एस.के. सिंह, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव को देखते हुए जागरण न्यू मीडिया मतदाताओं को जागरूक करने के मकसद से ‘मेरा पावर वोट- नॉलेज सीरीज’ लेकर आया है। इसमें हमारे जीवन से जुड़े पांच बुनियादी विषयों इकोनॉमी, सेहत, शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा पर चर्चा की जा रही है। हमने हर सेगमेंट को चार हिस्से में बांटा है- महिला, युवा, शहरी मध्य वर्ग और किसान। इसका मकसद आपको एंपावर करना है ताकि आप मतदान करने में सही फैसला ले सकें। इस नॉलेज सीरीज में बात इकोनॉमी और किसानों की।

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इकोनॉमिक सर्वे 2022-23 के अनुसार देश की 65% आबादी गांवों में रहती है, 47% लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है। आजादी से अब तक हमने कृषि में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। तब हम आयात पर निर्भर थे, आज हम बहुत सी कृषि उपज का निर्यात करते हैं। अनाज उत्पादन 1950 में 5.08 करोड़ टन था, जबकि 2023-24 में 30.9 करोड़ टन का अनुमान है। भारत दूध, जूट और दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है। गेहूं, चावल और फल-सब्जियों में दूसरे स्थान पर है। एक तरफ ये उपलब्धियां हैं तो दूसरी तरफ किसानों के लिए समस्याओं की कोई कमी नहीं है।

इस विषय पर हमने बात की इन्फोमेरिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट तथा केनरा बैंक के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट डॉ. मनोरंजन शर्मा और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ गवर्मेंट एंड पब्लिक पॉलिसी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. अवनींद्र नाथ ठाकुर से।

-जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी समस्या बन गई है। हर साल... कभी अचानक गर्मी बढ़ने से तो कभी बेमौसम की बारिश से फसलों को नुकसान हो रहा है। इसमें बहुत कुछ हमारे नियंत्रण में नहीं है, लेकिन फसलों की नई वैरायटी तैयार करने जैसे उपाय बताए जा रहे हैं। और क्या उपाय देखते हैं?

मनोरंजन शर्मा- अभी हम ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहां कोई विकल्प नहीं है। यहां एक और बात मैं लाना चाहूंगा कि कृषि से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भारत में प्रदूषण का स्तर बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाता है। इस उत्सर्जन को कम करने के लिए क्लाइमेट स्मार्ट खेती को अपनाने की जरूरत है। इसमें फसलों के बीज को मॉडिफाई किया जा सकता है। हम ऐसी फसलों पर ध्यान दे सकते हैं जिनमें पानी की आवश्यकता कम हो। सौर ऊर्जा पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है। कृषि से जुड़ा एक सेक्टर है पशुधन का। यह भी प्रदूषण बढ़ने का बड़ा कारण है। अगर हम तकनीकी रूप से कुछ ऐसा बदलाव कर सकें जिससे उत्सर्जन कम हो तो उसका भी अच्छा परिणाम हो सकता है।

अवनींद्र ठाकुर- जैसा आपने बताया कि 47% लोग खेती पर निर्भर हैं और वे लोग आर्थिक रूप से अच्छी स्थिति में नहीं हैं। मुझे लगता है कि उनके पास विकल्प भी नहीं है कि बदलाव कर सकें, दूसरी पद्धति को अपना सकें। मुझे लगता है कि यहां किसान की मदद के लिए सरकार के पास बड़ा अवसर है। इसे दो तरीके से किया जा सकता है। किसानों को अपनी उपज की कीमत पर कोई अधिकार नहीं होता है। इसलिए वे उन्हीं फसलों का उत्पादन करते हैं जिनके लिए उन्हें बेहतर कीमत का आश्वासन मिलता है। किसानों का रुझान जलवायु समस्या की तरफ नहीं बल्कि सस्टेनेबिलिटी की ओर होता है। अगर हम ऐसी प्रैक्टिस शुरू करें जो जलवायु के लिए मुफीद हो और स्थानीय स्तर पर उसे अपनाया जा सके, तो वह एक अच्छा समाधान हो सकता है। हम ज्यादातर तकनीक बाहर से लाते हैं जो हमारे क्षेत्र के लिए ज्यादा उपयोगी नहीं होता है। मुझे लगता है कि देश में कृषि में रिसर्च और डेवलपमेंट को काफी बढ़ाने की जरूरत है। उसमें यह देखा जाना चाहिए कि स्थानीय स्तर पर क्या उपयोगी हो सकता है।

-देश में 70% आबादी किसानों और मजदूरों की है। उनके पास खरीदने की क्षमता नहीं हुई तो मांग कैसे निकलेगी? इकोनॉमी कैसे बढ़ेगी?

