राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में विपक्ष के सवालों का जिस तरह विस्तार से जवाब दिया उससे कम से कम नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे लोगों को यह समझ आ जाए तो बेहतर कि इस मसले पर विपक्ष ने उन्हें गुमराह करने के साथ ही एक ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है जहां उनके कथित हित राष्ट्रहित से मेल खाते नहीं देखते।

वास्तव में इसी कारण इस विरोध को उचित ठहराने के लिए संविधान, लोकतंत्र आदि की आड़ लेने की कोशिश करनी पड़ रही है। देश यह देख-समझ रहा है कि संविधान की बातें करके संवैधानिक तौर-तरीकों के खिलाफ कौन काम कर रहा है?

क्या विपक्षी दल उस स्थिति को स्वीकार करेंगे जिसके तहत पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बंगाल, केरल आदि की जिला पंचायतें इन सरकारों द्वारा पारित किसी कानून को लागू करने से इन्कार कर दें?

क्या इससे बुरी बात और कोई हो सकती है कि यूरोपीय संसद को तो यह समझ आ गया कि भारतीय संसद के किसी फैसले पर चर्चा करना ठीक नहीं, लेकिन हमारी अपनी राज्य सरकारों को यह समझ नहीं आया कि वे संसद से पारित कानून को लागू करने से इन्कार कर न केवल घोर असंवैधानिक कृत्य कर रही हैं, बल्कि विरोध की आग में घी डालने का काम कर रही हैं।

यह अच्छा हुआ कि नागरिकता संशोधन कानून को विभाजनकारी बताने के दुष्प्रचार का पर्दाफाश करने के लिए प्रधानमंत्री ने न केवल नेहरू जी की उस चिट्ठी का जिक्र किया जिसमें उन्होंने असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री से पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यकों की विशेष चिंता करने को कहा था, बल्कि लाल बहादुर शास्त्री और राम मनोहर लोहिया के उन बयानों का भी उल्लेख किया जिनमें पड़ोस के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के प्रति नरमी बरतने की अपेक्षा जताई गई थी।

नागरिकता कानून को संशोधित करके यही किया गया है, लेकिन पता नहीं कैसे विपक्षी दल इस नतीजे पर पहुंच गए कि यह कानून भारतीय मुसलमानों के खिलाफ है? वैसे तो प्रधानमंत्री की ओर से नए सिरे से यह रेखांकित करने की जरूरत ही नहीं थी कि नागरिकता संशोधन कानून किसी भी भारतीय नागरिक के खिलाफ नहीं है, लेकिन यदि उन्हें ऐसा करना पड़ा तो विपक्ष के इसी शरारत भरे दुष्प्रचार के कारण कि वह भारतीय मुसलमानों की अनदेखी करता है।

आखिर जो कानून किसी भारतीय नागरिक के लिए है ही नहीं उसके विरोध का क्या औचित्य? प्रधानमंत्री ने सही कहा कि विपक्ष भारत के मुसलमानों को देश के नागरिक के तौर पर कम, मुसलमान के तौर पर अधिक देखता है। नि:संदेह इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे।