नई दिल्ली, संदीप राजवाड़े।

स्मोकिंग कैंसर के साथ दूसरी बड़ी बीमारियों के होने खतरे को बढ़ाता है। एक स्टडी में सामने आया है कि धूम्रपान से लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है। इतना ही नहीं इसका असर लंबे समय तक शरीर के इम्यून सिस्टम पर पड़ रहा है। इस कारण स्मोकिंग करने वालों व धूम्रपान छोड़ चुके लोगों में भी बड़ी बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। नेचर जर्नल में प्रकाशित इस नई स्टडी में बताया गया कि इसके कारण शरीर के इम्यून सिस्टम पर असर कई सालों तक देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि धूम्रपान न करें तो ही अच्छा है, अगर कर रहे हैं तो जितना जल्दी हो सके स्मोकिंग व तंबाकू से जुड़े प्रोडक्ट का सेवन छोड़ देना चाहिए। यह सिर्फ कैंसर ही नहीं, अन्य बड़ी बीमारियों के खिलाफ लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है। आजकल युवा खासकर महिलाओं में भी धूम्रपान की लत बढ़ी है, इस कारण अब युवावस्था में कैंसर के नए मामले सामने आ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ 2023 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में तंबाकू उत्पादों के सेवन से ही हर साल 80 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है। इसमें से 13 लाख लोगों की मौत उनकी होती है जो धूम्रपान नहीं करते थे, लेकिन स्मोकिंग करने वालों के धुएं के संपर्क में आए। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में 22.3 फीसदी आबादी तंबाकू उत्पादों का सेवन करती है, इनमें 36.7 फीसदी पुरुष और 7.8 फीसदी महिलाएं हैं।

नेचर जर्नल में प्रकाशित स्टडी में बताया गया कि स्मोकिंग करने वालों में कैंसर होने की आशंका के साथ अन्य बड़ी बीमारियों की चपेट में आने का खतरा ज्यादा हो जाता है, क्योंकि धूम्रपान करने वालों की प्रतिरोधक क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि स्मोकिंग छोड़ने के 10-15 साल बाद भी प्रतिरक्षा प्रणाली में इसका असर दिखाई दिया, जिससे अन्य बीमारियों के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। इसे लेकर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च डायरेक्टर डॉ. शालिनी सिंह का कहना है कि यह सच है कि स्मोकिंग के कारण शरीर का इम्यून सिस्टम डैमेज होता है, इसका असर कैंसर के मरीजों में खासकर देखा गया है। शरीर में प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होने से रोगों से लड़ने की अंदरुनी शक्ति कमजोर होती है। कई मरीजों में देखा गया है कि धूम्रपान के दौरान धुआं में मौजूद जहर शरीर में कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। इसे लेकर गुड़गांव सनार इंटरनेशनल हॉस्पिटल के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. अर्चित पंडित बताते हैं कि धूम्रपान व टोबैको प्रोडक्ट का सेवन कैंसर होने का एक बड़ा कारण है, इसका सीधे तौर पर शरीर पर प्रभाव पड़ता है। हमारी प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है, ऐसे में कैंसर के अलावा अन्य बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है।

शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में परिवर्तन की गई स्टडी

इस नई स्टडी को इंस्टीट्यूट पाश्चर के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, इसमें यह जानना था कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बदलने के पीछे कौन कौन से कारक हैं। इस स्टडी में 1000 हेल्थ वालंटियर के मिलियू इंटेरियर ग्रुप के साथ शोध किया गया। इसमें देखा गया कि धूम्रपान का असर उम्र, लिंग और अनुवांशिक कारणों से किस तरह हमारी इम्यून सिस्टम पर पड़ता है। स्टडी में मिला कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में इसका असर कम समय के साथ लंबे समय के लिए भी होता है। स्मोकिंग छोड़ने के बाद भी ऐसे लोगों पर इसका दुष्प्रभाव कई सालों तक देखा गया। यह पहला शोध है, जिसमें धूम्रपान करने और उसे छोड़ने के बाद भी इसके लंबे समय तक प्रतिरक्षा प्रणाली में होने की बात सामने आई है। यह शोध हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

स्टडी में वैज्ञानिकों ने शामिल मिलियू इंटेरियर ग्रुप के लोगों से लिए गए ब्लड सैंपल को अलग-अलग प्रकार के रोगाणुओं के सामने रखा, स्रावित साइटोकिन्स के स्तर की जांच की। साइटोकिन्स शरीर के अंदर वे छोटे-छोटे प्रोटीन हैं, जो हमारी प्रतिरोधक क्षमता रिस्पांस भेजने में मदद करते हैं। जांच के बाद सभी सैंपल के निकले रिजल्ट का डेटा अलग-अलग जांच पर परखा गया, इसमें उनके बॉडी मास इंडेक्स, स्मोकिंग, सोने की अवधि, कसरत, बचपन की बीमारियां, टीकाकरण, वातावरण, रहने की शैली के साथ अन्य पैमाने की निगरानी की गई। प्रतिरक्षा प्रणाली सबसे ज्यादा किस कारक से प्रभावित होती है, इसकी पहचान की गई। इसमें तीन फैक्टर मिले, पहला धूम्रपान, दूसरा साइटोमेगालो वायरस संक्रमण और तीसरा बॉडी मास इंडेक्स।

