रमेश कुमार दुबे। हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मुफ्त बिजली का पासा फेंकने वाले नेता अब बिजली संकट के लिए मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। रिकार्ड तोड़ गर्मी के कारण बढ़ी हुई बिजली की मांग और कोयले की कमी ने देश में कुछ समय के लिए बिजली संकट पैदा कर दिया। देश के कोयला आयात में जितनी कमी आई, उसकी भरपाई घरेलू उत्पादन से नहीं हो पाई, इसलिए संकट गहरा गया। कोयले एवं बिजली संकट की एक बड़ी वजह है समय से बिजली बिलों का भुगतान न होना, जिसकी ओर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है। एक सच्चाई यह है कि कोयला खनन कंपनियों से लेकर बिजली उत्पादन करने वाले प्लांट और बिजली वितरण कंपनियों तक सभी बकाया भुगतान न होने से जूझ रही हैं। उदाहरण के लिए देश में 80 प्रतिशत कोयला खनन करने वाली कोल इंडिया लिमिटेड पर बिजली उत्पादक कंपनियों के लगभग 8,000 करोड़ रुपये बकाया हैं। बिजली उत्पादक कंपनियों पर बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) के 1.1 लाख करोड़ रुपये बकाया हैं। डिस्काम पांच लाख करोड़ रुपये के घाटे में हैं।

मौजूदा बिजली संकट को छोड़ दिया जाए तो बिजली के मामले में देश लगभग आत्मनिर्भर बन चुका है। यही कारण है कि चुनावों के दौरान बिजली आपूर्ति के नहीं, बल्कि मुफ्त बिजली के वादे किए जाने लगे हैं। अब मोदी सरकार बिजली को समूची अर्थव्यवस्था की धुरी बनाने की दिशा में काम कर रही है। इसके तहत गांव-गांव उद्योग-धंधे लगाने, रेलवे का शत प्रतिशत विद्युतीकरण, बिजली से चलने वाली कार, बाइक आदि के लिए देश भर में चार्जिग प्वाइंट की स्थापना जैसे उपाय शामिल हैं। इतना ही नहीं, अब तो ई-कामर्स कंपनियां महंगे पेट्रोल-डीजल और प्रदूषण से छुटकारा पाने के लिए अपने समूचे डिलीवरी सिस्टम का विद्युतीकरण कर रही हैं।

बिजली केंद्रित अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी बाधा है बिजली बिलों के भुगतान की स्वस्थ संस्कृति विकसित न होना। जिस देश में मुफ्त बिजली को वोट बैंक की राजनीति का जरिया बना दिया गया हो और चुनावों के दौरान मुफ्त बिजली का पासा फेंकने वाले नेताओं की कमी न हो, वहां समय से बिजली बिलों का भुगतान आसान काम नहीं है। इसी को देखते हुए सरकार प्रीपेड स्मार्ट मीटर के जरिये देश में बिजली क्रांति का आगाज करने में जुटी है। प्रीपेड स्मार्ट मीटर बिजली की खपत मापने का एक यंत्र है। अभी तक के मीटरों में बिजली बिल उपयोग के बाद देने होते हैं, जबकि इसमें उपयोग से पहले देने होंगे। प्रीपेड स्मार्ट मीटर ठीक उसी तरह से काम करता है जैसे प्रीपेड मोबाइल। मतलब जितने पैसों का रीचार्ज कराएंगे उतनी बिजली मिलेगी। इसमें एक ऐसा उपकरण लगा होता है, जो मोबाइल टावर्स से बिजली कंपनियों में लगने वाले रिसीवर तक सिग्नल पहुंचाता है, जिससे बिजली कंपनियां अपने कार्यालय से मीटर की रीडिंग और निगरानी कर सकती हैं। प्रीपेड स्मार्ट मीटर से बिजली उपयोग के कई माह बाद तक बिल न चुकाने की खराब आदत खत्म होगी। मीटर में लगे उपकरण से उपभोक्ता प्रतिदिन की ऊर्जा खपत देख पाएगा। कागजी बिल और गलत बिल से भी छुटकारा मिल जाएगा। इतना ही नहीं इससे ट्रांसमिशन एवं वितरण नुकसान भी कम होगा।

बिजली मंत्रलय कृषि क्षेत्र को छोड़कर सभी जगह प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने की योजना पर काम कर रहा है। ब्लाक लेवल तक के सभी सरकारी कार्यालयों में दिसंबर 2023 तक प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगा दिए जाएंगे। इसके बाद धीरे-धीरे पूरे देश में 2025 तक प्रीपेड स्मार्ट मीटर लग जाएंगे। सरकार ने 2023 तक 10 करोड़ और 2025 तक 25 करोड़ प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए मोदी सरकार ने स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम शुरू किया है। अब तक देश भर में 40 लाख प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं। ये मीटर बिजली चोरी रोकने में कामयाब रहे हैं। प्रीपेड स्मार्ट मीटर से न केवल बिजली बिलों की बेहतर वसूली होगी, बल्कि खपत के आंकड़ों के सटीक विश्लेषण से कंपनियों की वित्तीय स्थिति भी सुधरेगी। इतना ही नहीं इससे पीक आवर और नान-पीक आवर में अलग-अलग रेट से वसूली संभव होगी। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए रेलवे ने रेलगाड़ियों का शत-प्रतिशत विद्युतीकरण करने की प्रक्रिया तेज कर दी है। इसमें रेल लाइन के विद्युतीकरण के साथ-साथ एयर कंडीशनर और लाइट के लिए भी डीजल की जरूरत नहीं पड़ेगी। कोचों में इस बदलाव से रेलवे को करीब 3800 करोड़ रुपये की वार्षिक बचत होगी।

चुनाव के समय मुफ्त बिजली का पासा फेंकने वाले भूल जाते हैं कि देश के हर घर को चौबीसों घंटे रोशन करने में सबसे बड़ी बाधा मुफ्त बिजली की राजनीति है। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से हर चुनाव में बिजली का मुद्दा उठाया जाता, लेकिन चुनाव बीतते ही उसे भुला दिया जाता। 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वादा किया कि 2009 तक सभी गांवों तक बिजली पहुंचा दी जाएगी, लेकिन वह पूरा नहीं हुआ। 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला तो देश में 18,000 गांव ऐसे थे, जहां तक बिजली नहीं पहुंची थी। प्रधानमंत्री ने उन गांवों तक बिजली पहुंचाने के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाया और तय समय से पहले देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचा दी गई। इसके बाद अगली चुनौती थी देश के उन चार करोड़ घरों को रोशन करने की, जो अंधेरे में डूबे थे। 

(लेखक लोक-नीति विश्लेषक हैं)