देवेंद्र त्रिगुणा और मनोज नेसरी। इन दिनों जनता में आयुर्वेद बनाम एलोपैथ की चर्चा हो रही है। यह समझा जाना चाहिए कि चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियों में हुई प्रगति ने स्वास्थ्य रक्षा में अपने-अपने स्तर पर योगदान दिया है। आधुनिक शल्य चिकित्सा के जनक एवं आयुर्वेद विद्वान आचार्य सुश्रुत ने ‘सुश्रुत संहिता’ में लिखा है, ‘केवल एकांगिक ज्ञान होने से विषय का वास्तविक ज्ञान नहीं होता।’

विज्ञान में व्यापक प्रगति के बावजूद स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अब भी कई कमियां हैं। आयरन और फोलिक एसिड की निःशुल्क आपूर्ति के बावजूद देश में औसतन लगभग 50 प्रतिशत बच्चे और किशोरियां आयरन की कमी वाले एनीमिया से पीड़ित हैं। देश में मधुमेह रोगी 2009 में 7.1 प्रतिशत से थे, जो 2019 में बढ़कर 8.9 प्रतिशत हो गए। 2021 की तुलना में क्षय (टीबी) रोगियों में भी 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का व्यय 89,155 करोड़ रु. है, जो कई देशों के कुल बजट से ज्यादा है। इतने व्यय के उपरांत भी कुपोषण, मधुमेह, डेंगू, टीबी आदि व्याधियों में वृद्धि चिंताजनक है। आयुर्वेद, योग और अन्य आयुष पद्धतियां विश्व को भारत की अद्भुत देन हैं। ये पद्धतियां बीमारियों को ठीक करने के साथ उनकी रोकथाम में भी उपयोगी हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की विशेषताओं का संज्ञान लेते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में आयुष विभाग को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से अलग कर स्वतंत्र आयुष मंत्रालय बनाया। कोविड महामारी ने हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की सीमाओं को दर्शाया था।

हमारी जनसंख्या आस्ट्रेलिया, रूस, यूरोप आदि देशों से अधिक है। इतनी अधिक जनसंख्या को कोविड महामारी में सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत ने आयुर्वेद, योग, सिद्ध, यूनानी आदि की भी सहायता ली। अकेले अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान दिल्ली ने आयुर्वेदिक दवाओं से छह हजार से अधिक कोविड रोगियों का उपचार किया। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर, आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, जामनगर, राष्ट्रीय सिद्ध संस्थान, चेन्नई सहित अन्य संस्थानों और लाखों निजी आयुर्वेद चिकित्सकों ने आयुर्वेद/सिद्ध/यूनानी औषधियों एवं योग के माध्यम से करोड़ों कोविड रोगियों का उपचार किया। हमारी आयुर्वेदिक औषधियों से कई अन्य देश भी लाभान्वित हुए।

आयुर्वेद, सिद्ध आदि औषधियों पर वैज्ञानिक शोध पत्र विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए हैं। हजारों सालों से आयुर्वेद प्रगतिशील शास्त्र रहा, पर 18वीं सदी में अंग्रेजों के समय उसकी प्रगति की परंपरा खंडित हुई। आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद, योग, सिद्ध आदि चिकित्सा पद्धतियों की औषधियों और उपचारों को प्रभावी करने के लिए आइआइटी, टाटा कैंसर संस्थान, सीएसआइआर आदि उन्नत संस्थाओं के साथ अनुसंधान शुरू किया है। इसके परिणामों ने आयुर्वेद एवं अन्य आयुष प्रणालियों का वैज्ञानिक आधार और पुष्ट किया है। आयुष मंत्रालय ने जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका, ब्राजील आदि में वैज्ञानिक संगठनों के साथ वायरल संक्रमण, मधुमेह, पार्किंसंस, कैंसर आदि रोगों के आयुर्वेदिक उपचार विकसित करने के लिए अनुसंधान में सहयोग किया है।

उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन, जी-20, आसियान आदि के साथ भी सहयोग किया है। 24 से अधिक देशों ने आयुर्वेद को पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में कानूनी रूप से मान्यता दी है। आयुर्वेद उत्पादों का 100 से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है। लगभग 150 देशों में योग किया जाता है। कई देशों की स्वास्थ्य सेवाओं में आयुर्वेद और योग को एकीकृत किया जा रहा है। आयुर्वेद की बढ़ती स्वीकार्यता के कारण ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपना पहला ‘वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र’ स्थापित करने के लिए भारत को प्राथमिकता दी है। आयुर्वेद केवल हर्बल चिकित्सा तक सीमित नहीं है। इसमें काय चिकित्सा (इंटरनेल मेडिसन), शल्य चिकित्सा (सर्जरी), शालाक्य चिकित्सा (ईएनटी) और मनोचिकित्सा आदि भी हैं। आयुर्वेद में हाथियों के लिए हस्त्यायुर्वेद, घोड़ों के लिए अश्वायुर्वेद, गाय-भैंस के लिए गवायुर्वेद, वृक्षों के लिए वृक्षायुर्वेद आदि शाखाएं हैं। आयुर्वेद मानव स्वास्थ्य से लेकर पर्यावरण संरक्षण समेत जीवन के विभिन्न अंगों को समाविष्ट करने वाली एक समग्र ज्ञान प्रणाली है, जिसके प्रशंसक पश्चिम के अनेक ख्याति प्राप्त लोग भी हैं।

आयुष का अर्थ है जीवन और उसका उद्देश्य है-विविध रोगों के उपचार के साथ स्वस्थ जीवनशैली और भोजन एवं व्यवहार संबंधी अच्छी आदतों को प्रोत्साहन। आयुष मंत्रालय की भूमिका रोगों के निदान के साथ मानव कल्याण एवं पारिस्थितिकी को बढ़ावा देना भी है। आयुर्वेद इस सिद्धांत में विश्वास करता है कि बाहर का प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। संपूर्ण सजीव और निर्जीव सृष्टि का निर्माण पांच तत्वों अर्थात पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश से हुआ है। इन पंच महाभूतों की गुणवत्ता में किसी प्रकार का परिवर्तन हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है। हमारा जीवन पर्यावरण, वनस्पति और जीव-जंतुओं के साथ जुड़ा हुआ है। यह अपेक्षित है कि बड़े अस्पतालों के साथ मेडिकल कालेजों में आयुर्वेद और योग के स्वतंत्र विभागों की स्थापना हो। इसी के साथ एलोपैथी, आयुर्वेद, योग एवं अन्य भारतीय चिकित्सा प्रणालियों में समन्वय की भी किया जाए। एकीकृत चिकित्सा प्रणाली से भारत यूनिर्वसल हेल्थ कवरेज प्राप्त करने वाला अग्रिम देश बन सकता है।

(पद्मश्री-पद्मभूषण वैद्य त्रिगुणा अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष एवं डा. नेसरी भारत सरकार के आयुर्वेद सलाहकार हैं)