नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी।

परिवार अपनी उपभोग की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर कर्ज ले रहे हैं। मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट में सामने आया है कि दिसंबर 2023 तक ही घरेलू कर्ज बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद के 40% स्तर पर पहुंच गया है जबकि शुद्ध वित्तीय बचत गिर गई है। अग्रणी वित्तीय सेवा फर्म मोतीलाल ओसवाल की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 5% सबसे निचला स्तर है।वित्त वर्ष 2020 के पहले नौ महीनों में कुल डिपॉजिट डीजीपी का 3.3 फीसदी थी. वहीं, बैंक लोन जीडीपी का 2.9 फीसदी थी। वित्त वर्ष 2022 और 2023 के पहले नौ महीनों में भी ऋण की तुलना में जमा धीमी गति से बढ़ी।

सितंबर 2023 में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि 2022-23 में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत गिरकर सकल घरेलू उत्पाद का 5.1% हो गई है, जो 47 साल का निचला स्तर है, जिससे आलोचना की झड़ी लग गई, जिसका वित्त मंत्रालय ने तीखा खंडन किया था। तर्क दिया था कि परिवार पहले की तुलना में कम वित्तीय संपत्ति जोड़ रहे हैं क्योंकि वे घरों और वाहनों जैसी वास्तविक संपत्ति खरीदने के लिए ऋण ले रहे हैं जो "संकट का संकेत नहीं है बल्कि उनके भविष्य के रोजगार और आय की संभावनाओं में विश्वास का संकेत है"।

बचत के माध्यम बदले, इकोनॉमी के लिए पॉजिटव है लोन का बढ़ना

इंफॉर्मेटिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट डा. मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि लोन बढ़ना अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर संकेत हैं। इससे विकास की प्रक्रिया को बल मिलता है। वह कहते हैं कि ऐसे में लोन बढ़ने को किसी तरह की चिंता के तौर पर नहीं लेना चाहिए। बचत का कम होना एक फौरी समस्या है लेकिन सीधे तौर पर यह नहीं कह जा सकता है कि लोगों की बचत कम हो रही है। मौजूदा समय में बचत के साधन बढ़े हैं। नौकरीपेशा लोग एसआईपी में निवेश करने लगे हैं। एसआईपी में सालाना करीब दो लाख पचास हजार करोड़ रुपये का निवेश हो रहा है। वहीं छोटे निवेशकों की अलग-अलग जगहों पर निवेश करने की भागीदारी बढ़ी है। इसके अलावा पैसे उपभोग के माध्यमों में भी ईजाफा हुआ है। शर्मा कहते हैं कि ब्रितानी अर्थशास्त्री और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स के अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख रह चुके लियोनेल रोबिंसन कहते थे कि हमारी आवश्यकताएं असीमित है, उसे पूरा करने के साधन सीमित है।

मोतीलाल ओसवाल के शोध विश्लेषक निखिल गुप्ता और तनीषा लाधा कहते हैं कि बैंकों के आंकड़ों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण घरेलू ऋण के भीतर सबसे तेज गति से बढ़ रहे हैं, इसके बाद सुरक्षित ऋण, कृषि ऋण और व्यावसायिक ऋण हैं। आंकड़ों की जांच से पता चलता है कि भले ही आवास ऋण में वृद्धि हुई है, अन्य प्रकार के ऋण जो संभवतः उपभोग के लिए उपयोग किए जा सकते हैं, और भी तेजी से बढ़े हैं। लेकिन क्या इसका मतलब संकट है? सिर्फ एक साल के आंकड़ों से यह कहना मुश्किल है, क्योंकि हम नहीं जानते कि यह एक प्रवृत्ति है या एक बार की घटना है। कोई कह सकता है कि कोविड और उच्च मुद्रास्फीति के बाद आय में कमी की स्थिति में उपभोग बनाए रखने के लिए परिवार उधार ले रहे हैं। दूसरी ओर, यह भी हो सकता है कि महामारी के दौरान दबी हुई मांग को ऋण-वित्तपोषित उपभोग के रूप में महसूस किया जा रहा है, जिससे परिवार भविष्य में पुनर्भुगतान को लेकर आशान्वित हैं।

