स्कन्द विवेक धर/एसके सिंह, नई दिल्ली। स्पेस सेक्टर के लिए पिछले सप्ताह घोषित नई विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) नीति ने देश की स्पेस इंडस्ट्री को अचानक ग्लोबल मैप पर ला दिया है। सेक्टर में ऑटोमैटिक रूट से 100% तक एफडीआई की अनुमति के बाद कंपनियां अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मौके तलाशने में जुट गई हैं। अनुमान है कि देश का स्पेस सेक्टर अगले 10 साल में पांच गुना बढ़कर 44 अरब डॉलर के पार हो जाएगा।

एशिया फोकस अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंसी फर्म देज़ान शिरा एंड एसोसिएट्स की इंडिया ब्रीफिंग रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अपने अंतरिक्ष क्षेत्र में 100 प्रतिशत तक एफडीआई की अनुमति देकर विदेशी निवेशकों के बड़ी संख्या में आने, तकनीकी हस्तांतरण और रिसर्च और वैज्ञानिक सहयोग का रास्ता खोल दिया है।

देज़ान शिरा एंड एसोसिएट्स की अर्चना राव के मुताबिक, स्पेस सेक्टर में 100% एफडीआई की अनुमति देने का भारत का निर्णय एक रणनीतिक कदम है। यह भारतीय स्पेस इंडस्ट्री में निवेश करने और साथ काम करने के इच्छुक विदेशी खिलाड़ियों के लिए यहां प्रवेश की बाधाओं को कम करेगा।

इसरो के पूर्व प्रमुख के सिवन भी मानते हैं कि भारत की किफायती स्पेस इंडस्ट्री बड़ी संख्या में विदेशी निवेशकाें को लुभाने की काबिलियत रखती है। जागरण प्राइम से बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत के पास एक उन्नत अंतरिक्ष कार्यक्रम है। चंद्रयान-3 मिशन की सफलता ने हमें दुनिया के टॉप-5 अंतरिक्ष कार्यक्रम वाले देशों में शुमार करा दिया है। कम लागत वाले हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम से ज्यादातर देश जुड़ना चाहते हैं। नई नीति से तमाम विदेशी निवेशक भारत में आकर निवेश करना चाहेंगे। इससे पूरी स्पेस इकोनॉमी को फायदा पहुंचेगा।

स्पेस स्टार्टअप एनियारा स्पेस एंड कम्युनिकेशंस के प्रेसिडेंट डी.एस. गोविंदराजन ने जागरण प्राइम को बताया कि भारत में निजी क्षेत्र में स्पेस सेक्टर बढ़ रहा है और इसे निवेश की सख्त जरूरत है। स्पेस सेक्टर में सुधारों पर विदेशी निवेशकों की भी नजर है। निवेश पर फैसला करने के लिए वे एफडीआई नीति का इंतजार कर रहे थे। विदेशी निवेशक टेक्नोलॉजी और बाजार के महत्व को समझते हैं, लेकिन बड़ा निवेश करने से पहले वे नीतिगत स्पष्टता चाहते थे, जो नई घोषणा से आ गई है।

स्पेस इंडस्ट्री की संस्था इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISpA) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल (रि) ए.के. भट्ट भी मानते हैं कि नई एफडीआई नीति के बाद स्पेस सेक्टर में विदेशी निवेश आने की पूरी उम्मीद है। वे कहते हैं, आज पूरी दुनिया में स्पेस सेक्टर को लेकर रुचि काफी ज्यादा है। बड़ी विदेशी कंपनियां भारतीय स्टार्टअप तथा अन्य कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर स्थापित करेंगी।

एक सेक्टर में एफडीआई के तीन स्लैब क्यों?

भट्ट कहते हैं, स्पेस सेक्टर में एफडीआई को लेकर सरकार के पास दो विकल्प थे। या तो टेलीकॉम सेक्टर की तरह वह स्पेस सेक्टर को भी 100% विदेशी निवेश के लिए खोल दे या इसको 74% पर रखा जाए, जैसा डिफेंस सेक्टर में है। सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए पूरे स्पेस सेक्टर को तीन हिस्से में बांट दिया।

लॉन्च व्हीकल के सेगमेंट में सबसे कम 49% विदेशी निवेश की अनुमति दी गई है। इसका कारण रणनीतिक है, क्योंकि जो टेक्नोलॉजी लॉन्च व्हीकल और रॉकेट में इस्तेमाल होती है, वही टेक्नोलॉजी मिसाइल और आईसीबीएम में भी लगती है। दूसरा कारण यह है कि सैटेलाइट जहां से भी लॉन्च की जाती है, वहां कुछ सॉवरेन जिम्मेदारियां होती हैं। जब सॉवरेन जिम्मेदारी देश पर है, तो उसका नियंत्रण देश के बाहर नहीं होना चाहिए।

सरकार ने 74% एफडीआई की अनुमति उन जगहों पर दी है जो डिफेंस के समतुल्य हैं। जैसे सैटेलाइट, डेटा आदि। कंपोनेंट तथा अन्य मामलों में, जो टेलीकॉम के समतुल्य हैं, उनमें 100% एफडीआई की अनुमति दी गई है।

नई एफडीआई नीति बीते साल आई भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023 के उद्देश्यों के अनुरूप है। इसका उद्देश्य निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी के जरिए अंतरिक्ष क्षेत्र में देश की क्षमताओं को बढ़ाना है।

भारत की अंतरिक्ष नीति क्या है?

20 अप्रैल, 2023 को भारत ने अपनी अंतरिक्ष नीति-2023 को पेश किया था। इसके तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपना फोकस सैटेलाइट ऑपरेशन से हटाकर हाईटेक स्पेस टेक्नोलॉजी में रिसर्च एंड डेवलपमेंट की ओर ले जाएगा। सैटेलाइट से जुड़े काम निजी क्षेत्र को सौंप दिए जाएंगे, जो इसरो के साथ समन्वय बनाकर यह काम करेंगे। सैटेलाइट, लॉन्च व्हीकल, सैटेलाइट सर्विसेज और ग्राउंड इक्विपमेंट में ज्यादातर काम निजी क्षेत्र के हिस्से आएगा।

देश की स्पेस इंडस्ट्री में प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देने और नियमन करने के लिए भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के तहत भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना की जा चुकी है। IN-SPACe अंतरिक्ष विभाग के तहत सिंगल विंडो, ऑटोनॉमस रेगुलेटर और नोडल एजेंसी है। इसे 2020 में शुरू किया गया था। IN-SPACe इसरो और प्राइवेट सेक्टर के बीच पुल का काम भी करता है। IN-SPACe अब तक प्राइवेट कंपनियों के साथ 45 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर कर चुकी है।

कितनी बड़ी है भारत की स्पेस इकोनॉमी?

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में अंतरिक्ष स्टार्ट-अप की संख्या 2014 में केवल एक थी, वह 2023 में बढ़कर 189 हो गई। भारतीय अंतरिक्ष स्टार्ट-अप में निवेश 2023 में बढ़कर 124.7 मिलियन डॉलर हो गया।

फिलहाल, भारतीय स्पेस इकोनॉमी का आकार तकरीबन 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री का लगभग 2 फीसदी है। IN-SPACe का अनुमान है कि 2033 तक देश की स्पेस इकोनॉमी 44 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी और ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री में भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 8% हो जाएगी। यह मुकाम हासिल करने में प्राइवेट सेक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो सरकार को उम्मीद है कि नए उदार एफडीआई नियम के बाद एलोन मस्क की स्पेसएक्स, जेफ बेजोस की ब्लू ओरिजिन और रिचर्ड ब्रैन्सन की वर्जिन गैलेक्टिक भी भारत में निवेश कर सकती हैं।

एफडीआई नीति से और क्या फायदे मिलने की उम्मीद?

भट्ट के मुताबिक, स्पेस सेक्टर को पैसा चाहिए और इसके लिए एफडीआई अच्छा माध्यम है। पैसा आएगा और ग्रोथ होगी तो सैटेलाइट मैन्युफैक्चरिंग हो या कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग, सब में नौकरियों के अवसर निकलेंगे।

स्पेस सेक्टर में ग्रोथ पूरी इकोनॉमी को बढ़ावा देगी। गोविंदराजन कहते हैं, स्पेस सेक्टर की प्रकृति काफी हद तक ग्लोबल है। एफडीआई आने से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, नॉलेज, ग्रोथ और एफिसिएंसी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे देश की स्पेस इकोनॉमी को भी बूस्ट मिलेगा।

गोविंदराजन कहते हैं, निवेश दोतरफा प्रक्रिया है। एक तरफ तो कंपनियों को ग्रोथ के लिए निवेशकों की दरकार रहती है, दूसरी तरफ निवेशकों को भी निवेश के अवसरों की तलाश रहती है। एफडीआई नीति इन दोनों के उद्देश्य पूरे करती है।

भट्ट इसका मल्टीप्लायर इफ़ेक्ट भी देखते हैं। वे कहते हैं, सैटलाइट कम्युनिकेशन के आने और उसके विस्तार से दूरदराज के इलाकों को जोड़ना आसान होगा। जब वे इलाके मुख्यधारा से जुड़ेंगे तो उसका मल्टीप्लायर इफ़ेक्ट होगा। इसका लाभ पूरी इकोनॉमी को मिलेगा। कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, वानिकी जैसे क्षेत्रों में आगे चलकर स्पेस सेक्टर का काफी इस्तेमाल हो सकता है।

विस्तार के साथ सावधानी भी जरूरी

विशेषज्ञ स्पेस सेक्टर के विस्तार के साथ सावधानी रखने भी वकालत कर रहे हैं। इंडियन स्पेस एसोसिएशन के महानिदेशक भट्ट कहते हैं, अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी हमेशा दोहरे इस्तेमाल (सामरिक और नागरिक इस्तेमाल) की टेक्नोलॉजी होती है। इसलिए सरकार को चेक एंड बैलेंस रखना पड़ेगा। एफडीआई का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि कंट्रोल देश के बाहर हो। संवेदनशीलता और रणनीतिक महत्व को देखते हुए इस पर कंट्रोल होना जरूरी है।