अभिषेक रंजन सिंह। बांग्लादेश की स्वतंत्रता में भारत का अप्रतिम योगदान रहा है। कोई भी राष्ट्र एक दिन में नहीं बनता, चाहे वह बांग्लादेश हो या अन्य कोई देश। बांग्लादेश के साथ एक बड़ी विशेषता यह रही कि इसने पिछली सदी में दो देशों के लिए लड़ाई लड़ी। भारत जब आजाद हुआ उस समय बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा था और पाकिस्तान बनने के करीब 24 साल बाद ही उसे दूसरी लड़ाई लड़नी पड़ी। बेशुमार कष्ट और आíथक दिक्कतों के बावजूद बीते 50 वर्षो में बांग्लादेश ने जिस प्रकार की आíथक उन्नति की है उसकी चर्चा विश्व भर में हो रही है।

अध्यात्म और राजनीति : पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी साल 2015 में बांग्लादेश की यात्र पर गए थे। अपने व्यस्त कार्यक्रमों के बीच उन्होंने बांग्लादेश के प्रसिद्ध मंदिर ढाकेश्वरी में पूजा भी की थी। अपनी इस यात्र में मोदी ने बांग्लादेश के दो दर्शनीय स्थलों का दौरा किया। पहला सतखीरा जिले के जेशोरेश्वरी शक्तिपीठ जो बांग्लादेश समेत समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। दूसरा ढाका से 200 किमी दूर गोपालगंज जिला स्थित ओराकांडी ठाकुरबाड़ी। यह मतुआ संप्रदाय का सबसे बड़ा मठ है। इसकी स्थापना मतुआ समाज के संस्थापक हरिचंद ठाकुर ने की थी। उल्लेखनीय है कि भारत के विभाजन के बाद मतुआ संप्रदाय के लाखों लोग बंगाल में बस गए।

बंगाल चुनाव में फायदेमंद : प्रधानमंत्री मोदी का अध्यात्म से लगाव है, वह जहां कहीं जाते हैं वहां स्थित प्रमुख हिंदू मंदिरों का दर्शन करते हैं। हालांकि इस बार उनका बांग्लादेश के मंदिरों का दर्शन करना बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। बंगाल में मतुआ हिंदुओं की संख्या करीब 80 लाख है और राज्य के छह जिलों में इनका काफी असर है। मतुआ समाज कभी वाममोर्चा के साथ रहा तो कभी तृणमूल के। लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा मतुआ समाज को साधने में कामयाब रही और इसका पूरा फायदा उसे मिला। इस बार भी भाजपा को मतुआ समाज से काफी उम्मीदें हैं। बांग्लादेश में प्रधानमंत्री मोदी का ओराकांडी ठाकुरबाड़ी में पूजा-अर्चना करना और मतुआ समाज के लोगों को संबोधित करना किसी मास्टरस्ट्रोक से कम नहीं है। जिस प्रकार श्रीरामजन्मभूमि हिंदुओं की आस्था का सर्वोच्च स्थान है, उसी तरह ओराकांडी ठाकुरबाड़ी का मतुआ संप्रदाय के बीच महत्व है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्र के बाद बंगाल में मतुआ समाज के जो थोड़े बहुत छिटके मतदाता थे वे भी पूरी तरह भाजपा के साथ आएंगे। इसमें अब किसी प्रकार का संदेह नहीं होना चाहिए।

तृणमूल का सॉफ्ट हिंदुत्व : तृणमूल पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगता रहा है। खासकर भाजपा इस मुद्दे पर लगातार तृणमूल को घेरती रही है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली बड़ी सफलता के बाद तृणमूल के रुख में एक बड़ा परिवर्तन आया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी स्वयं को हिंदुओं की हिमायती साबित करने के लिए हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों, मंत्रों एवं मंदिरों का दौरा कर रही हैं। ममता बनर्जी अपनी जनसभाओं में दुर्गा सप्तशती का मंत्रोच्चार कर रही हैं। इसमें आस्था से ज्यादा भाजपा को रोकने की कवायद नजर आती है। इसलिए खुद को हिंदू धर्म का रहबर मानने वाली भाजपा बंगाल में स्वयं को सबसे बड़ा हिंदू हितैषी सिद्ध करने में जुटी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों का दौरा उसी की एक कड़ी है।

