स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। देश में भर्ती परीक्षाओं में होने वाली नकल और पेपरलीक जैसी घटनाओं को रोकने के लिए केंद्र सरकार नया कानून लेकर आई है। यह कानून केंद्र सरकार की ओर से आयोजित होने वाली परीक्षाओं पर लागू होगा। इसके अलावा, राज्य भी इस मॉडल बिल के जरिए राज्यों में नकलरोधी कानून बना सकेंगे। लोकसभा में यह विधेयक मंगलवार को पारित हो गया। राज्यसभा में बुधवार को इस पर मतदान होगा।

विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि सार्वजनिक परीक्षाओं में गड़बड़ी के कारण परीक्षा में देरी होती या उसे रद्द करना पड़ता है। इससे लाखों युवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वर्तमान में, इन अपराधों से निपटने के लिए कोई खास ठोस कानून नहीं है। ऐसे में यह जरूरी है कि परीक्षा प्रणाली की कमजोरियों का फायदा उठाने वाले तत्वों की पहचान की जाए और एक व्यापक केंद्रीय कानून द्वारा प्रभावी ढंग से निपटा जाए।

परीक्षाओं में होने वाली नकल और पेपरलीक का मुद्दा सबसे पहले जागरण प्राइम ने उठाया था। इसमें बताया गया था कि बीते सात वर्षों में देश में 70 से अधिक पेपर लीक और परीक्षा में धोखाधड़ी के मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें डेढ़ करोड़ परीक्षार्थी प्रभावित हुए। हालांकि, इतनी विकराल समस्या होने के बाद भी हमारे दो-तिहाई राज्य नकल रोधी कानून बनाने की जहमत नहीं उठा रहे हैं। सिर्फ तीन राज्यों उत्तराखंड, गुजरात और राजस्थान ने पेपर लीक की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए हैं। पुराने कानूनों की खामियों और केंद्रीय स्तर पर नकल रोधी कानून की जरूरत को भी इसमें उठाया गया था।

पेपरलीक रोकने में दो-तिहाई राज्य नहीं दिखा रहे रुचि, सिर्फ 10 राज्यों में कानून, कड़े नियम सिर्फ तीन में

केंद्र सरकार की ओर से पेश विधेयक सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक-2024 पांच फरवरी को लोकसभा में पेश किया गया और छह जनवरी को यह सदन में पारित हो गया। यह विधेयक केंद्र सरकार की संस्थाओं संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे भर्ती बोर्ड, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी, बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान, और केंद्र सरकार के विभाग और भर्ती के लिए उनके संलग्न कार्यालय की ओर से आयोजित होने वाली परीक्षाओं पर लागू होगा।

इस कानून में पहली बार सार्वजनिक परीक्षाओं के संबंध में कई अपराधों को परिभाषित किया गया है। यह किसी भी अनुचित तरीके की संलिप्तता, मिलीभगत या साजिश पर रोक लगाता है। इसमें प्रश्न पत्र या उत्तर कुंजी की अनधिकृत पहुंच या लीक, सार्वजनिक परीक्षा के दौरान उम्मीदवार की सहायता करना, कंप्यूटर नेटवर्क या संसाधनों के साथ छेड़छाड़, शॉर्टलिस्टिंग के लिए दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ या योग्यता सूची या रैंक में छेड़छाड़ और मौद्रिक लाभ के लिए नकली परीक्षा आयोजित करना, नकली प्रवेश पत्र जारी करना आदि शामिल हैं।

यह कानून समय से पहले परीक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारी का खुलासा करने और परीक्षा में व्यवधान करने के उद्देश्य से अनधिकृत लोगों के परीक्षा केंद्रों में प्रवेश पर भी रोक लगाता है। इन अपराधों का दोषी पाए जाने पर 3 से 5 साल तक की कैद और 10 लाख रुपए तक का जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

संगठित अपराध के लिए और सख्त सजा का प्रावधान

इस कानून में पेपरलीक और नकल की घटनाओं को अंजाम देने वाले संगठित अपराध के लिए अलग सजाओं का प्रावधान है। संगठित अपराध करने वाले व्यक्तियों को पांच साल से 10 साल तक की सजा होगी और कम से कम एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। यदि किसी संस्था को संगठित अपराध करने का दोषी ठहराया जाता है, तो उसकी संपत्ति कुर्क और ज़ब्त कर ली जाएगी। परीक्षा की लागत भी उससे वसूल की जाएगी।

