अमेरिका ने जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य करने के लिए भारत की ओर से उठाए गए कदमों का स्वागत करके एक तरह से उन तत्वों को आईना ही दिखाया, जो यह दुष्प्रचार करने में लगे हुए हैं कि वहां नागरिक अधिकारों का दमन हो रहा है। इसमें संदेह नहीं कि इस तरह का दुष्प्रचार करने वालों में पाकिस्तान अव्वल है, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उसके अलावा देश-विदेश में कुछ ऐसे संगठन और समूह भी हैं, जो कश्मीर में जुल्म-जबरदस्ती होने का राग अलापते हैं। वे अलगाववादियों और उनकी ही भाषा बोलने वालों का दुस्साहस तो बढ़ाते ही हैं, आतंकियों के मानवाधिकारों की पैरवी भी करते हैं।

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने जम्मू-कश्मीर के मामले में अमेरिका के पुरानी नीति पर कायम रहने की जो बात कही, उससे उन्हें अवश्य निराशा हुई होगी, जो यह आस लगाए बैठे थे कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद उसकी जम्मू-कश्मीर नीति भी बदल जाएगी।

यह स्वाभाविक है कि अमेरिका इसका पक्षधर है कि जम्मू-कश्मीर में भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप आर्थिक एवं राजनीतिक हालात सामान्य हों। ऐसा हो रहा है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण है हाल में जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव होना। इसके अलावा वहां लोकसभा एवं विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं नए सिरे से तय करने की प्रक्रिया भी आगे बढ़ रही है। यह प्रक्रिया पूरी होते ही विधानसभा चुनाव कराने का रास्ता साफ हो जाएगा और यदि सब कुछ ठीक रहा तो जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा भी फिर से मिल सकता है।

यदि अमेरिका यह चाहता है कि जम्मू-कश्मीर में सब कुछ जल्द सामान्य हो तो फिर उसे वहां के हालात बदलने के लिए उठाए जा रहे कदमों की केवल तारीफ ही नहीं करनी होगी, बल्कि यह भी देखना होगा कि पाकिस्तान कश्मीर में दखल देने से कैसे बाज आए?

पाकिस्तान के संघर्ष विराम पर अमल के लिए तैयार हो जाने के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि वह सुधर गया है। यदि अमेरिका की दिलचस्पी इसमें है कि भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत हो तो फिर उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पाकिस्तानी सेना कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ कराना बंद करे। अमेरिका को इससे अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान में उन आतंकी गुटों को अभी भी संरक्षण मिल रहा है, जो कश्मीर में आतंक फैलाते रहते हैं। यदि अमेरिका जम्मू-कश्मीर पर निगाह रखे हुए है तो फिर उसे चाहिए कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की भी निगरानी करे, जहां आतंकी अड्डे चल रहे हैं। ऐसा करके ही अमेरिकी प्रशासन इस क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता कायम होने की अपनी चाहत पूरी कर सकता है।