नागपुर के निकट पुलगांव में देश के सबसे बड़े आयुध भंडार में आग लगने से हुआ जान-माल का व्यापक नुकसान गंभीर चिंता का विषय है। इस आयुध भंडार में लगी आग कितनी भीषण थी, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उसे बुझाने की कोशिश में दो सैन्य अफसरों समेत 16 लोगों की जान चली गई। इनमें मुख्यत: रक्षा सुरक्षा कोर और अग्निशमन दस्ते के जवान हैं। करीब-करीब इतने ही जवान जख्मी भी हुए हैं। आग की विकरालता का एक प्रमाण इससे भी मिलता है कि आयुध भंडार के आसपास के गांव भी खाली कराने पड़े। आग लगने के कारणों का पता जांच से ही चलेगा और उसके आदेश दे दिए गए हैं। यह स्वाभाविक ही है कि जांच के दौरान यह भी देखा जाएगा कि अग्निकांड के पीछे कहीं कोई साजिश तो नहीं? जांच के बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि आयुध सामग्र्री का कितना नुकसान हुआ और उसकी भरपाई के लिए क्या करना होगा? जांच के निष्कर्ष जो भी हों, ज्यादा जरूरी यह है कि उनसे सबक सीखने में कोताही नहीं बरती जानी चाहिए। यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि आयुध भंडारों में आग लगने की यह पहली घटना नहीं है। इसके पहले 2010 में पारागढ़ स्थित आयुध भंडार आग की चपेट में आया था और उसके पहले अनंतनाग और भरतपुर के आयुध भंडारों में इसी तरह की आग लगी थी। उन घटनाओं की भी गहन जांच की गई थी, लेकिन ऐसा लगता है कि जांच के नतीजों से सही सबक नहीं सीखे गए। कम से कम अब तो ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए।

चूंकि आयुध भंडार विस्फोटक सामग्री से भरे होते हैं और उनमें सामान्य गोलाबारूद से लेकर मिसाइलें तक होती हैं इसलिए उनकी सुरक्षा में तनिक भी खामी के लिए गुंजाइश नहीं हो सकती। आयुध भंडारों की सुरक्षा व्यवस्था इस तरह की जानी चाहिए जिससे दुर्घटना के लिए कोई गुंजाइश न रहे। कई बार इस तरह की दुर्घटनाओं के पीछे लापरवाही भी होती है, जिसे अक्सर मानवीय भूल की संज्ञा दे दी जाती है। पुलगांव केंद्रीय आयुध भंडार की गिनती एशिया के सबसे बड़े आयुध भंडारों में होती है। इसका विशेष महत्व इसलिए है, क्योंकि यहां आयुध सामग्री का एक बड़ा भंडार तो होता ही है, इस सामग्री में ऐसे हथियार भी होते हैं जिन्हें क्षति पहुंचने से देश की प्रतिरक्षा क्षमता प्रभावित होती है। हालांकि इस आयुध भंडार की सुरक्षा के लिए उसके चारो ओर बारूदी सुरंगें तक बिछाई गई हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि भंडार के अंदर या तो पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध नहीं थे अथवा किसी न किसी स्तर पर उनकी अनदेखी हुई। यह बिल्कुल भी ठीक नहीं कि जब दुनिया भारत को एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर देख रही है तब किस्म-किस्म के हादसों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। यदि अग्नि जनित घटनाओं की ही बात की जाए तो पिछले दो-तीन महीने ऐसे रहे जब देश के करीब-करीब हर हिस्से से आग लगने की खबरें आती रहीं। इन घटनाओं ने यही बताया कि उन स्थलों में भी दुर्घटना से बचाव के पर्याप्त उपाय नहीं किए जा सके हैं जहां ऐसा प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। इन स्थितियों में यह आवश्यक है कि हर दुर्घटना के बाद संबंधित एजेंसियों के साथ आम लोग भी जरूरी सबक सीखें। इसका कोई मतलब नहीं कि अपने देश में बार-बार एक जैसे कारणों से दुर्घटनाएं होती रहें। दुर्घटनाओं के इस सिलसिले से जान-माल की तो क्षति होती ही है, देश की छवि को भी नुकसान पहुंचता है।

[ मुख्य संपादकीय ]