मनोरंजन शर्मा- हमें दो तरह के प्रयास करने की जरूरत है। एक तो किसानों की इनपुट लागत को कम करना होगा और आमदनी बढ़ानी होगी। बाजार की ताकतों पर निर्भर होने के चलते खर्चे पर ज्यादा नियंत्रण नहीं रहता है। जैसे बीज की कीमत, खाद की कीमत, पानी की लागत इन सब पर किसान का ज्यादा वश नहीं चलता है। एक विकल्प है कि हाई वैल्यू क्रॉप यानी अधिक कीमत वाली फसलों पर ध्यान दिया जाए। इनमें फिशरीज, हॉर्टिकल्चर आदि शामिल हैं। समय पर कर्ज भी जरूरी है। वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में काफी काम हुआ है, इसे कृषि में भी बढ़ाने की जरूरत है। भारत में 80% से 82% छोटे किसान हैं। उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए कई तरह के उपाय करने होंगे। अगर हम कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था को मजबूत करें तो फॉर्म टू फोर्क का इकोसिस्टम मजबूत होगा। आज सोलर फार्म भी किसानों की आय का बड़ा जरिया हो सकता है। एग्री टूरिज्म भी एक अच्छा कांसेप्ट है। राजस्थान में इस पर काफी कम हुआ है।

अवनींद्र ठाकुर- वैल्यू चेन में किसान काफी नीचे होते हैं। अगर उन्हें फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के साथ जोड़ दिया जाए तो इसके बेहतर परिणाम निकल सकते हैं। किसानों को उनकी उपज की कीमत भले ही कम मिले लेकिन प्रोसेस्ड फूड की कीमत काफी होती है। मेरे विचार से फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को ग्रामीण स्तर पर डेवलप किया जाए और किसानों को उसमें भागीदारी दी जाए ताकि किसान भी वैल्यू चेन का हिस्सा बन सकें। मुझे लगता है कि यह किसानों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हस्तक्षेप होगा। किसान उत्पादन करने के साथ इंडस्ट्री में भी भूमिका निभाएगा।

-संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) का आकलन है कि सप्लाई चेन की कमी के कारण भारत में हर साल 11-15% अनाज नष्ट हो जाते हैं। इसको कैसे कम किया जा सकता है?

मनोरंजन शर्मा- जहां हम कम उत्पादकता और किसानों की कम आय की बात कर रहे हैं वहां अनाज या कृषि उपज का नष्ट होना बड़ी समस्या है। हाल के वर्षों में फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) उभर कर आई हैं जो इस दिशा में काम कर रही हैं। कुछ इंडस्ट्री एसोसिएशन भी काम कर रही हैं। हमें इसके लिए एक समन्वित प्रयास करने की जरूरत है। लोगों को भी यह एहसास करने की जरूरत है कि आपका तो नुकसान हो ही रहा है, यह समाज का भी नुकसान हो रहा है। ऐसे नुकसान को हम एक अवसर के रूप में भी देख सकते हैं।

अवनींद्र ठाकुर- इसका एक कारण तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है। दूसरी प्रमुख बात यह है कि मुझे लगता है कि फूड मैनेजमेंट का डिसेंट्रलाइजेशन बहुत जरूरी है। खाद्य उत्पादन को गांव के स्तर पर मैनेज करना पड़ेगा। होता यह है कि कोल्ड स्टोरेज या इस तरह की सुविधाएं जिा मुख्यालय में होती हैं या कई बार जिले में भी नहीं होती है। मंडियां काफी दूर होती हैं। किसानों को खेत से वहां तक ले जाने में काफी समय लगता है। अगर गांव के स्तर पर कृषि उपज को संग्रह किया जाए, उसको फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री से जोड़ा जाए तो इससे काफी फायदा होगा। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत सरकार किसानों से उपज खरीदती है। उसे भी क्यों ना स्थानीय स्तर पर किया जाए। गांव के स्तर पर इस तरह के डिसेंट्रलाइजेशन से नुकसान को रोका जा सकता है।

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(डिस्क्लेमरः इस लेख में व्यक्त विचार विशेषज्ञों के हैं। इसका मकसद मतदान का सही फैसला लेने में एंपावर करना है, किसी पक्ष के लिए मत को प्रभावित करना नहीं।)