अभी भी हाऊसिंग लोन है अव्वल

डा. मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि आम आदमी के पास मूलत : चार तरह के लोन का विकल्प है। इसमें पर्सनल लोन, हाऊसिंग लोन, क्रेडिट कार्ड लोन और एजुकेशन लोन है। वह कहते हैं कि आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि हाऊसिंग लोन सबसे अधिक लिया जाता है। इन चारों लोनों में पचास फीसद से अधिक भागीदारी इसकी ही होती है। साथ ही इस लोन का एनपीए डेढ़ फीसद से भी कम होता है। वहीं क्रेडिट कार्ड के लोन में भी बीते कुछ सालों में बढ़ोतरी हुई है। इसे लेकर बैंकों में चिंता थी।

रिपोर्ट के अनुसार कोविड के बाद, घरेलू निर्माण में वृद्धि हुई है। 2020-21 और 2021-22 के बीच, निर्माण क्षेत्र सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र था, जो लगभग 15% (जब 2011-12 की कीमतों में मापा गया) और 2021-22 और 2022-23 के बीच 10% की दर से बढ़ रहा था। बाद की अवधि में केवल व्यापार, होटल, परिवहन और संचार क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हुई। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) से आवास ऋण 2018-19 और 2022-23 के बीच सभी वर्षों में दोहरे अंकों की दर से बढ़ा, आवास वित्त कंपनियों से ऋण 2019-20 और 2022-23 के बीच लगभग 17 गुना बढ़ गया।

विशेषज्ञ कहते हैं कि अन्य गैर-वित्तीय परिसंपत्तियों में देनदारियां भी बढ़ी हैं। 2021-22 और 2022-23 के बीच एससीबी से शिक्षा और वाहन ऋण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो क्रमशः 17% और लगभग 25% की दर से बढ़ रही है। इससे घरेलू बचत की संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। भौतिक संपत्ति का हिस्सा - सोने और चांदी को छोड़कर - परिवारों की कुल शुद्ध बचत का लगभग 60% है, वित्तीय बचत का हिस्सा 2017-18 में 39.6% से घटकर 2021-22 में 38.77% हो गया है। यानी, महामारी के मद्देनजर आरबीआई द्वारा निर्धारित कम ब्याज दरों का लाभ उठाकर, परिवारों ने ईंधन की खपत के लिए नहीं, बल्कि घरों जैसी गैर-वित्तीय संपत्तियों को खरीदने के लिए अपनी देनदारियों में वृद्धि की होगी।

रियल एस्टेट ब्रोकरेज फर्म PropTiger.com ने ‘रियल इनसाइट रेज़िडेंशियल - जनवरी-मार्च 2024’ शीर्षक से अपनी त्रैमासिक रिपोर्ट में बताया कि घरों के बिक्री मूल्य के संदर्भ में जनवरी-मार्च 2024 में बढ़कर 1,10,880 करोड़ रुपये हो गई, जबकि एक साल पहले की अवधि में यह 66,155 करोड़ रुपये थी। PropTiger.com के डेटा से पता चला है कि इस कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में घरों की बिक्री 41 प्रतिशत बढ़कर 1,20,640 यूनिट्स हो गई, जो पिछले साल की इसी अवधि में 85,840 यूनिट्स थी। आरईए इंडिया के ग्रुप सीएफओ और PropTiger.com के बिज़नेस हेड, श्री विकास वाधवा ने कहा, “मात्रा और मूल्य दोनों के संदर्भ में, घरों की बिक्री में वृद्धि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है क्योंकि सीमेंट और स्टील सहित 200 से अधिक सहायक उद्योग रियल एस्टेट क्षेत्र पर निर्भर हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “भारत का हाउसिंग मार्केट सपनों की उड़ान भर रहा है। शीर्ष आठ प्राइमरी मार्केट में आवासीय संपत्तियों की बिक्री तेज़ी से बढ़ रही है, जिसे मजबूत विकास, दृढ़ ऋण दरों और घर खरीदने की बढ़ती इच्छा का समर्थन मिल रहा है।

