कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद यहां से चुनाव लड़ने के अपने फैसले की एक वजह दक्षिण भारत के साथ खड़े होने का संदेश देना बताया। इस संदेश को सही तरह ग्रहण करना आसान नहीं। क्या राहुल गांधी यह कह रहे हैैं कि अब देश के अलग-अलग हिस्सों के साथ खड़ा होना दिखने के लिए वहां से चुनाव लड़ना आवश्यक है? सवाल यह भी है कि वह अमेठी के जरिये दक्षिण भारत के साथ खड़े होने का संदेश क्यों नहीं दे सकते थे?

समझना कठिन है कि वह उत्तर-दक्षिण की खाई को बढ़ाने का काम कर रहे हैैं या फिर उसे पाटने का? वायनाड से नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद राहुल गांधी ने यह भी बयान किया कि वह माकपा के खिलाफ कुछ भी नहीं कहेंगे-एक शब्द भी नहीं। आखिर ऐसा कहकर वह अपने कार्यकर्ताओं को क्या संदेश देना चाहते हैैं जो जब-तब माकपा कार्यकर्ताओं के हिंसक व्यवहार का सामना करते रहते हैैं? क्या राहुल गांधी यह कहना चाह रहे हैैं कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को माकपा के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार के काम-काज से कोई शिकायत नहीं?

अगर राहुल गांधी के मन में माकपा के प्रति इतना ही मैत्री भाव उमड़ आया है तो फिर कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ मिलकर चुनाव क्यों नहीं लड़ा? क्या वह पश्चिम बंगाल में भी माकपा और अन्य वाम दलों के खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे? क्या इसकी अनदेखी कर दी जाए कि वायनाड का चुनावी इतिहास यह कह रहा है कि लोकसभा चुनावों में यहां कांग्रेस की टक्कर माकपा से ही होती रही है? जैसे इन सवालों का कोई जवाब नहीं नजर आता वैसे ही इस सवाल का भी नहीं कि अगर अमेठी से बार-बार चुनाव लड़ने से उत्तर भारत में कांग्रेस मजबूत नहीं हो सकी तो फिर वायनाड से चुनाव लड़कर दक्षिण भारत में पार्टी को कैसे मजबूती दी जा सकती है? इस तरह के सवाल अमेठी और साथ ही उत्तर भारत के कांग्रेस के समर्थकों को भ्रमित करने का काम करें तो हैरत नहीं।

यह समझ आता है कि अमेठी में चुनौती कठिन होती देखकर राहुल गांधी ने अपने लिए एक सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र की तलाश में वायनाड का चयन किया हो, लेकिन उन्हें यह आभास होना चाहिए कि यहां उन्हें कांग्रेस के सहयोगी दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के समर्थन के भरोसे रहना होगा। आखिर ऐसे दल के समर्थन से चुनाव लड़कर वह कांग्रेस के सेक्युलर होने के दावे को मजबूती कैसे दे सकते हैैं?

नि:संदेह यह पहली बार नहीं जब किसी कांग्रेस अध्यक्ष ने दक्षिण भारत से चुनाव लड़ा हो। इसके पहले इंदिरा गांधी चिकमगलूर और सोनिया गांधी बेल्लारी से चुनाव लड़ चुकी हैैं। राहुल गांधी इनमें से किसी सीट का चयन कर सकते थे। कर्नाटक की सत्ता में तो कांग्रेस साझीदार भी है। कुल मिलाकर राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने के फैसले का मूल कारण जानना एक पहेली ही है। कहना कठिन है कि वायनाड के जरिये कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति को एक पहेली का जो रूप दिया उससे उसे क्या हासिल होगा?