हसीना राज में हिंदुओं पर हमले : बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग की सरकार बनने के बाद वहां रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं में असुरक्षा की भावना कम हुई है। लेकिन हालिया कुछ वर्षो में वहां हिंदुओं पर अत्याचार बढ़े हैं। शेख हसीना सरकार का दावा है कि उनके शासन में बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को पूरी सुरक्षा उपलब्ध है। ऐसे में वहां अगर हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला होता है तो बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी और अवामी लीग सरकार में कोई फर्क नहीं रह जाता। ऐसा नहीं है कि अवामी लीग सरकार ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने का प्रयास नहीं कर रही है। दरअसल बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टयिों का आरोप है कि अवामी लीग हिंदू तुष्टीकरण की राजनीति करती है और उन्हें मुसलमानों की तुलना में ज्यादा तरजीह दी जाती है। जमात समेत अन्य विपक्षी पार्टयिों का यह आरोप सही नहीं है, जबकि सच्चाई यह है कि बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी जब कभी सत्ता में रहीं तो बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ अत्याचार में वृद्धि हुई है।

प्रदर्शन के पीछे विरोधी ताकतें : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे के समय राजधानी ढाका स्थित एक मस्जिद के बाहर कट्टरपंथी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम के कार्यकर्ताओं ने जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की। चटगांव में भी हिफाजत-ए-इस्लाम समेत कई कट्टरपंथी संगठनों ने उत्पात मचाया। पुलिस के साथ हुई झड़प में पांच लोगों की मौत भी हुई। रंगपुर, नोआखाली और कुमिल्ला में भी प्रधानमंत्री मोदी की यात्र का विरोध किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्र समाप्त होने के अगले दिन (28 मार्च) को हिफाजत-ए-इस्लामी के उपद्रवियों ने बांग्लादेश में ढाका से चटगांव जाने वाली ‘सोनार बांग्ला एक्सप्रेस’ पर हमला किया, जिसमें करीब आधा दर्जन यात्री जख्मी हो गए।

इस घटना से एक बात तो साफ है कि यह सिर्फ मोदी विरोध नहीं, बल्कि शेख हसीना का विरोध भी है। दरअसल बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी के अलावा कई वामपंथी संगठनों को शेख हसीना की अगुवाई में अवामी लीग सरकार का लगातार सत्ता में बने रहना पसंद नहीं है। अवामी लीग के शासन में पिछले छह वर्षो के दौरान बांग्लादेश युद्ध अपराध में जमात-ए-इस्लामी के सर्वोच्च नेता मतिउर रहमान निजामी समेत कई नेताओं को फांसी पर लटकाया गया। वहीं भ्रष्टाचार के आरोप में बीएनपी प्रमुख एवं पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया भी जेल में बंद हैं। बांग्लादेश जातीय संसद यानी नेशनल असेंबली के चुनाव में सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा था। राजनीतिक रूप से ये दोनों पार्टयिां अवाम के बीच खारिज हो चुकी हैं।

पिछले साल फरवरी में भी ढाका के पलटन इलाके में एनआरसी को लेकर भारत विरोधी प्रदर्शन हुए थे। हालांकि अवामी लीग सरकार ने इसे भारत का आंतरिक मामला करार दिया। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जशोरेश्वरी शक्तिपीठ और मतुआ समाज के मंदिर में जाने के सवाल पर बांग्लादेश सरकार ने प्रसन्नता जाहिर की। बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने कहा कि मोदी का हिंदू मंदिरों में जाने से पर्यटन उद्योग को काफी फायदा होगा। भारत से प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में लोग बांग्लादेश आते हैं। ज्यादातर लोगों की इच्छा ढाकेश्वरी मंदिर जाने की होती है। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गोपालगंज और सतखीरा जिले के सुदूर इलाकों के मंदिरों में जाने से इसकी लोकप्रियता बढ़ी है। कट्टरपंथी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम शरीयत कानून लागू करने के साथ-साथ बांग्लादेश को मुस्लिम राष्ट्र घोषित करने की मांग करती है। हिफाजत-ए-इस्लाम कोई पहला संगठन नहीं है, जो बांग्लादेश को इस्लामी मुल्क बनाने के साथ-साथ शरिया कानून लागू करने की बात करता है। जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के शासन में हमेशा से यह मांग उठती रही है।