उपभोग बढ़ने से तेज होगी इकोनॉमी

बैंक ऑफ बड़ौदा के अर्थशास्त्री मदन सबनवीश कहते हैं कि रिटले लोन में 20 फीसदी तक की देखी गई है। लेकिन ज्यादातर लोन हाउसिंग या ऑटो लोन के तौर पर लिया गया है। ऐसे में बहुत चिंता की बात नहीं है। दरअसल चिंता उस कर्ज को लेकर जताई जा रही है जो उपभोग के लिए जा रहा है। मुख्य तौर पर क्रेडिट कार्ड के जरिए या बाय नॉऊ पे लेटर जैसी स्कीमों के जरिए किए जाने वाले खर्च को लेकर चिंता बढ़ी है। ये असुरक्षित लोन होते हैं। ऐसे में अगर ग्राहक इस लोन में डिफॉल्ट होते हैं तो बैंकों के एनपीए तेजी से बढ़ेंगे। भारत में निश्चित तौर पर पिछले कुछ सालों में तेजी से उपभोग बढ़ा है। उपभोग बढ़ने से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था इसका एक बड़ा उदाहरण है।

क्रेडिट कार्ड से बढ़ा लोन

घरेलू शुद्ध वित्तीय बचत में गिरावट मुख्य रूप से देनदारियों में वृद्धि के कारण हुई। देनदारियों में इस वृद्धि का मतलब यह नहीं होगा कि यदि बढ़ते ऋणों से घरों के निर्माण और खरीद को वित्तपोषित किया जाता है तो परिवारों ने बचत कम कर दी है। हालांकि, इसके विपरीत सबूत हैं। व्यक्तिगत ऋण के अन्य घटक और भी तेजी से बढ़े हैं। एससीबी से कुल गैर-खाद्य व्यक्तिगत ऋण में आवास ऋण की हिस्सेदारी - प्राथमिकता क्षेत्र ऋण सहित - 2018-19 में 51.08% से गिरकर 2022-23 में 47.4% हो गई है। शिक्षा ऋण का हिस्सा 3.32% से गिरकर 2.37% हो गया है, जबकि वाहन ऋण लगभग 12% पर स्थिर बना हुआ है।

इसके विपरीत, इस अवधि में बकाया क्रेडिट कार्ड ऋण 3.8% से बढ़कर 4.7% हो गया, सोने के आभूषणों के विरुद्ध ऋण 1.07% से बढ़कर 2.16% हो गया। हालांकि कोई यह नहीं कह सकता कि इन ऋणों का उपयोग किलिए किया जा रहा है, लेकिन ऋणों की ये श्रेणियां आवश्यक रूप से यह संकेत नहीं देती हैं कि उनका उपयोग केवल संपत्ति निर्माण के लिए किया जा रहा है। संभव है कि परिवार उपभोग के वित्तपोषण के लिए क्रेडिट कार्ड से ऋण ले रहे हों और आभूषणों के बदले ऋण ले रहे हों।

इकोनॉमी को गति देने वाले कारक

डा. मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि 1798 में थॉमस माल्थस ने एक सिद्धांत दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि फूड ग्रेंस में बढ़ोतरी धीरे-धीरे होती है जबकि जनसंख्या में वृद्धि तेजी से होती है। कुल मिलाकर इस प्रक्रिया से विकास बाधित होता है। शुरुआती समय में इस सिद्धांत को बल मिला लेकिन बाद में इसे खारिज कर दिया गया। गोल्डमैन सेश ने डोमनिक विल्सन और रूपा पुरषोत्तम ने इस धारणा को बदला। उन्होंने कहा कि जनसंख्या बढ़ोतरी को अच्छी नीयत से देखें। भारत के पक्ष में मौजूदा समय में डेमोग्राफिक डिवीडेंड भी है। यह भारत की प्रगति का द्योतक है। इंफ्रास्ट्रक्चर का लगातार बेहतर होना भारत के लिए शुभ संकेत है।