन और पाकिस्तान जैसे बिगड़ैल पड़ोसी और परमाणु हथियारों के जखीरे वाले देश हैं। ऐसे में देश को परमाणु हथियारों से विहीन करने का क्या तुक है? इंदिरा गांधी के दौर में पहला परमाणु परीक्षण करने वाली कांग्रेस का रुख क्या माकपा के साथ है? माकपा का एक और खतरनाक प्रस्ताव भारत-अमेरिका डिफेंस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट और क्वाड से बाहर आने का है। याद रहे भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया को मिलाकर बना क्वाड संगठन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीतियों को चुनौती दे रहा है।

भारत पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी सीमा पर सागर से घिरा है और चीन का नौसैन्य विस्तार उसके लिए जोखिम बढ़ा रहा है। ऐसे में भारत का कोई हितैषी क्या क्वाड से बाहर आने का सुझाव देगा? माकपा का एक और घातक प्रस्ताव अनुच्छेद-370 की बहाली का है। किसी भी दल के ऐसे प्रस्ताव देश को सैन्य रूप से कमजोर करने के साथ ही उसकी एकता एवं अखंडता को खंडित करने वाले हैं।

हम भारतीय वामपंथियों के चीनी प्रेम से भलीभांति अवगत हैं, लेकिन ऐसा कभी नहीं सोचा कि वे इस हद तक चले जाएंगे कि अपने देश को कमजोर और पड़ोसी देश को मजबूत बनाने की सोचने लगेंगे। इस मामले में भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का रवैया और सवाल खड़े करने वाला है, जो माकपा के साथ खड़ी हुई है। अगर यह गठबंधन किसी प्रकार सत्ता में आ गया तो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य की सहज ही कल्पना की जा सकती है।

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में राष्ट्रव्यापी सामाजिक-आर्थिक सर्वे और जातिगत जनगणना कराने की बात कही है। घोषणा पत्र के अनुसार इससे प्राप्त डाटा ‘अफर्मेटिव एक्शन के एजेंडे को मजबूती प्रदान करेगा।’ इसका क्या अर्थ है? राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि पूरे देश का एक्स रे (सामाजिक-आर्थिक सर्वे) कराकर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

राहुल गांधी ने इसके बाद वित्तीय एवं संस्थागत सर्वे कराने की घोषणा के साथ ही यह भी कहा कि तब एक क्रांतिकारी कदम उठाया जाएगा और एससी-एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों को उनका वास्तविक हक दिया जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो उनकी पार्टी धन के पुनर्वितरण जैसा ऐतिहासिक कदम उठाने की बात कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जातिगत जनगणना इस एक्सरे का पहला चरण होगा। फिर जिस समुदाय की जितनी आबादी होगी, उसका उतना हक होगा। माकपा और राजद जैसे सहयोगी दलों ने भी जातीय जनगणना का समर्थन किया है। राजद ने अपने घोषणा पत्र में 24 वादे किए हैं। इनमें से कुछ राष्ट्रीय दायरे वाले हैं तो अधिकांश बिहार केंद्रित। राजद का

दावा है कि यदि आइएनडीआइए की सरकार बनी तो बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के साथ ही 1.6 लाख करोड़ रुपये का विशेष पैकेज दिया जाएगा। पार्टी ने राज्य में पांच नए हवाई अड्डे और जनता को हर महीने 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। एक सामान्य प्रकार का वादा ‘गरीब परिवार की बहनों’ को हर साल का रक्षाबंधन के दिन एक लाख रुपये देने का है। कांग्रेस ने भी अपने घोषणा पत्र में प्रत्येक गरीब परिवार को महालक्ष्मी योजना के अंतर्गत एक लाख रुपये सालाना देने की बात कही है। पार्टी ने कहा है कि यह योजना चरणबद्ध रूप से लागू की जाएगी।

इसे अमल में लाने की चाहे जो योजना हो, लेकिन क्या कांग्रेस पार्टी ने ऐसे वादे की कीमत के बारे में भी कुछ सोचा और क्या इस पर विचार किया कि क्या देश इसका आर्थिक बोझ उठा सकता है? राजद ने एक करोड़ नौकरियों का वादा भी किया है। इसमें केंद्र सरकार के स्तर पर 30 लाख रिक्तियों को भरने के साथ ही 70 लाख नई नौकरियां सृजित की जाएंगी। इसके साथ ही गरीबों को 500 रुपये में गैस सिलेंडर, अग्निवीर योजना की समाप्ति और पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस की बहाली का भी वादा है।

बड़े-बड़े वादों में द्रमुक भी पीछे नहीं है। पार्टी ने परिवार की एक महिला को हर महीने एक हजार रुपये और 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने का वादा किया है। उसका एक वादा बड़ा दिलचस्प है कि अगर वह सत्ता में आती है तो पेट्रोल की कीमत 75 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 65 रुपये प्रति लीटर तय की जाएगी।

अन्य सहयोगी दलों की तरह द्रमुक ने भी वादा किया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए और समान नागरिक संहिता पर अमल नहीं किया जाएगा। इस प्रकार देखें तो इस गठबंधन के घटक दल ही समग्रता में एकमत नहीं कि सत्ता में आने पर यह गठजोड़ क्या करेगा। उनके वादे टुकड़े-टुकड़े मानसिकता वाले खतरनाक इरादों से कुप्रेरित लगते हैं। ऐसे में लोगों को सोचना होगा कि क्या वे ऐसे असंगत और सत्ता के लिए व्यग्र दलों के गठजोड़ को वोट देंगे या नहीं। यदि इन दलों का यह गठबंधन सत्ता में आया तो क्या देश सुरक्षित रहेगा?

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)