नरेंद्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने बांग्लादेश के साथ सबसे महत्वपूर्ण समझौता किया था- भूमि सीमा समझौता। यह पिछले सात दशकों से दोनों देशों के बीच एक बड़ा लंबित मसला था। इस समझौते के पूरा होने के बाद भारत और बांग्लादेश ने अपनी इच्छा से अपने भू-भागों की अदला-बदली की थी। इसके तहत दोनों देशों ने 151 छिटमहलों (एनक्लेवों) का आदान-प्रदान किया था। इस समझौते से दोनों मुल्कों के हजारों लोगों को नागरिकता नसीब हुई। हाल के वर्षो में भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्ते बहुत ज्यादा अच्छे हुए हैं। इसका श्रेय नरेंद्र मोदी द्वारा लिए गए कई महत्वपूर्ण फैसलों को जाता है। मसलन 2014 के बाद दोनों देशों के बीच रेल, सड़क और यातायात के साधनों का जितना विस्तार हुआ है उतना बीते कई दशकों में नहीं हुआ था। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक बाधाएं काफी कम हुई हैं।

कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पहली यात्र के लिए बांग्लादेश का चयन किया है जो उनकी ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति को बल प्रदान करता है। दिसंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शेख हसीना के बीच हुए शिखर वार्ता में कई अहम समझौते हुए। इनमें चार ट्रांस-बॉर्डर रेलवे नेटवर्क के साथ-साथ अंतर्देशीय और तटीय जलमार्गो के उपयोग, नए बंदरगाहों को शुरू करना प्रमुख था। इसके अलावा, बिजली एवं ऊर्जा क्षेत्र, भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन, मैत्री सुपर थर्मल पावर परियोजना समेत अन्य प्रोजेक्टों पर भी समझौते हुए। फिलहाल भारत और बांग्लादेश के बीच रेल सेवाएं क्रमश: कोलकाता-ढाका और कोलकाता-खुलना के बीच चल रही है। सियालदह से बांग्लादेश के पेट्रापोल-बेनापोल रेलमार्ग भी शुरू होने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, पूवरेत्तर राज्य त्रिपुरा तक कम समय और कम खर्च में मालवाहक ट्रकों का आवागमन सुगम हो इसके लिए कुछ वर्ष पहले कोलकाता-अगरतला वाया ढाका सड़क मार्ग खोला गया है। साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हसीना ने कोलकाता और खुलना के बीच भी रेलगाड़ी के परिचालन को मंजूरी दी। इसके अलावा, जल्द ही अगरतला और अखौरा (बांग्लादेश) के बीच रेल परिचालन शुरू हो जाएगा। नए रेल मार्ग से अगरतला और कोलकाता के बीच सफर महज 10 घंटे में पूरा होगा। इस रेलमार्ग के बनने से लगभग 21 घंटे समय की बचत होगी।

हाल के वर्षो में बांग्लादेश ने काफी आíथक तरक्की की है। रेडीमेड कपड़े के निर्माण में बांग्लादेश विश्व में अहम स्थान रखता है। पिछले कुछ दशकों के दौरान कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में भी बांग्लादेश ने काफी उन्नति की है। यही वजह है कि खाद्यान्न के मामले में वह एक आत्मनिर्भर देश बन चुका है। भारत सहित अमेरिका, यूरोप और अफ्रीकी देशों के साथ उसके बेहतर कारोबारी रिश्ते कायम हो चुके हैं। बांग्लादेश का विकास करना भारत के लिए चुनौती नहीं, बल्कि एक अवसर है। दोनों देशों के बीच कारोबार जितना बढ़ेगा, उसका लाभ दोनों तरफ होगा। यही वजह है कि भारत बांग्लादेश के आधारभूत संरचनाओं के विकास में भी मदद कर रहा है।

[दक्षिण एशियाई मामलों के जानकार]