एक जनहित याचिका के माध्यम से राफेल सौदा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचना कोई अच्छी बात नहीं, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा प्रसंग है। ऐसे मामले न्यायिक समीक्षा का हिस्सा न ही बनें तो बेहतर, लेकिन अगर राफेल सौदा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो इसके लिए एक हद तक सरकार भी जिम्मेदार है। जब वह यह अच्छे से देख-समझ रही थी कि कुछ विपक्षी नेता और खासकर राहुल गांधी इस मसले को जरूरत से ज्यादा तूल देने और चुनावी मुद्दा बनाने मेंं जुटे हुए हैैं तब फिर उचित यही था कि वह ऐसे कोई उपाय करती जिससे कांग्रेस अध्यक्ष दुष्प्रचार अभियान जारी रखने से बाज आते।

चूंकि इस मामले में उसने तत्परता नहीं दिखाई इसलिए पहले यह हवा बनाई गई कि मोदी सरकार ने एक महंगा सौदा कर लिया है और फिर यह साबित करने की कोशिश की जाने लगी कि सरकारी कंपनी एचएएल की अनदेखी कर अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचाया गया। राहुल गांधी इस काम में अभी भी जुटे हुए हैैं और इस क्रम में वह प्रधानमंत्री पर अमर्यादित टिप्पणियां करने के साथ ही सतही जुमलेबाजी भी कर रहे हैैं। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह केवल राफेल विमान की खरीद प्रक्रिया से संबंधित जाानकारी ही सरकार से मांगी उससे यही संकेत मिल रहा है कि वह राहुल गांधी और अन्य नेताओं की ओर से उछाले जा रहे ऐसे आरोपों को महत्व देने के लिए तैयार नहीं कि राफेल सौदा एक महंगा सौदा है और इस सौदे से सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा है।

फिलहाल यह कहना कठिन है कि राफेल विमान खरीद का मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने के बाद इस सौदे के बहाने अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करन वालों पर कोई लगाम लगती है या नहीं, लेकिन इतना अवश्य है कि सरकार को केवल अदालती फैसले का इंतजार करते हुए नहीं दिखना चाहिए। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि विपक्ष ने राफेल सौदे को एक राजनीतिक और चुनावी मसले में तब्दील कर दिया है। सरकार को इस मामले को राजनीतिक स्तर पर भी निपटाना होगा। यह सही है कि संवेदनशील रक्षा सौदों की तरह राफेल सौदे के भी कुछ गोपनीय प्रावधान हैैं, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि इसके चलते सरकार रक्षात्मक रवैये का परिचय देती नजर आए।

समझना कठिन है कि राफेल सौदे पर सरकार के नीति-नियंताओं ने रक्षा संबंधी मामलों की संसदीय समिति अथवा अन्य किसी जरिये गैर-कांग्रेसी विपक्ष को भरोसे में लेने का काम क्यों नहीं किया? चूंकि यह सेना की प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला है इसलिए सरकार को राफेल विमान बनाने वाली कंपनी और साथ ही फ्रांस सरकार से संपर्क करके उन सूचनाओं को सार्वजनिक करना चाहिए था जिससे गोपनीय जानकारी बाहर भी न आने पाती और साथ ही उन आरोपों की हवा भी निकलती जिसके तहत यह माहौल बनाया जा रहा है कि सरकारी कंपनी की अनदेखी कर एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने का काम किया गया अथवा जरूरत से कम विमान खरीदे गए। राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष कुछ भी हो, सरकार को इस सौदे के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार की काट के लिए अपने स्तर पर सक्रियता दिखानी ही चाहिए।