बयान बदलते गवाह
कानून के सहारे ही कानून से खिलवाड़ की जो मिसाल पंजाब के फाजिल्का में देखने को मिल रही है वह दुर्भाग्यपूर्ण है।
कानून के सहारे ही कानून से खिलवाड़ की जो मिसाल पंजाब के फाजिल्का में देखने को मिल रही है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। बहुचर्चित भीम टांक हत्याकांड में गत दिवस इस घटना का मुख्य गवाह गुरजंट सिंह भी पुलिस को दिए अपने बयान से पलट गया। उसका कहना है कि पहले जब उसने बयान दिया था तब वह होश में नहीं था, लेकिन अब पूरी तरह होश में है और सही बयान दे रहा है। हैरत की बात यह है कि भीम पर हमला करने वालों ने तब गुरजंट के भी हाथ काट दिए थे। ऐसे में उसकी गवाही बेहद अहम थी। इसी घटना का एक और गवाह भी विगत दिवस कोर्ट में पुलिस को दिए अपने बयान से पलट गया था। दोनों गवाहों के अपने बयान से पलटने के कारण अब इस केस का रुख पूरी तरह बदलने की संभावना से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता है। इससे जहां कानून व्यवस्था की किरकिरी होती है, वहीं पुलिस भी संदेह के घेरे में आ जाती है। हैरत की बात यह है कि ऐसा तब हो रहा है जबकि गवाही से पलटने अथवा झूठ बोलने पर गवाह को दंडित करने के प्रावधान मौजूद हैं। जब गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं, तब कोर्ट यह देखता है कि गवाह झूठ तो नहीं बोल रहा है। अगर कोर्ट को लगता है कि गवाह ने शपथ लेकर झूठे बयान दर्ज कराए हैं तो अदालत ऐसे गवाह के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दे सकती है। हालांकि अधिकतर मामलों में यही देखा गया है कि गवाह किसी न किसी कानून का सहारा लेकर बच निकलते हैं और पुलिस व कानून हाथ मलते रह जाते हैं। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि हर बार गवाह ही गलत होते हैं, कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब पुलिस के दबाव में आकर गवाहों ने शुरू में घटनाक्रम से अलग बयान दिए हैं। ये दोनों ही स्थितियां कानून व्यवस्था के लिए कतई उचित नहीं हैं। पुलिस को चाहिए कि वह सही गवाही ही दर्ज करे और गवाहों पर कोई दबाव न डाले ताकि कोर्ट के सामने उसे मुंह न छिपाना पड़े। इसी प्रकार बार-बार बयान बदलने वालों की भी गहराई से जांच होनी चाहिए । झूठी गवाही देने वालों को शीघ्र व सख्त सजा होनी चाहिए।
[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]