प्रभावित करने वाले तीन कारकों में धूम्रपान, छोड़ने के बाद भी कई सालों तक असर

इंस्टीट्यूट पाश्चर में ट्रांसलेशन इम्यूनोलॉजी यूनिट के प्रमुख और शोध के लेखक डर्राफ डफी ने स्टडी में बताया कि इस इसमें 2011 में 20 से 70 साल के आयुवर्ग के एक हजार स्वस्थ व्यक्तियों को शामिल करते हुए मिलियू इंटेरियर ग्रुप बनाया गया। इसमें उनकी निगरानी करते हुए लिए गए ब्लड सैंपल व जांच से उम्र, लिंग और अनुवांशिकी जैसे कारणों को लेकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली पर होने वाले प्रभाव को देखा गया। इसमें देखा गया कि कौन सा कारण सबसे अधिक प्रभाव डाल रहा है। कैसे शरीर के इम्यून सिस्टम में परिवर्तन हो रहा है। डफी ने बताया कि इम्यून सिस्टम पर पाए गए मुख्य तीन कारकों का प्रभाव उम्र, लिंग व अनुवांशिकी के बराबर हो सकता है। धूम्रपान कारक के डेटा विश्लेषण से सामने आया कि स्मोकिंग करने वालों में सूजन की प्रतिक्रिया बढ़ गई थी। इसके साथ ही इम्यून सिस्टम में शामिल कुछ कोशिकाओं की कार्यशैली खराब होने के कारण प्रभावित हुईं। इससे यह जानने को मिला कि धूम्रपान शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को न सिर्फ बाधित करता है बल्कि कुछ अनुकूल इम्यून सिस्टम को भी लंबे समय तक बाधित करता है। इस शोध में स्मोकिंग करने वाले और स्मोकिंग छोड़ चुके लोगों की प्रतिरोधक क्षमता पर हुए परिवर्तन की तुलना की गई। इसमें मिला कि स्मोकिंग छोड़ चुके लोगों में सूजन प्रतिक्रिया सामान्य स्तर पर लौट आई थी। लेकिन धूम्रपान करने वालों और पूर्व धूम्रपान करने वालों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं की तुलना से पता चला कि धूम्रपान बंद करने के तुरंत बाद सूजन प्रतिक्रिया सामान्य स्तर पर लौट आई, जबकि एडॉप्टिव इम्यून पर इसका असर 10 से 15 साल तक दिखाई दिया। इस स्टडी के जरिए यह पहली बार पाया गया कि शरीर के इम्यून सिस्टम पर धूम्रपान छोड़ने के बाद भी लंबे समय तक असर होता है।

शरीर के अंदर लड़ने की क्षमता को कर रहा कमजोर, कार्सिनोजेन को बढ़ाता है- डॉ. शालिनी, डायरेक्टर एनआईसीपीआर

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (एनआईसीपीआर) की डायरेक्टर डॉ. शालिनी सिंह ने बताया कि धूम्रपान कई बड़ी बीमारियों की जड़ है, इसके नियमित सेवन से शारीरिक संरचना में बदलाव देखा जा सकता है। शरीर की कोशिकाएं व इम्युनिटी बैक्टीरिया से लड़ने, कैंसर से लड़ने में मदद करती है, लेकिन तंबाकू प्रोडक्ट के सेवन से यह बुरी तरह प्रभावित होती हैं। कार्सिनोजेन से कैंसर बनता है, यह कई तरह से शरीर पर अटैक करते हैं, इनमें से एक यह भी होता है कि यह इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देते हैं। इसका मतलब यह होता है कि हमारे शरीर में रोगों से लड़ने की जो प्रतिरोधक क्षमता है, वह खत्म हो जाती है। स्मोकिंग में कई तरह के कैंसर बढ़ाने वाले रसायन होते हैं, जो कार्सिनोजेन को बढ़ाते हैं। स्मोकिंग से धुआं लंग्स में जाता है, गले से लेकर वॉयस बॉक्स, छोटे-छोटे एयर बेस में जाता है, जिन्हें वह डैमेज करता है। हमारे शरीर में सीलिया होता जो छोटे-छोटे ब्रश की तरह होता है, यह बुरी तरह डैमेज हो जाता है। सीलिया का काम होता है फेफड़े में फंसे बलगम और गंदगी को बाहर निकालना। स्मोकिंग से यह खराब होने से यह अपना काम नहीं कर पाते हैं, इस कारण फेफड़े में गंदगी रह जाती है। इससे कैंसर व अन्य बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है। स्मोकिंग आज भारत ही नहीं दुनिया में कैंसर होने का सबसे बड़ा फैक्टर है। धूम्रपान से हमारे फेफड़े बुरी तरह प्रभावित होते हैं, इसका असर सिर्फ शरीर के एक अंग पर ही नहीं पूरे इम्यून सिस्टम में पड़ता है। रोगों से लड़ने वाली कोशिकाओं व प्रतिरोधक क्षमता को यह नुकसान पहुंचाते हैं। खासकर महिलाओं व युवाओं में भी इसकी लत बढ़ी है, जिसका दुष्प्रभाव है कि कम आयु वाले कैंसर के मरीज सामने आ रहे हैं।

