आय से अधिक संपत्ति मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को चार साल की सजा ने नेताओं के बेलगाम भ्रष्टाचार को एक बार फिर सतह पर ला दिया है। चौटाला पर आय से 189 गुना ज्यादा पैसा कमाने का आरोप लगा था। इससे यही पता चलता है कि नेता सत्ता का कितना मनमाना इस्तेमाल करते हैं। भ्रष्टाचार का यह दूसरा मामला है, जिसमें चौटाला को सजा सुनाई गई है। इसके पहले उन्हें शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा मिली थी। वह यह सजा काटकर लौटे ही थे कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी पाए गए। इस मामले में सीबीआइ ने उनके खिलाफ 2010 में आरोप पत्र दायर किया था। कायदे से इसके निस्तारण में इतनी देर नहीं लगनी चाहिए थी।

यदि नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगानी है तो सबसे पहले तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उनके मामलों की सुनवाई न केवल प्राथमिकता के आधार पर हो, बल्कि कहीं अधिक तेजी से हो। ऐसा करके ही भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों को सही संदेश दिया सकेगा। उचित यह होगा कि केंद्र सरकार और सीबीआइ, ईडी सरीखी उसकी एजेंसियों के साथ न्यायपालिका इसके लिए किसी ठोस व्यवस्था का निर्माण करे कि नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों का निपटारा एक सीमित अवधि में हो। यह ठीक नहीं कि कई बार विशेष अदालतों में भी ऐसे मामलों का निपटारा होने में अनावश्यक देरी होती है।

एक समस्या यह भी है कि यदि कभी निचली अदालतों की ओर से समय पर फैसला सुना दिया जाता है, तो उच्चतर न्यायपालिका की ओर से तत्परता नहीं दिखाई जाती। परिणाम यह होता है कि अंतिम फैसला आने में एक-डेढ़ दशक लग जाते हैं। इस बीच भ्रष्टाचार में आरोपित नेता जमानत पाकर बाहर आ जाते हैं और जनता के बीच यह कहकर उसकी हमदर्दी हासिल करने की कोशिश करते हैं कि उन्हें झूठे आरोप में अथवा राजनीतिक बदले की भावना से फंसाया गया है। कई बार जनता उनके झांसे में भी आ जाती है।

यह ठीक है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार के स्तर पर भ्रष्टाचार पर एक बड़ी हद तक लगाम लगी है, लेकिन यही बात राज्यों के स्तर पर नहीं कही जा सकती। इसलिए नहीं कही जा सकती, क्योंकि आए दिन किसी न किसी नेता के खिलाफ सीबीआइ अथवा ईडी की कार्रवाई की खबरें आती ही रहती हैं। कुछ राजनीतिक दल तो अपने मंत्रियों के भ्रष्टाचार को लेकर इतने ढीठ हो गए हैं कि उनकी गिरफ्तारी के बाद भी उनसे त्यागपत्र मांगने की जरूरत नहीं समझते। जब ऐसी स्थिति हो तब नेताओं के कामकाज की गहन निगरानी करने और उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।