सर्विस प्रोवाइडर्स की भी जिम्मेदारी तय होगी

इस कानून में पेपर का प्रकाशन करने और कंप्यूटर आदि प्रदान करने वाले सर्विस प्रोवाइडर्स को भी जिम्मेदार बनाया गया है। विधेयक के मुताबिक, विधेयक के प्रावधानों का उल्लंघन होने पर सर्विस प्रोवाइडर्स को इसकी जानकारी पुलिस और संबंधित परीक्षा प्राधिकरण को देनी होगी। ऐसी घटनाओं को रिपोर्ट न करना अपराध होगा। यदि सर्विस प्रोवाइडर ही अपराध में संलिप्त है तो परीक्षा प्राधिकारी को इसकी सूचना पुलिस को देनी होगी। सर्विस प्रोवाइडर्स द्वारा किए गए अपराध पर एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। उनसे जांच की लागत भी वसूल की जाएगी। इसके अलावा, उन्हें चार साल तक सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने से भी रोक दिया जाएगा।

यदि यह साबित होता है कि सर्विस प्रोवाइडर्स से जुड़े अपराध किसी निदेशक या वरिष्ठ प्रबंधन की सहमति या मिलीभगत से किए गए हैं, तो ऐसे व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा। उन्हें तीन साल से लेकर 10 साल तक की कैद और एक करोड़ रुपये जुर्माने की सजा होगी। 

राज्यों के लिए मॉडल ड्राफ्ट का काम करेगा यह कानून

केंद्र सरकार का मानना है यह विधेयक कानून बन जाने के बाद, "राज्यों के लिए एक मॉडल ड्रॉफ्ट" होगा। यह राज्य सरकारों को उनकी राज्य स्तरीय सार्वजनिक परीक्षाओं के संचालन में बाधा डालने वाले आपराधिक तत्वों से निपटने में सहायता करेगा। हालांकि, इसे अपनाना राज्यों के विवेक पर निर्भर करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के वकील और अनमास्किंग वीआईपी पुस्तक के लेखक विराग गुप्ता कहते हैं, इस बिल का इरादा काफी अच्छा है। हालांकि, पिछला अनुभव बताता है कि पुलिस और जांच एजेंसियां सॉल्वर गैंग या पेपर लीक को फॉरवर्ड करने वाले छोटे खिलाड़ियों को ही पकड़ती हैं। प्रदेश की पीएससी और सेना की परीक्षा में भी पेपर लीक हो रहे हैं। यह उच्च अधिकारियों की संलिप्तता के बिना संभव नहीं है।

गुप्ता कहते हैं, इस विधेयक के अनुसार धोखाधड़ी और वित्तीय लाभ के लिए फर्जी वेबसाइट बनाना और फर्जी परीक्षा आयोजित करना एक संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध है। विधेयक के कानून बनने के बाद सबसे पहले यूजीसी द्वारा घोषित 20 फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। ये विश्वविद्यालय दिल्ली और कई अन्य राज्यों में चल रहे हैं। यूजीसी हर साल दो बार ऐसे फर्जी विश्वविद्यालयों का ब्यौरा सामने लाता है। लेकिन, सरकार और पुलिस अधिकारियों की ओर से उन पर कार्रवाई नहीं की जाती है।

कुछ विशेषज्ञ परीक्षार्थियों को इसके दायरे से बाहर रखने की सलाह दे रहे हैं। कानूनी मामलों के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी दुबे कहते हैं, देश में नकल और पेपरलीक की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून की जरूरत थी। केंद्र सरकार ने एक अच्छा कानून बनाया है। इसमें 10 साल तक की कैद और एक करोड़ तक जुर्माने का प्रावधान है। संगठित अपराधियों पर सख्त कार्रवाई जरूरी है। हालांकि, इसमें इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि परीक्षार्थियों को इतनी सख्त सजा न दी जाए।