जेनेटिक संरचना में बदलाव से बड़ी बीमारियों का खतरा भी कई गुना बढ़ा- डॉ. अर्चित पंडित, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी

गुड़गांव के सनार इंटरनेशनल हॉस्पिटल के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉ. अर्चित पंडित का कहना है कि स्मोकिंग करने वालों में यह देखा गया है कि अन्य की तुलना में प्रतिरोधक क्षमता कमजोर दिखाई देती है। इस कारण से तंबाकू या धूम्रपान सेवन करने वालों के सेल के म्यूटेशन हो जाते हैं, हमारी कोशिकाएं शरीर से विद्रोह करने लगती है। जेनेटिक संरचना बदलने लगती है। इसका असर हमारे शरीर की इम्यून सिस्टम पर बहुत बुरा पड़ता है, कैंसर के साथ अन्य बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है और उससे रिकवर होने की दर प्रभावित होती है। हमारे पास आने वाले कैंसर मरीजों में अन्य कई बीमारियां देखी जा रही हैं, उनमें से अधिकतर स्मोकिंग के आदी रह चुके हैं। उन मरीजों में कैंसर के साथ बीपी, डायबिटीज के साथ अन्य कोई न कोई बीमारी जरूर होती है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होने से वे संक्रमण से नहीं लड़ पाते हैं, ऐसे में कैंसर के साथ अन्य बीमारियां भी उन्हें होने लगती हैं। इम्यून सिस्टम कमजोर होने से दवा का असर भी लंबे समय में हो पाता है। इसके लिए तो उपाय यही है कि तंबाकू प्रोडक्ट से जेनेटिक संरचना हो रहे नुकसान व परिवर्तन को रोकने के लिए जितना जल्दी हो पाए धूम्रपान छोड़ देना चाहिए। इस कारण शरीर में बड़ी बीमारियों का खतरा भी कई गुना बढ़ गया है।

सिगरेट में 7000 से अधिक रसायन, 69 तरह के कैंसर का कारणः अमेरिकन लंग्स एसोसिएशन

अमेरिकन लंग्स एसोसिएशन की 2023 की एक रिपोर्ट में स्मोकिंग से होने वाले नुकसान और उसके शरीर पर पड़ रहे प्रभाव को लेकर बताया कि सिगरेट के धुएं में 7000 से अधिक तरह के रसायन होते हैं, जो 69 प्रकास के कैंसर का कारण है। फेफड़ों से होने वाली कैंसर में करीबन 90 फीसदी मौतें और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज से होने वाली 80 फीसदी मौतों के लिए धूम्रपान सीधे तौर पर जिम्मेदार है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि नियमित धूम्रपान करने वालों में 78 फीसदी ने 18 की उम्र तक पहली सिगरेट और 94 फीसदी ने 21.3 की आयु तक पहली सिगरेट पी ली थी। वर्तमान में स्मोकिंग करने वालों में इससे जुड़ी 73 फीसदी बीमारियां फेफड़ों से संबंधित होती हैं। यहां तक कि धूम्रपान छोड़ चुके 50 फीसदी लोगों के फेफड़े से संबंधित बीमारियों का कारण भी वही होता है। इससे कैंसर के साथ फेफड़े और हृदयघात जैसी बीमारियों का खतरा रहता है।

जितना जल्दी हो सके छोड़े या न करें स्मोकिंग, उतनी जिंदगी होगी सुरक्षित

सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार सिगरेट में मौजूद धुआं शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है, जिससे कि कैंसर की कोशिकाओं को मारना प्रभावित होता है। इस कारण कैंसर की कोशिकाएं बिना रुके बढ़ती रहती हैं। फेफड़े के कैंसर से होने वाले 10 में से नौ मौतें सिगरेट पीने या व्यक्ति द्वारा छोड़े गए धुएं के संपर्क में आने से होती है। अमेरिका में हर साल 7300 लोगों की मौत धूम्रपान न करने वालों की होती है, जो दूसरों के स्मोकिंग के दौरान धुएं के संपर्क में रहे।

सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार धूम्रपान छोड़ने से पांच से 10 सालों के भीतर मुंह व गले के कैंसर होने की आशंका आधी हो जाती है। इसके अलावा 10 सालों में धूम्रपान छोड़ने से मूत्राशय, पेट, गुर्दे का कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है। 10-15 साल से स्मोकिंग नहीं कर रहे हैं तो फेफड़े में कैंसर का खतरा आधा हो जाता है। विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि धूम्रपान से अपनी जिंदगी के साथ दो