नगरों से मोहभंग, गांवों में रोजगार तंग; सरकार को समय रहते करने होंगे उपाय
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि भारत नाइजीरिया और ब्राजील में लॉकडाउन और अन्य नियंत्रण उपायों से बड़ी संख्या में असंगठित अर्थव्यवस्था के श्रमिक प्रभावित हुए हैं।
दिनेश पाठक। पिछले करीब दो माह से मजदूरों की घर वापसी के हृदयविदारक दृश्य लगातार देखने को मिले हैं। लॉकडाउन के पहले ही हफ्ते में उनके चूल्हों की आग ठंडी हो गई और अगले सप्ताह तक वे इतने मजबूर हो गए कि साधन के अभाव में पैदल ही अपने घर की ओर रवाना हो गए।
कोरोना महामारी के कारण लगातार चल रहे लॉकडाउन के परिणामस्वरूप कामकाज के बदले तौर तरीकों और शहरों से पलायन के कारण आने वाले समय में बेरोजगारी के आंकड़ों में भारी बढ़ोतरी होने की आशंका है। ये सभी लोग देश के गांवों, कस्बों और छोटे शहरों के वे नागरिक हैं जो दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में महानगरों की मृगमरीचिका के पीछे वषों से दौड़ते रहे हैं, लेकिन इस लॉकडाउन ने इनका उनसे मोहभंग कर दिया है।
लॉकडाउन की घोषणा होते ही महानगरों और औद्योगिक क्षेत्रों से ग्रामीण मजदूरों की वापसी का जो सिलसिला शुरू हुआ वह दो महीने बाद भी जारी है। गांव लौटने वाले मजदूरों की संख्या करोड़ों का आंकड़ा पार कर चुकी है। इनमें से अधिकांश का मानना है कि अपने घर से अब भी दूर रहे तो कोरोना से भले ही नहीं, भूख से जरूर मर जाएंगे, इसीलिए आओ अब लौट चलें।
यदि गांव में ही उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों, कृषि उत्पादों का उचित प्रबंधन, कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने की दूरगामी योजना बनाकर प्रत्येक जिले में निर्माण या अन्य कार्य में योग्यता के अनुसार लोगों को रोजगार देने की पहल की जाए तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जा सकता है। इसके लिए अपने गांव, कस्बे में लौट आए श्रमिक परिवारों का एक विस्तृत डाटा बैंक तैयार करके उनके निजी, पारिवारिक, काम-धंधों और योग्यता का संपूर्ण विवरण दर्ज कर शीघ्र उनकी योग्यतानुसार रोजगार उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी होगी। खेती से जुड़ने वालों के लिए ग्रामीण स्तर पर सहकारी कृषि, फसल का सहकारी भंडारण व विपणन एक अन्य बेहतर विकल्प हो सकता है।
इंटरनेट की मदद से वैश्विक मार्केटिंग भी ऐसा कदम हो सकता है जो पूरे परिवार को गांव में ही रोजगार दे सके। इस व्यवस्था से जहां एक ओर महानगरों में भीड़भाड़ कम होने से उनकी मूलभूत सुविधाएं गड़बड़ाने और पर्यावरणीय असंतुलन जैसे संकटों से मुक्ति मिलेगी, वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों की लगन, प्रतिभा और कौशल का उपयोग हो सकेगा तथा स्थानीय स्तर पर श्रम शक्ति की कुशलता से रोजगार की संभावना भी प्रबल होगी। जब देश का श्रमिक अपने घरों की ओर लौट रहा है तब यही सही समय है कि ग्रामीण तथा कस्बाई स्तर पर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम स्तरीय उद्योगों की स्थापना के साथ ही आधुनिक संसाधनों से अद्यतन कर, पारंपरिक उद्योग धंधों की ओर इन्हें लौटाकर ग्रामीण अंचल में देश की अर्थ गतिविधियों को फिर से सक्रिय किया जाए। इसे भविष्य की संभावना के रूप में देखें तो निश्चित तौर पर इस आपदा को अवसर के रूप में बदला जा सकता है।
आंकड़ों की तुलना करें तो हम पाते हैं कि जहां गांवों की तुलना में शहरों की आबादी में निरंतर इजाफा हुआ है, वहीं देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान 60 फीसद हो गया है, जबकि खेती की भूमिका घटते हुए मात्र 15 प्रतिशत रह गई है। आंकड़ों का विश्लेषण यह भी बताता है कि गांवों की आबादी संपूर्ण देश की कुल आबादी का लगभग दो-तिहाई होने के बावजूद इन क्षेत्रों की जीडीपी शहरों की तुलना में छठा हिस्सा भी नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि भारत, नाइजीरिया और ब्राजील में लॉकडाउन और अन्य नियंत्रण उपायों से बड़ी संख्या में असंगठित अर्थव्यवस्था के श्रमिक प्रभावित हुए हैं। इस श्रम संगठन ने यह आशंका जताई है कि भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करीब 45 करोड़ कामगारों में से 40 करोड़ तक बेरोजगार हो सकते हैं। उनके लिए सरकार को समय रहते उपाय करने होंगे।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)